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नियत में खोट: मामला किशोर सागर तालाब का, संघर्ष समिति की आढ़ में रसूखदारों के कब्जे बचाने की साजिश- धीरज चतुर्वेदी छतरपुर बुंदेलखंड

मध्यप्रदेश। छतरपुर के ऐतिहासिक तालाबों को बचाने के लिये कथित संघर्ष समिति की नियत पर सवाल उठना शुरू हो गये है। समिति के सदस्य उस किशोर सागर तालाब के कब्जेधारियों को बचाने का कुचक्र रच रहे है जिस तालाब को अतिक्रमण मुक्त करने के लिये एनजीटी के आदेश का पालन कराने के लिये द्वितीय अपर सत्र न्यायाधीश श्री हिमांशु शर्मा की न्यायालय 8 अक्टूबर 2023 को आदेश पारित कर चुकी है।

एनजीटी के आदेश में स्पष्ट उल्लेख है कि किशोर सागर तालाब में वर्ष 1978 के बाद के सभी निर्माण तोड़े जाये। आदेश के मुताबिक तालाब के मूल रकवा, भराव क्षेत्र बाद 10 मीटर के ग्रीन एरिया से अतिक्रमण हटाने है लेकिन छतरपुर का प्रशासन इस आदेश की अवमानना कर रहा है।

न्यायालय के आदेश की पवित्रता, मान, सम्मान, गरिमा बनी रहे है इसके लिये पूरा मामला सुप्रीम अदालत भेजा जा रहा है। इधर शहर के कुछ जागरूको नें तालाबों को बचाने के संघर्ष समिति के माध्यम से आवाज़ उठाना शुरू की है लेकिन इसमें कई पेंच नजर आने शुरू हो गये है। कुछ लोग किशोर सागर तालाब में अतिक्रमण को साफ नकार रहे है जबकि एनजीटी नें तालाब में अवैध अतिक्रमण को मानते हुए इन्हे हटाने का आदेश पारित किया है। यहाँ तक कि अतिक्रमण हटाने की जिम्मेदारी छतरपुर सत्र न्यायालय को सोंपी है।

जो लोग तालाब में कब्जो को नहीं स्वीकार रहे उनकी दलीले भीं चौकने जैसी है। प्रशासन को गुमराह करने वाली दलील में तालाब के रकवा को मुख्य सड़क के दूसरे पार बताया जा रहा है। इस कुचक्र के कारण शहर के अन्य तालाबों में अतिक्रमण तो माना जा रहा पर उस किशोर सागर तालाब में अवैध कब्जे नहीं माने जा रहे जिसे लेकर एनजीटी आदेश जारी कर चुका है। तभी सवाल उठते है कि क्या तालाब संघर्ष समिति के कुछ सदस्यों की नियत में खोट है? जो किशोर सागर तालाब में रसूखदारो के कब्जो को बचाना चाहते है? इन रसूखदारों के कारण ही छतरपुर का प्रशासन बेईमान होकर कठपुतली बना हुआ है और अदालत का आदेश अपमानित होकर छटपटा रहा है।

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