डेस्क न्यूज। आज समाज की बड़ी विडम्बना बन चुकी है कि जब हम बेहाल होकर रह रहे थे और हमारी मदद करने वाला कोई भी नहीं था ,यहां तक स्थिति ऐसी थी कि हमारे घर वाले ,मित्र और रिश्तेदारों ने भी हमारी बुरी स्थिति को भाँपकर हमसे बातचीत बंद कर दिया था और हमसे मुँह मोड़ लिया था।
ऐसी कठिन परिस्थिति में एक मात्र सहारा मिला हमारे आराध्य गुरुदेव श्री शक्ति पुत्र महाराज जी का जिनकी कृपा के फलस्वरूप आज हम शांतिपूर्वक अपना जीवन संचालित कर रहे हैं। जब हम परेशान होते हैं तो हम बार-बार बोलते हैं कि एक बार हमारी स्थिति सही हो जाय फिर हम गुरुदेव जी की हर बात मानेंगे और खूब जोर शोर से कार्य करेंगे। उसके बाद माँ गुरुवर के आशिर्वाद से हमारा सारा कार्य सही ढंग से होने लगता है और हम लोग सुकून भरी जिन्दगी जीने भी लग जाते हैं।
थोड़े समय बाद ही हम लोग उन बातों को भुलाकर फिर से अन्मयस्क भाव से जीवन जीने लगते हैं। ये सरासर गलत है। जबकि होना ये चाहिये कि जीवन पर्यन्त जब तक साँस चलती रहे तब तक माँ गुरुवर के प्रति भक्ति भाव में रंच मात्र की भी कमी ना आ सके। हम लोग जब अच्छा जीने लगते हैं तो लापरवाही बरतने लगते हैं। महाआरती में अनुपस्थित रहना ,शिविर में भी कभी जाना कभी अनुपस्थित रहना। आस पास हो रहे आरती और दुर्गा चालीसा पाठ के क्रमों में ना जाना शुरू कर देते हैं। संगठन द्वारा दिये हुये निर्देशित कार्योँ में रुचि कम कर देते हैं।
जबकि ऐसा भाव रखना चाहिये कि गुरुवर द्वारा निर्देशित प्रत्येक क्रमों में जीजान से जुट जाना चाहिये कि पता नहीं गुरुदेव जी हम लोगों को ये अवसर दुबारा प्रदान करेंगे या नहीं करेंगे। जो चेतनावान गुरु होते हैं वो अपना हर कार्य करने के लिये पूर्ण सामर्थ्यवान होते हैं। ये उनकी दयालुता है कि हमें लाभ प्राप्त कराने के लिये कुछ अवसर प्रदान करते रहते हैं। हमें सदैव इस बात के लिये कृतज्ञ रहना चाहिये कि आज हम बुरे दौर से निकलकर शानदार जीवन माँ गुरुवर के आशिर्वाद के कारण ही जी रहे हैं। पाँच प्रतिशत का समर्पण सदैव करते रहना चाहिये। इन कार्योँ में कभी भी न्यूनता नहीं बरतना चाहिये। आभार प्रकट करने के कई रास्ते हैं।
गुरुदेव जी का उद्देश्य है कि हर घर में माँ की साधना आराधना जरूर हो, जिससे उन परिवारों का कल्याण हो सके और उनकी आत्मा के ऊपर जो आवरण पड़ा हुआ है वो धीरे-धीरे हट सके। जिन लोगों को भी आपने गुरुदेव जी के विचारधारा से जोड़ दिया तो समझ लीजिये कि आपने उन परिवारों को खुशहाल कर दिया। हम चाहें तो गुरुदेव जी का आभार हर समय उनकी आज्ञा का पालन करके प्रकट कर सकते हैं।
समय -समय पर आश्रम जाकर गुरुदेव के समक्ष खड़े होकर अपना आभार विनम्रता पूर्वक प्रकट करना चाहिये। देखिये हम लोग माँ गुरुवर को कुछ भी समर्पण करने में असमर्थ हैं फिर भी अपने मन के भावों को उनके समक्ष प्रकट तो कर ही सकते हैं। संगठन के द्वारा संचालित सभी कार्योँ के प्रति जुनून होना चाहिये। किसी दूसरे की प्रतीक्षा मत कीजिये आप स्वयं लग जाईये। जब हम स्वयं अच्छे कार्य करने लगेंगे तभी हमारे जीवन में अच्छे परिणाम मिलेंगे।गुरुदेव जी को जानने के लिये हमारे अन्दर क्षमता है ही नही ,बस सदैव आभारी बनकर जीवन में गुरुआदेश को सर्वोच्च आदेश मानकर कार्य करते रहिये ,सब कुछ अच्छा हो जाएगा।
जो लोग भी हमारे जानकार हों उन्हें भी संगठन के जन् कल्याणकारी कार्यों से अवगत कराना हमारा प्रथम कर्तव्य है। लोगों के कल्याण में ही हमारा आपका कल्याण समाहित है। हमारे जीवन में जब अच्छा होने लगे तो हमें और भी विनम्रता का भाव रखना चाहिये। सदैव इस बात के लिये तत्पर रहिये कि क्या हम किसी के काम आ सकते हैं क्या ?लोगों की दुआ लेनी चाहिये। किसी की भी बद्दुआ कभी नही लेनी चाहिये। इस धरती पर गुरुवर जी का अवतरण हमारे आपके कल्याण के लिये ही हुआ है अतः हर पल सजग होकर जीवन जीते रहें और माँ गुरुवर की साधना करते रहें,जिनकी कृपा से हमारा आपका जीवन खुशहाल है।
जै माता की जै गुरुवर की
(लेखक- शिवबहादुर सिंह फरीदाबाद हरियाणा)