डॉ० घनश्याम भारती ने राष्ट्रीय संगोष्ठी में दिया व्याख्यान
समाज, संस्कृति एवं राष्ट्र तथा रांगेय राघव का कथा कर्म विषय पर किया गया विचार मंथन

गढ़ाकोटा रिपोर्टर। शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय गढ़ाकोटा के हिंदी विभाग के प्रोफेसर डॉ० घनश्याम भारती ने डॉ० हरीसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर के हिंदी विभाग द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के द्वितीय सत्र में समाज, संस्कृति एवं राष्ट्र तथा रांगेय राघव का कथा कर्म विषय पर अतिथि वक्ता के रूप में अपना मौलिक व्याख्यान दिया।
अपना उद्बोधन देते हुए डॉ० घनश्याम भारती ने कहा की रांगेय राघव का कथा साहित्य बृहद है। उन्होंने हिंदी संसार को 39 उपन्यास तथा 11 कहानी संग्रहों में संग्रहीत कई कहानियां लिखीं। इन उपन्यास और कहानियों में भारतीय समाज और संस्कृति का विस्तार से वर्णन हुआ है। उनके उपन्यास और कहानियों में लोकजीवन की विभिन्न समस्याओं का चित्रण हुआ है। रांगेय राघव के चर्चित उपन्यासों में घरौंदे, प्रोफेसर, आखिरी आवाज, विषादमठ, हुजूर, मुर्दों का टीला, पक्षी और आकाश, रैन और चंदा, धरती मेरा घर, कब तक पुकारूं आदि उपन्यासों का नाम प्रमुखत: के साथ लिया जाता है। 
उनकी कहानियों में प्रमुख हैं अभिमान, रोने का मोल, पिसनहारी, गूंज, समुद्र के फैन , देवदासी, नरक, पेड़, कमीन, पंच परमेश्वर, प्रवासी, अंगारे न बुझे, अभिमान , रोने का मोल, आवारा, दिवालिए आदि। डॉ० भारती ने अपना उद्बोधन देते हुए कहा कि रांगेय राघव ने कवि, उपन्यासकार, नाटककार, निबंधकार, कहानीकार, अनुवादक, समाजशास्त्री तथा रिपोर्ताज लेखक के रूप में अपनी कलम चलाकर हिंदी साहित्य को समृद्ध किया। बंगाल के अकाल पर केंद्रित उनका रिपोर्ताज तूफानों के बीच उनके द्वारा लिखी एक चर्चित कृति है।इन्होंने हिन्दी साहित्य को लगभग 142 कृतियां लिखकर समर्पित की। प्रगतिशील लेखकों में डॉ० रांगेय राघव का नाम सम्मान के साथ लिया जाता है।
हिंदी विभाग द्वारा आयोजित इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में कुलपति प्रोफेसर नीलिमा गुप्ता, प्रोफेसर चंदाबेन, प्रोफेसर आनंद प्रकाश त्रिपाठी, डॉ० हिमांशु कुमार, प्रोफेसर राजेंद्र यादव, डॉ० अफरोज बेगम, डॉ० अरविंद कुमार, डॉ० संजय नाईनवाड, डॉ० शरद सिंह, प्रख्यात लोक साहित्य मर्मज्ञ प्रोफेसर श्याम सुंदर दुबे, प्रोफेसर मुन्ना तिवारी (बुंदेलखंड विश्वविद्यालय झांसी), डॉ० निधि अग्रवाल(झांसी), डॉ० अचला पांडेय(झांसी), डॉ०बहादुर सिंह परमार (छतरपुर), डॉ० शरद सिंह (सागर), डॉ० आशुतोष मिश्र (दिल्ली विश्वविद्यालय), प्रोफेसर नीरज खरे(काशी हिंदू विश्वविद्यालय), डॉ० लक्ष्मी पांडेय(सागर), टीकाराम त्रिपाठी, डॉ०गजाधर सागर मुख्य रूप से उपस्थित थे। संचालन डॉ० संजय नाईनवाड ने किया तथा आभार शोधार्थी शुभांगी ने व्यक्त किया।











