छतरपुर

बकस्वाहा में नेत्र चिकित्सालय के लिए भूमि दानदाता का मुनि श्री श्रुतेश सागर एवं मुनि श्री सुश्रुत सागर जी महाराज के सानिध्य में हुआ समाधि मरण

हजारों लोगों ने दी अंतिम विदाई

बकस्वाहा। नगर के इतिहास में पहली बार युगल मुनि के सानिध्य में छुल्लक श्री 105 सुपदम सागर जी महाराज पूर्व नाम श्रेष्ठी श्रावक मास्टर पदमचंद जी का संलेखना पूर्वक समाधि मरण हुआ। जिसमें हजारों की तादाद में लोगों ने मृत्यु को महोत्सव मनाते हुए अंत्येष्टि में नम आंखों से श्रद्धांजलि प्रदान की।

सरल सहज मिलनसार और दानवीर प्रकृति के थे मास्टर श्री पदमचंद-
मास्टर श्री पदमचंद जैन बहुत ही सरल सहज मिलनसार और दानवीर प्रकृति के व्यक्तित्व के धनी थे। शिक्षक के रूप में बक्सवाहा क्षेत्र में सेवायें देते हुए उनके द्वारा अनेक विद्यार्थियों को ऊंचाइयों के शिखर पर पहुंचाया। आज उन सभी विद्यार्थियों और नगर वासियों के मुख से उनके जीवन की स्मृतियों का गुणगान उनकी अंतिम यात्रा में लोगो ने किया। उनके जीवन में उन्होंने अनेक लोगोंका उपकार किया। उनके दरवाजे पर सहयोग के लिए आने वाले प्रत्येक व्यक्ति की उन्होंने यथा संभव मदद की।

बकस्वाहा को ऊंचाइयों पर ले जाना था लक्ष्य-
उनके मन में सदैव यह पीड़ा रहती थी कि बक्सा क्षेत्र बहुत ही गरीब है और इस क्षेत्र के विकास के लिए उनके मन में सदैव चिंता बनी रहती थी उन्होंने इसके लिए बकस्वाहा में बड़े नेत्र चिकित्सालय बनाने की रूपरेखा रखी। और इसके लिए परम पूज्य आचार्य श्री सुनीलसागर जी महाराज के सानिध्य में राजस्थान किशनगढ़ में उन्होंने अपने लगभग 3 करोड़ कीमत की तीन एकड़ जमीन नेत्र चिकित्सालय के लिए दान करने की घोषणा की। और आज उनके पुत्र जैन समाज के अध्यक्ष संजय कुमार जैन ने अंतिम समय में दो एकड़ जमीन शिक्षा के लिए दान देने की घोषणा की। क्षेत्रीय जनमानस में नेत्र चिकित्सालय की घोषणा के बाद से ही बक्सवाहा क्षेत्र के विकास की नई संभावनाओं की आस जगी है। और इसका पूरा श्रेय आचार्य श्री सुनीलसागर जी महाराज एवं मास्टर पदमचंद जी को जाता है।

युगल मुनि को उनके अंतिम समय का हो गया था आभाष-
बकस्वाहा में चातुर्मास कर रहे युगल मुनि श्री श्रुतेश सागर जी महाराज एवं मुनि श्री सुश्रुत सागर जी महाराज को एक दिन पहले ही मास्टर पदमचंद जी अंतिम समय का आभास हो गया था। मास्टर पदमचंद जी ने परिवार वालों के समक्ष अपने वस्त्र उतार कर भगवान की शरण में जाने की इच्छा जाहिर की।और परिवार के सभी सदस्यों ने उनको मंदिर जी लाकर मुनि श्री के चरणों में समर्पित कर दिया। 5 सितंबर को 1.00 बजे युगल मुनि ने सर्व समाज और परिवार जनों की सहमति से मास्टर पदमचंद जी को छलक दीक्षा प्रदान की और उनका श्री सुपदमसागर नामकरण हुआ। शाम 5:48 पर छुल्लक श्री सुपदमसागर ने भगवान का स्मरण करते हुए मुनि श्री के चरणों को नमस्कार करते हुए अपना देह त्याग दिया।

मेघ इंद्रो द्वारा किए गए चमत्कार की जन जन में बना रहा चर्चा का विषय
बक्सवाहा में विराजमान तपस्वी युगल मुनिराज श्री श्रुतेश सागर जी महाराज एवं मुनि सुश्रुत सागर जी महाराज के द्वारा मास्टर पदमचंद जी को छुल्लक दीक्षा दी गई। और उसके बाद से ही शीतल सुरम्य वातावरण देखा गया। देह त्याग के बाद से ही इंद्रो ने पानी वर्षा कर उत्सव मनाया। लेकिन इन्द्रो द्वारा मनाए जा रहे उत्सव ने सभी के मन में चिंताएं की रेखा भी खींच दी थीं। कि ऐसी वारिश में कैसे डोला जाएगा और अंतिम संस्कार होगा। सभी ने मुनिराज के समक्ष शंका जाहिर की। मुनि श्री श्रुतेश सागर जी एवं मुनि श्री सुश्रुत सागर जी महाराज ने मुस्कुराते हुए कहा । आप लोग इसकी चिंता न करें। पानी की क्या मजाल जो रत्नत्रय धारी आचार्य और मुनिराज के सामने पानी गिर जाए। और सुबह जैसे ही 8 बजे मंदिर जी युगल मुनिराज डोला के आगे युगल मुनिराज ने कदम रखे। वैसे ही अचानक वारिश बंद हो गई। और अंतिम संस्कार के दौरान मानो घनघोर बादलों के बीच इन्द्रो ने मात्र फुहारों से छुल्लक श्री सुपदमसागर जी महाराज को श्रद्धांजलि दी। घनघोर बादलों के छाए होने के बावजूद भी श्री सुपदमसागर जी महाराज को अग्नि की एक बूंद भी नहीं छू पाई। मुनि श्री श्रुतेश सागर जी महाराज एवं मुनि श्री सुश्रुत सागर जी महाराज के इस चमत्कार की चर्चा आज पूरे दिन नगर में छाई रही।

पहली बार हजारों लोग रहे अंतिम यात्रा में शामिल-
बक्सवाहा नगर के इतिहास में पहले युगल मुनिराज के सानिध्य में समाधि मरण हुआ। समाधि ब्रांड के पश्चात अंतिम डोला में जैन समुदाय के अलावा भी क्षेत्र और नगर के हजारों लोग अंतिम यात्रा में शामिल हुए और सभी ने नाम आंखों से मास्टर पदमचंद वर्तमान नाम छुल्लक श्री सुपदमसागर जी महाराज को श्रद्धांजलि दी। आज तक के बक्सवाहा नगर के इतिहास में इतनी बड़ी भीड़ हजारों की तादाद में किसी के भी अंतिम यात्रा में नहीं देखी गई। इसमें सभी वर्गों के लोगो ने भाग लिया।

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