भविष्य की आहट/ विस्फोटक के ऊपर बैठी दुनिया के चारों ओर आंतकी जमातें: डा. रवीन्द्र अरजरिया

डेस्क न्यूज। देश-दुनिया में कट्टरपंथियों की जमातें ईश निंदा के आरोप लगाकर निरंतर हमलों को अंजाम दे रही है। शरिया कानून मानने वाले राष्ट्रों के अलावा अन्य गणतंत्र देशों में भी भीड की शक्ल में जमा होकर असामाजिक तत्वों के समूह न केवल मनमाने आरोपों का हल्ला मचाकर लोगों की जान ले रहा है बल्कि खास सम्प्रदाय में उन्माद फैलाकर काफिरों को नस्तनाबूत करने के लिए उकसाता भी है।
साइबर युग में संचार साधनों का उपयोग करके आतंक को पनाह देने वाले देश फर्जी पोस्ट डालकर मजहब की दुहाई दे रहे हैं ताकि अमन, चैन और खुशहाली को दफन किया जा सके। राजस्थान के उदयपुर का मामला हो या फिर बंगलादेश के उत्सव मण्डल की जिन्दगी का सवाल। अमेरिका में कट्टरपंथियों की भीड का हिंसक होना हो या फिर ब्रिटेन में कानून तोडने की घटनायें। लाल सागर में समुद्री लुटेरों का लहू डूबा करतब हो या फिर इजराइल में इस्लामी हमला। समूची दुनिया में आतंक की इबारत तले जबरन गुलाम बनाने की सियासत चल रही है। असामाजिक तत्वों की जमातों व्दारा मजहब के नाम पर दुनिया भर में नफरत की आंधियां चलाई जा रहीं हैं।
फिलिस्तीन में वहां के लोग मासूम जान की कीमत पर भी हमास को सुरक्षित कर रहे हैं। इजराइल से अपहरित करके लाये गये वहां के नागरिकों में से अधिकांश के शव बरामद हो चुके हैं। बाकी के जिन्दा होने के कोई भी सबूत न मिलने के बाद भी उम्मीद की रोशनी में ब्लैकमेलिंग चल रही है। ऐसा ही हाल बंगलादेश में हिन्दू आबादी के साथ हो रहा है। समूची दुनिया में सिरफिरे अपराधियों ने भीड की शक्ल अख्तियार कर ली है जो लोगों पर अपने पैगम्बर साहब पर टिप्पणी करने, ईश निन्दा करने, कुरान का अपमान करने, इस्लाम की खिलाफियत करने जैसे मनगढन्त आरोप लगाकर सरेआम कत्लेआम मचा रही है।
बंगलादेश की सरकार के नुमाइन्दे तो ऐसे लोगों की खुलकर तरफदारी करने, उन्हें पूरे जोरशोर से बचाने तथा जुल्म की घटनाओं को बढावा देने का काम कर रहे हैं। दूसरी ओर पडोसी की तर्ज पर ही देश के अन्दर मनमानी करने वाले वक्फ बोर्ड ने देश की राजधानी में ही 246 सरकारी सम्पत्तियों पर दावा ठोक दिया है। इस पर तीन मंत्रालयों के अधिकारियों व्दारा संयुक्त समिति के समक्ष वस्तुस्थिति स्पष्ट की तो विपक्षी सदस्यों ने स्पष्टीकरण देने वालों पर ही मनमाने प्रश्नों की बौछार कर दी।
