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यादो मे हमेशा जिवित पं सत्येंद्र पाठक जी, परिवार से अधिक अपनो को मिलता रहा प्यार

विजयराघवगढ़/कटनी। कहा जाता है कि जो इस प्रथ्वी मे आता है उस हर इंशान को एक दिन जाना ही होता है। यह कुदरत का नियम है किन्तु मनुष्य अपने कर्मो की बजह से पूजा भी जाता है तिरस्कार का भी भागीदार होता है।

विजयराघवगढ़ विधानसभा छेत्र मे जिनके नाम की तूती बोलती रही जिन्होंने समाज हित मे प्रशासन से लेकर अधिकारीयो तक को नतमस्तक कर दिया हो ऎसे होनहार निडर राजनीति के बब्बर शेर कहलाने वाले पंडित सत्येंद्र पाठक जी काग्रेस मे रहकर मंत्री पद पर आषिन रहे जिसका लाभ सिधे आम जनता को मिला जिसकी बजह से सत्येंद्र पाठक जी को कर्मयोगी की उपाधि मिली। सत्येंद्र पाठक जी जिस रास्ते से गुजरते थे लोगों का काफिला एकत्र हो जाता है लोग के लिए सहारा और विश्वास की मिशाल हुआ करते थे बाबू जी।

शिकायते छोटी हो या बडी अपनो के हित मे अधिकारीयों की अच्छी खासी क्लास लग जाती थी अधिकारी विजयराघवगढ़ विधानसभा छेत्र के हितग्राहियों को भगवान मान कर कार्य करते थे कही कोई चुक न हो जाए वर्ना बाबू जी के क्रोध का भागीदार बन्ना पडेगा। राजनीति के सफर मे जितना कठिन परिश्रम बाबू जी ने देखा शायद ही अंय किसी जन प्रतिनिधियों ने देखा हो। आम आदमी को योजनाओं के लिए दर्दर नही भटकना पडता था बल्कि योजनाएं खुद आम आदमी के दरवाजे तक पहुंचती थी। इस तरह के राजा थे सत्येंद्र पाठक जी जिनके राज मे वास्तव मे राम राज की अनुभूति होती थी।

परिवार का दाईत्व-
सत्येंद्र पाठक जी एक अमीर खान दान के होनहार युवक थे जिन्हे समाज से मोह और गरीबों से प्यार हो गया था यही बजह थी की वह राजनीति मे आकर दौलत नही लोगों का आत्म विश्वास कमाया और कर्मयोगी से विभूषित हुए। कभी ऐसा भी समय आया की जन सेवा करते करते सत्येंद्र पाठक जी के पास पैसो का आभाव आया किन्तु वह न डरे न भयभीत हुए उन्होंने अपनो पर विश्वास कर चुनाव मैदान पर उतरे जिसका परिणाम भी सकरात्मक रहा। विजयी हुए बाबू जी फिर विधायक बने। सत्येंद्र पाठक जी की जित विजयराघवगढ़ विधानसभा छेत्र के हर व्यक्ति की जीत मानी जाती रही हर घर खुशी और उत्साह देखने को मिलता रहा। बाबू जी ने जितना प्रेम अपना पन छेत्र के लोगों को दिया उतना ही अपने परिवार को भी दिया परिवार का हर व्यक्ति बाबू जी के साथ खुशियो की फुलवारी सजाता रहा जीवन के सफर मे पल पल यादो के पिरोता रहा।

अचानक बाबू जी के स्वास्थ्य मे गिरावट आई और वह बिमार रहने लगे किन्तु अस्वस्थ रहते हुए भी उन्हे भी उन्होंने परिवार और छेत्र की चिंता नही छोडी हमेशा पुत्र संजय को दाईतवो का निर्वाहन करने के लिए प्रेरित करते रहे एक एसा भी दौर गुजरा जब अपने दाईतवो का भार पुत्र को सौपा और कहा की हर पिता अपने पुत्र को धन दौलत जमीन जायदाद देता है मै तुम्हें अपनो का दुख दर्द भी साथ देता हू इनका दुख दर्द तुम अपना समझना इन्हें कभी कोई दुख तकलीफ न होने देना यही मेरी इक्षा है।

