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बिरसा मुंडा की जयंती पर छ: घंटे इंतजार के बाद नहीं पहुंची एम्बुलेंस, 16 वर्षीय आदिवासी बालिका की मौत

मध्यप्रदेश। छतरपुर जिले के बकस्वाहा में स्वास्थ्य सेवाओं की खस्ताहाली का एक और दु:खद चहरा सामने आया है, जहां शुक्रबार को हुई घटना ने बकस्वाहा अस्पताल के इलाज पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। मामला बकस्वाहा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में इलाज के अभाव और एम्बुलेंस की देर से उपलब्धता के कारण 16 वर्षीय आदिवासी बालिका जानकी आदिवासी ने दम तोड़ दिया।

प्राप्त जानकारी के अनुसार सुनवाहा निवासी हरिदास की बेटी जानकी आदिवासी (16) को उल्टी-दस्त और पेट फूलने की शिकायत के बाद मंगलवार सुबह करीब 11 बजे परिजन उसे बक्सवाहा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र लेकर पहुंचे। अस्पताल में शुरुआती जांच के बाद बालिका को एक वाटल चढ़ाई गई। दोपहर 1 बजे डॉक्टरों ने उसकी स्थिति को गंभीर बताते हुए दमोह जिला अस्पताल रेफर कर दिया। रेफर पर्ची बन जाने के बाद परिजन दोपहर 2 बजे से एम्बुलेंस का इंतजार करते रहे, लेकिन एम्बुलेंस देर शाम करीब 7 बजे पहुंची। इस बीच बालिका की हालत लगातार बिगड़ती गई और इलाज के अभाव में उसने दम तोड़ दिया।

बालिका का इलाज नहीं हुआ, परिजनों का आरोप-
जानकी के पिता हरिदास और मां सुनीता का कहना है कि अस्पताल में बालिका को समय पर सही इलाज नहीं मिला। वे यह कहते हुए रो पड़े कि उनकी बेटी इलाज के लिए हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाती रही लेकिन किसी ने उनकी नहीं सुनी। परिजनों ने अस्पताल प्रबंधन पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए कहा कि अगर समय पर इलाज और एम्बुलेंस मिल जाती तो उनकी बेटी की जान बचाई जा सकती थी।

अस्पताल प्रशासन का बयान-
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के चिकित्सा अधिकारी डॉ. सत्यम असाटी ने बताया कि जानकी को उल्टी-दस्त और पेट फूलने की शिकायत के साथ भर्ती किया गया था। प्राथमिक इलाज के बाद उसकी स्थिति सामान्य हो रही थी लेकिन अचानक तबीयत बिगड़ने के कारण उसे दमोह रेफर किया गया। एम्बुलेंस की देरी पर उन्होंने कोई ठोस जवाब नहीं दिया।

क्षेत्र में आक्रोश, व्यवस्थाओं पर सवाल-
घटना के बाद क्षेत्र में आक्रोश है। सुनवाहा के ग्रामीण और परिजन दोषियों पर कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। इस दर्दनाक घटना ने स्वास्थ्य सेवाओं की बदतर स्थिति को उजागर कर दिया है। जहां पूरा देश भगवान बिरसा मुंडा जयंती मना रहा था, वहीं एक 16 वर्षीय आदिवासी बालिका इलाज के अभाव में हाथ जोड़कर दम तोड़ रही थी। यह घटना प्रशासन की संवेदनहीनता और बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं पर एक कड़ा सवाल खड़ा करती है। बलिका के पिता हरिदास आदिवासी का कहना है कि
इस घटना ने शासन-प्रशासन के स्तर पर जवाबदेही और सुधार की मांग को तेज कर दिया है। स्थानीय लोगों का कहना है कि स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार नहीं हुआ, तो ऐसी घटनाएं लगातार होती रहेंगी।

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