इतिहास गवाह है कि ब्रिटिश शासनकाल के दौरान 1911-12 में दिल्ली की नई राजधानी बनाने हेतु भूमि अधिग्रहीत की गई थी जिसे स्वाधीनता के बाद दिल्ली वक्फ बोर्ड ने अधिग्रहीत सम्पत्तियों में से कई को वक्फ सम्मत्ति घोषित कर दी थी। वर्तमान में 108 सम्पत्तियां भूमि एवं विकास कार्यालय तथा 138 सम्पत्तियां दिल्ली विकास प्राधिकरण के पास होने के बाद भी उन पर वक्फ बोर्ड अपना स्वामित्व निरूपित किये है। मालूम हो कि राष्ट्रीय राजधानी के निर्माण हेतु कुल 341 वर्ग किलोमीटर भूमि का अधिग्रहण किया गया था। उससे प्रभावित लोगों को उचित मुआवजे का भुगतान भी किया जा चुका था परन्तु वक्फ बोर्ड अपने असीमित अधिकारों का उपयोग करके निरंतर मनमानियां कर रहा है।
कट्टरपंथियों व्दारा फैलाये जाने वाला आतंक जहां देश में अराजकता का वातावरण निर्मित कर रहा है वहीं दुनिया भर में हिजबुल्लाह, हूती, हमास, अलकायदा, आईएसआईएस जैसे संगठन तो निरंतर खूनी होली खेल रहे हैं। तिस पर हथियारों के सौदागरों ने पत्ते पर कुलाट खाने की अपनी आदत में इजाफा करके अब हवा में ही कुलाट खाना शुरू कर दिया है। दो देशों को आपस में लडाना, असुरक्षा का वातावरण निर्मित करना, वैमनुष्यता फैलाना तथा पर्दे के पीछे से विष पौध रोपित जैसे कृत्यों में लिप्त स्वार्थी देशों को केवल और केवल चिन्ता है तो अपने हथियारों की बिक्री, उनकी मरम्मत और रखरखाव के नाम पर धन बटोरने की। ऐसे में जेहाद का नाम लेकर पवित्र ग्रन्थ की मनमानी व्याख्यायें करने वाले कथित जानकार वास्तव में हथियार सप्लाई करने वालों के खास सिपाहसालार बनकर क्रास एजेन्ट का बखूबी काम कर रहे हैं।
कहा तो यहां तक जा रहा है कि बंगलादेश के कथित आंदोलनकारियों ने विदेश में जाकर अमेरिकन एजेन्ट्स तथा पाकिस्तान के खुफिया तंत्र मुलाकातें की थी। अनेक लोगों के पास विदेशों से भारी रकम भी पहुंचाई गई थी जिनका उपयोग तख्तापलट के लिए किया गया था। गौर से देखा जाये तो भारत की शक्ति बढते ही एशिया में अस्थिरता फैलाने के पाश्चात्य प्रयासों में युध्द स्तर की तेजी दिखाई पडती है। अफगानस्तान, श्रीलंका, पाकिस्तान और अब बंगलादेश में लोकतंत्र दम तोड बैठा है। भारत में भी राष्ट्रद्रोहियों की जमातें विपक्ष के मीरजाफिरों के साथ षडयंत्र को अमली जामा पहनाने में जुटीं हैं। मनमानियों के तले अमन पसंदों को रौंदा जा रहा है, खासतौर पर अल्पसंख्यकों को तो मिटाने की पुरजोर कोशिशें हो रहीं हैं।
दुनिया को कट्टरता के आतंकी चेहरे तले झुकाने की षडयंत्र अब खुलकर दिखने लगे हैं। यह सब अचानक नहीं हो रहा है बल्कि दसियों साल की साजिश का परिणाम है। धीरे-धीरे मजबूत होते जनबल ने जैसे ही एकत्रित होते धनबल के साथ बारूदी स्वरूप लिया तैसे ही पूर्व निर्धारित योजना के तहत कट्टरपंथियों ने मजहब के नाम पर इकबाल बुलंद कर दिया और सुलगा दी चिन्गारी। हकीकत तो यह है कि विस्फोटक के ऊपर बैठी दुनिया को चारों ओर से आंतकी जमातों ने घेर रखा है जिसके लिए एक साथ सकारात्मक कदम उठाना निहायत जरूरी है अन्यथा किस्तों में कत्ल होते देर नहीं लगेगी। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।