बाबू जी के बचनो को गाठ मे बाध विरासत मे मिली सौगात के साथ पुत्र संजय पाठक बाबू जी की निगाहो से लोगों का दुख दर्द समस्या देखते हुए बाबू जी के सपनो पूरा कर रहे हैं। पंडित सत्येंद्र पाठक जी की तपस्या और लगन देख बिचलित होने की बजाए खुशी खुशी साथ देती रही एक हम सभर की तरह निर्मला शर्मा जिन्हे आज सब मम्मी जी के रुप मे जानते हैं मम्मी जी ने बाबू जी के सपनो को पूरा करने के लिए अपनो सपनो की अहुति दे दी।

बच्चो के पालन पोषण के साथ घर तक पहुचने वाले प्रत्येक छेत्र के लोगों की आवभगत मे कोई कमी नही छोडी। पंडित सत्येंद्र पाठक जी को उनके अपनो ने बब्बर शेर की उपाधि दे रखी थी किन्तु मम्मी जी श्रीमती निर्मला शर्मा जी को देवी स्वरूप लक्ष्मी का औतार माना जाता रहा। समय के साथ बाबू जी मे बदलाव आया वह बच्चों के सामने बच्चे बन जाते रहे जो बच्चे कल तक उनके इसारो मे दौडते रहे समय के बदलाव मे बाबू जी बच्चों के हिसाब से चलने लगे। तब उस वक्त संजय पाठक को राजनीति और व्यापार की जिम्मेदारी बाबू जी ने दे दी ताकि वह देख सके की संजय अपनी जिम्मेदारियों को किस कदर निभा पाते हैं।

संजय ने राजनीति मे जौहर दिखाना प्रारंभ किया तथा परिवारिक आयोजनों मे चार चाद लगा बाबू जी के विश्वास पर खरा उतरने की तस्वीर भी दिखाई बाबू जी की सोच से चार कदम आगे बढते रहे संजय सत्येंद्र पाठक ने जब विजयराघवगढ़ विधानसभा की बागडोर सभाली उस वक्त बाबू जी की खुशी की कोई सीमा नही रही उन्होंने फिर संजय पाठक को अपने दाईतवो की याद दिलाई और कहा इस विधानसभा को मैने अपने खून से सिचा है इसकी हिफाजत तुम्हारी जिम्मेदारी है लोग कुछ भी कहे या करे लेकिन तुम अपनो का साथ कभी नही छोडना मम्मी जी को भी यही संदेश देते हुए बाबू जी ने कहा था की संजू का साथ एक मा के साथ साथ एक पिता की तरह देना उसके कदमो मे कभी काटे न लगे हमने बडे ही नाजो से पाला है उसे मखबल के बिछोने दिए इसके जीवन मे कभी मेरी कमी महसूस मत होने देना।

संजय पाठक का सफर-
विजयराघवगढ़ विधायक संजय सत्येंद्र आज शेर के बेटे पाठक जी के लल्ला के रूप मे जाने जाते हैं संजय पाठक की पहचान देश विदेश मे उनकी ही काबिलियत कि बजह से है किन्तु आज भी मध्यप्रदेश मे राज मंत्री सत्येंद्र पाठक जी के नाम से ही जाने जाते हैं जब कभी संजय दुनिया के काम काज से थक हार कर एकान्त मे बैठते हैं तो अपने आस पास बाबू जी की अनुभूति करते है। बाबू जी के सपनो को पूरा करते करते बाबू जी कि ही तरह बन चुके संजय सत्येंद्र पाठक कही न कही अकेले हो गये दुनिया आज जिनके कदमो मे हो सारे अपने साथ हो किन्तु एक पिता के जाने के बाद की जिम्मेदारी पिता की कमी का अहसास कराती है। हर कार्य पुत्र संजय के या नाती यस कार्य तो बाबू जी का ही किया जाता है सपने तो साकार बाबू जी के ही होते हैं।

दौर चलता रहेगा कारवां बदलते रहेगे दिवारों पर लिखे नाम दिलो पर हमेशा दमकते रहेगे। मध्यप्रदेश की शान विजयराघवगढ़ विधानसभा की पहचान जिनका हमेशा रहेगा अमर नाम पूर्व राज्य मंत्री सत्येंद्र पाठक जी को श्रद्धांजलि नमन

(शेरा मिश्रा पत्रकार विजयराघवगढ़ कटनी)