आध्यात्मिक

मन में निर्मल विचार के लिए सत्संग जरुरी: सिद्धाश्रम रत्न बहिन पूजा शुक्ला जी

डेस्क न्यूज। मन की निर्मलता के लिए सत्संग बहुत जरुरी हैं और जब हमारा मन निर्मल होगा तभी तो हम अपने आत्मा जी जननी माता आदिशक्ति जगतजननी जगदम्बे की आराधना कर पाएंगे, तभी तो हमारा अंततः करण आनन्द से ओतप्रोत होगा। वह आनन्द जिसे पाने के लिए बड़े-बड़े साधू संन्यासी भी तरसते हैं। मन में जब निर्मल विचार उत्पन्न होते हैं, तो हम अपने आपमें एक अनजाने से सुख की अनुभूति करते हैं जैसे कि पूर्णिमासी का चन्द्रमा अपने बिम्ब को देखकर आनंदित रहता हैं।

सदगुरुदेव परमहंस योगिराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने चिंतन प्रदान किया हैं कि “माता भगवती आदिशक्ति जगतजननी जगदम्बा की आराधना देवाधिदेव भी करते हैं। माता जगदम्बे से बढ़कर कोई नहीं हैं, जिनकी पूजा हर काल में हुई हैं और जब भी जरुरत पड़ी हैं, मानवता ने जब भी माँ को पुकारा हैं, तो उनकी कृपा से कोई भी बंचित नहीं रहा हैं उस ममतामई माँ को सच्चे मन से पुकारने की आवश्यकता हैं, अपने जीवन को विकारों से मुक्त करने की आवश्यकता हैं, अन्यथा उनकी कृपा से हमेशा वंचित रहोगे।

अंतः मन को निर्मल और पवित्र बनाए रखो, बुरे विचारों और बुरी इच्छाओं का सर्वथा त्याग कर दो, तब अंततःकरण से माँ को पुकारोगे तो माँ तुम्हारी पुकार अवश्य सुनेंगी।

(लेखक एवं विचारक- सिद्धारत्न बहिन पूजा शुक्ला जी केंद्रीय अध्यक्ष भगवती मानव कल्याण संगठन भारत)

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