नव संवत्सर पर हुआ कार्यक्रम का आयोजन

छतरपुर। भारतीय नव वर्ष के स्वागतार्थ भारतीय शिक्षण मंडल महाकौशल प्रान्त एवं श्री कृष्णा विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वाधान में विश्वविद्यालय के सभागार में व्याख्यान माला का आयोजन किया गया ।
कार्यक्रम का प्रारम्भ मंचासीन अतिथियों विश्वविद्यालय के कुलाधिपति महोदय डॉ. बृजेंद्र सिंह गौतम, भारतीय शिक्षण मंडल महाकौशल प्रान्त के प्रांत अध्यक्ष एवं विश्वविद्यालय के चेयरमैन डॉ. पुष्पेंद्र सिंह गौतम और सलाहकार डॉ. बी. एस. राजपूत ने माँ भारती एवं सरस्वती जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर दीप प्रज्ज्वलित कर किया। सरस्वती वंदना के गायन के पश्चात भारतीय नव वर्ष पर अपने विचार रखते हुए डॉ. बी. एस. राजपूत ने अपने वक्तव्य में कहा कि भारतीय संस्कृति प्राचीन है, जिसकी लिखित परंपरा के साथ मौखिक परंपरा भी रही है लोकप्रिय कवि घाघ ने अपनी कविताओं के माध्यम से भारत की कृषि, संस्कृति भूगोल और सभ्यता से अवगत कराया। उनकी काव्य पंक्तियों को उत्साह के साथ सुनाते हुये उन्होंने कहा –
भादों की छठ चांदनी, जो अनुराधा होय।
ऊबड़ खाबड़ बोय दे, अन्न घनेरा होय।।
अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि।
चंदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि।।
सोम सुक्र सुरगुरु दिवस, पौष अमावस होय।
घर घर बजे बधावनो, दुखी न दीखै कोय।।
भारतीय शिक्षण मंडल, महाकौशल प्रांत के प्रांत अध्यक्ष माननीय डॉ. पुष्पेन्द्र सिंह गौतम ने अपने वक्तव्य में कहा कि यह नववर्ष हमारा नववर्ष है, सनातनियों का नववर्ष है। ब्रह्मा जी ने आज के दिन सृष्टि की रचना की थी, आज का दिन गुड़ी पड़वा के रूप में मनाया जाता है, गुड़ी पड़वा मराठी शब्द है जिसमें गुड़ी का अर्थ है अर्थात ‘झंडा एवं विजय’ और पड़ाव का अर्थ है ‘प्रतिपदा तिथि’ यह दिन फसल दिवस का भी प्रतीक है।
इसी दिन से चैत्र नवरात्रि प्रारंभ होतीं है जिनका हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नववर्ष आरंभ होता है। हिन्दू नववर्ष जिसे विक्रम संवत कहा जाता है इसका आगमन नये उत्साह और नई संभावनाओं के द्वार खोलता है। महाराज विक्रमादित्य ने विक्रम संवत का प्रारंभ किया, इस वर्ष को ‘नव संवत्सर’ कहते हैं। हम सभी सनातनियों को अपनी सनातन धर्म की ध्वजा पताका देश, दुनिया में लहराने का समय है हमें अपनी संस्कृति पर गर्व करना चाहिए सनातन संस्कृति के प्रचार प्रसार करने को अपना मूल धर्म मानना चाहिए।
विश्वविद्यालय के कुलाधिपति डॉ. बृजेन्द्र सिंह गौतम ने अपने वक्तव्य में कहा कि भारतीय संस्कृति की कहानी एकता, समाधानों के समन्वय एवं प्राचीन परंपराओं के पूर्ण सहयोग और उन्नति की कहानी है। हमारी भारतीय संस्कृति में अध्यात्म एवं भौतिकता का समन्वय है, भारतीय संस्कृति आदिकाल से ही अपने परंपरागत अस्तित्व के साथ अजर-अमर बनी हुई है। हमारे महान पराक्रमी राजा विक्रमादित्य ने शकों को पराजित कर विक्रम संवत की शुरूआत 57 ई.पू. में की थी। ईसवीं में 57 का योग करके हम संवत की गणना कर सकते हैं। विक्रम संवत हिन्दुओं के लिए एक ऐतिहासिक कैलेंडर है जिसे हिन्दू पंचांग भी कहते हैं इस पंचांग के आधार पर भारत के उत्तरी, पश्चिमी और मध्य भाग में व्रत और त्योहार मनाये जाते हैं।
कार्यक्रम का संचालन राजनीति विज्ञान की सहायक प्राध्यापक श्रीमती रीना शर्मा ने एवं हिन्दी विभाग के विभागाध्यक्ष आभार डॉ. आशीष कुमार तिवारी ने किया। इस कार्यक्रम में सभी विभागों के प्राध्यापगण एवं कर्मचारीगण उपस्थित रहे।