आज का पंचांग: आचार्य जगदीश महाराज के साथ

डेस्क न्यूज। आज का पंचांग में जाने आचार्य जगदीश महराज से राशिफल, राहुकाल, सहित आज का ब्रत एवं त्यौहार सहित स्वास्थ सहित आयुर्वेदिक उपाय।
दिनांक – 16 जनवरी 2024
दिन – मंगलवार
विक्रम संवत् – 2080
अयन – उत्तरायण
ऋतु – शिशिर
मास – पौष
पक्ष – शुक्ल
तिथि – षष्ठी रात्रि 11:57 तक तत्पश्चात सप्तमी
नक्षत्र – पूर्वभाद्रपद 17 जनवरी प्रातः 04:38 तक तत्पश्चात उत्तरभाद्रपद
योग – परिघ रात्रि 08 :01 तक तत्पश्चात शिव
राहु काल – शाम 03:300से 04:30 तक
सूर्योदय – 07:23
सूर्यास्त – 06:16
दिशा शूल – उत्तर
ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 05:38 से 06:30 तक
निशिता मुहूर्त – रात्रि 12:23 से 01:16 तक
व्रत पर्व विवरण – मकर संक्रांति, पोंगल
विशेष – षष्ठी को नीम की पत्ती, फल या दातुन मुँह में डालने से नीच योनियों की प्राप्ति होती है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
तिल के औषधीय प्रयोग-
काले तिल चबाकर खाने व शीतल जल पीने से शरीर की पर्याप्त पुष्टि हो जाती है। दाँत मृत्युपर्यन्त दृढ़ बने रहते हैं।
एक भाग सोंठ चूर्ण में दस भाग तिल का चूर्ण मिलाकर 5 से 10 ग्राम मिश्रण सुबह शाम लेने से जोड़ों के दर्द में राहत मिलती है।
तिल का तेल पीने से अति स्थूल (मोटे) व्यक्तियों का वजन घटने लगता है व कृश (पतले) व्यक्तियों का वजन बढ़ने लगता है। यह कार्य तेल के द्वारा सप्तधातुओं के प्राकृत निर्माण से होता है।
तैलपान विधिः सुबह 20 से 50 मि.ली. गुनगुना तेल पीकर,गुनगुना पानी पियें। बाद में जब तक खुलकर भूख न लगे तब तक कुछ न खायें।
अत्यन्त प्यास लगती हो तो तिल की खली को सिरके में पीसकर समग्र शरीर पर लेप करें।
वार्धक्यजन्य हड्डियों की कमजोरी उससे होने वाले दर्द में दर्दवाले स्थान पर 15 मिनट तक तिल के तेल की धारा करें।
पैर में फटने या सूई चुभने जैसी पीड़ा हो तो तिल के तेल से मालिश कर रात को गर्म पानी से सेंक करें।
पेट मे वायु के कारण दर्द हो रहा हो तो तिल को पीसकर, गोला बनाकर पेट पर घुमायें।
वातजनित रोगों में तिल में पुराना गुड़ मिलाकर खायें।
एक भाग गोखरू चूर्ण में दस भाग तिल का चूर्ण मिलाके 5 से 10 ग्राम मिश्रण बकरी के दूध में उबाल कर, मिश्री मिला के पीने से षढंता∕नपुंसकता (Impotency) नष्ट होती है।
काले तिल के चूर्ण में मक्खन मिलाकर खाने से रक्तार्श (खूनी बवासीर) नष्ट हो जाती है।
तिल की मात्राः 10 से 25 ग्राम।
विशेषः देश, काल, ऋतु, प्रकृति, आयु आदि के अनुसार मात्रा बदलती है। उष्ण प्रकृति के व्यक्ति, गर्भिणी स्त्रियाँ तिल का सेवन अल्प मात्रा में करें। अधिक मासिक-स्राव में तिल न खायें।
बरकत लाने व सुखमय वातावरण बनाने हेतु-
जिस घर में भगवान का, ब्रह्मवेत्ता संत का चित्र नहीं है वह घर स्मशान है । जिस घर में माँ-बाप, बुजुर्ग व बीमार का खयाल नहीं रखा जाता उस घर से लक्ष्मी रूठ जाती है। बिल्ली, बकरी व झाड़ू कि धूलि घर में आने से बरकत चली जाती है । गाय के खुर कि धूलि से, सुह्र्दयता से, ब्रह्मज्ञानी सत्पुरुष के सत्संग से घर का वातावरण स्वर्गमय, सुखमय, मुक्तिमय हो जाता है ।
जन्म कुंडली ज्योतिष व्यापार बढ़ाने के लिए और बिमारी रोग मुक्ति के लिए और बिबाह मे देरी संतान सुख वास्तु दोष चुनाव मुकदमा के लिए बैदिक विद्वान ब्राह्मणों से अनुष्ठान कराये जाते है।
अपने बच्चे रात्रि को सोने से पूर्व २१ बार ‘ॐ अर्यमायै नम:’ मंत्र का जप करना तथा तकिये पर अपनी माँ का नाम (केवल ऊँगली से ) लिखकर सोना, सुबह स्नान के बाद ललाट पर तिलक करना और पढाई के दिनों में एवं अवसाद (डिप्रेशन) के समय प्राणायाम करने चाहिए ।
सर्वांगासन करके ॐॐका उच्चारण करते हुए चिंतन करें। देर रात को न खायें, कॉफ़ी-चाय के आदि के व्यसन में न पड़ें और सादा जीवन जियें, जिससे अपनी जीवनीशक्ति की रक्षा हो ।
सुबह थोड़ी देर भगवत्प्रार्थना – स्मरण करते हुए शांत हो जाओ । बुद्धि में सत्त्व बढ़ेगा तो बुद्धि निर्मल होगी, गड़बड़ से मन को बचायेगी मन इन्द्रियों को नियंत्रित रखेंगा।
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