मध्यप्रदेशसागरसागर संभाग

रहस मेला पर विशेष: राजा मर्दन सिंह जूदेव की राज्यारोहण की स्मृति में बसंत पंचमी से होली तक महोत्सव शुरू

217 साल से प्राचीन प्रसिद्ध रहस मेले का हुआ आगाज

गढ़ाकोटा रिपोर्टर। प्राचीन रहस मेले की शुरुआत बसंत पंचमी को चावड़ी इमारत पर ध्वजारोहण के साथ होगी। बसंत पंचमी से शुरू मेला 13 मार्च होली तक चलेगा। मेले में प्रदेश के कोने-कोने से लोग शिरकत करेंगे। इस मेले में पशु धन के अलावा कई अनोखी चीजें होती है।

बुजुर्गों के अनुसार मेले का इतिहास सन 1809 में रहस मेले की शुरुआत वीर बुंदेला महाराज के पौत्र राजा मर्दन सिंह जूदेव के राज्य रोहण की स्मृति में हुई थी। पहले गढ़ाकोटा को हृदय नगर के नाम से जाना जाता था। गधेरी नदी एवं सुनार नदी के बीच बसे इस शहर में आने वाले प्रथम रहवासी आदिवासी थे। उनके समय से यह शहर एक गढ़ था। इसलिए इसका नाम गढ़ाकोटा पड़ा।

दूसरी किवदंती है 17वीं शताब्दी में यह शहर राजपूत सरदार चंद्रशाह के कब्जे में आया। जिसने यहां एक सुंदर किला बनवाया जिसे कोटा कहा जाता था। किंतु किले के निर्माण के बाद इसका नाम गढ़ाकोटा हो गया सन् 1703 में छत्रसाल के पुत्र हिरदेशाह ने राजपूत स्वामी को हटाकर किले पर कब्जा कर लिया।

माना जाता है कि हिरदेशाह का इस गढ़ाकोटा से काफी लगाव था। इस कारण यहां उसने एक नगर का निर्माण कराया। जिसका नाम हिरदेनगर रखा गया था। उनकी मृत्यु के बाद प्रदेश के अधिकार के संबंध में एक विवाद उठा और उसके पुत्र पृथ्वीराज ने पेशवा की सहायता से इस प्रदेश को अपने अधिकार में ले लिया। सन् 1785 में महाराजा मर्दन सिंह जू देव गद्दी के उत्तराधिकारी बने।

इतिहासकारों के अनुसार महाराजा मर्दन सिंह एक चतुर शासक थे। उन्होंने गढ़ाकोटा एवं उसके आसपास किले और बावड़ी बनवाई जो रमना वन परिक्षेत्र में आज भी है। जू देव ने अपने शासनकाल 1809 में गढ़ाकोटा में बसंत पंचमी से होली तक पशु मेला भरवाया। जो निरंतर आज भी जारी है जिसे आज रहस मेले के नाम से जाना जाता है इस साल मेले का यह 217 वां साल है, गौरतलब है कि क्षेत्रीय विधायक श्री गोपाल भार्गव ने कुछ वर्षों से इस मेले में किसान मेला, पंचायती राज मेला, कृषि मेला आयोजित करवाना शुरू किया।

क्यों पड़ा मेले का नाम रहस मेला ?-
उस समय देश में अंग्रेजों का राज था। उनकी नजरों से बचकर उनके विरुद्ध लड़ने की योजना बनाते थे। रहस मेले में कई राज्यों की राजा पशुओं की खरीद बिक्री के लिए आते थे। इसलिए मेले में पशुओं खास तौर पर हाथी-घोड़ा खरीदने के बहाने अन्य प्रदेशों से आने वाले राजा एक दूसरे से मिलकर अंग्रेजों से लड़ने की योजना बनाते थे और मेले में योजनाओ का रहस्य छुपा था और अंग्रेजों को लगता था राजा पशुओं को लेने व बेचने के लिए इस मेले में जाते हैं इसलिए इसका नाम रहस मेला पड़ा।

मेले के बारे में लोगों ने बताया कि सुनार एवं गधेरी नदी के संगम तट पर बसा गढ़ाकोटा नगर अपने अजय दुर्ग और किला जिसके कारण अपनी प्राचीनता को दर्शाता है। राजा शासक बने और उन्होंने गढ़ाकोटा किलेे में शासन किया उन्होंने 100 फीट ऊंची तथा 15 फीट लंबाई चौड़ाई की एक ऐसी बुर्ज बनवाई जिस पर चढ़कर सागर एवं दमोह के जलते हुए दिए को देखा जा सकता था और 1809 में एक विशाल व्यवसायिक, धार्मिक, सांस्कृतिक महत्व के मेले के आयोजन की नींव रखी। साल 2003 में विधायक पं. गोपाल भार्गव कृषि मंत्री बने। तब से लेकर मेला को विराट भव्य स्वरूप प्रदान किया जा रहा है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
04:22