छतरपुरमध्यप्रदेशसागर संभाग

पर्युषण पर्व संपन्न,आत्म आराधना में लीन रहे श्रावक, निज आत्मा में लीन होना ही उत्तम ब्रह्मचर्य

पालकी महोत्सव, क्षमावाणी पर्व एवं शासकीय सेवकों का सम्मान 19 सित. को

छतरपुर। जैन धर्मावलंबियों के आत्म आराधना के दस दिवसीय पर्युषण पर्व का समापन मंगलवार 17 सितंबर को विविध धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ हर्षोल्लास से हो गया।अब 19 सितंबर को नगर में श्रीजी की भव्य पालकी निकलेगी तथा क्षमावाणी पर्व धूमधाम से मनाया जाएगा। इसी दिन रात्रि में अतिशय क्षेत्र डेरापहाड़ी जैन मंदिर में शासकीय अधिकारियों तथा कर्मचारियों का आत्मीय सम्मान एक गरिमामयी आयोजन में किया जाएगा।

प्रो सुमति प्रकाश जैन ने बताया कि जैन धर्मावलंबियों ने आत्म आराधना के पर्वराज पर्युषण पर दस धर्मों का पालन नियम तथा हर्षोल्लास के साथ किया हैं। पर्युषण पर्व के दसवें और अंतिम दिन बड़े जैन मंदिर, हटवारा जैन मंदिर, अतिशय क्षेत्र डेरा पहाड़ी, चेतगिरी जैन मंदिर,ग्रीन एवेन्यू जैन मंदिर आदि में पूजन ,अभिषेक और भव्य आरती हुई, इसमें बच्चों और बड़ों ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया।

डा. जैन ने बताया कि क्षमावाणी पर्व में विगत में हुई भूलों के लिए एक दूसरे से क्षमा मांगते हैं तथा अपना मनोमालिन्य दूर कर फिर सद्भाव तथा सौहार्दपूर्वक संबंध निर्वहन करते हैं। आज १२वें तीर्थंकर देवाधिदेव वासुपूज्य भगवान का मोक्ष कल्याणक पर्व, अनंत चतुर्दशी पर्व तथा दसवां पर्व उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म विधि विधान से मनाया गया।

‘उत्तम’ ब्रह्मचर्य’ का अर्थ है निजात्मा और ‘चर्य’ का अर्थ है आचरण करना या लीन होना। अतः ब्रह्मचर्य से तात्पर्य निज आत्मा में लीन होना। उत्तम ब्रह्मचर्य मन लावे, नरसुर सहित मुक्ति फल पावे’। ब्रह्म के मायने हैं ऐसी आत्मलीनता जिसमे बाहर के पदार्थों के प्रति कोई आसक्ति ना रह जाए।

श्री जितेन्द्र शास्त्री ,सांगानेर अपने प्रवचन में कहा कि जब हम आत्म स्वभाव से परिचित होते है, विषयों के प्रति अनासक्त में होते है और देहासक्ति से ऊपर उठ कर आत्मानुराग से भर जाते है तो यही सही मायने में ब्रह्मचर्य है। मन की मलिनता को हटाने के लिए हमें ये चार उपाय करना चाहिए: स्वस्थ मानसिकता, पांचों इंद्रियों पर संयम, कल्याण मित्र का संसर्ग और भगवान की भक्ति।इन उपायों के माध्यम से हमारे मन के विकार दूर होंगे और हम अपने जीवन को अच्छा बना सकेंगे।

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