भविष्य की आहट::समय रहते कुचलना होंगी अमेरिकी चालें/ डा. रवीन्द्र अरजरिया

डेस्क न्यूज। रूस और यूक्रेन के मध्य चल रहे युध्द में शान्ति बहाली के बहाने अमेरिका ने यूक्रेनी खनिज पर कब्जा करने की चालें चलना शुरू कर दी हैं। डोनाल्ड ट्रंप और वोलोडिमिर जेलेंस्की के मध्य हुई चर्चा के दौरान दबाव का माहौल खुलकर सामने आया। ट्रंप ने अपनी दादागिरी दिखाते हुए यूक्रेन के राष्ट्रपति को भारी अपमानित किया।
तीसरे विश्वयुध्द का न्योता देने, लाखों लोगों के जीवन के साथ खेलने और सैनिकों की कमी जैसे आरोपों के सहारे अमेरिका की तानाशाही देखने को मिली। ट्रंप के अलावा अमेरिका के उप-राष्ट्रपति जेडी वेंस ने भी अपने अडियल रवैये से यूक्रेन को धमकी भरे संवादों की भेंट दी। न्यूयार्क की मैनहट्टन कोर्ट के जस्टिस जुआन मर्चेन ने पोर्न स्टार मामले में डोनाल्ड ट्रंप को दोषी पाया था किन्तु खास कारणों से उन्हें बिना शर्त रिहा करना पडा। इसी से अन्दाजा लगाया जा सकता है कि अमेरिका के संविधान मेें अपराधी को भी राष्ट्रपति के सिंहासन पर बैठकर सत्ता चलाने का हक है। ट्रंप ने सत्ता सम्हालते ही दबाव की राजनीति करना शुरू कर दी।
अमेरिका में रहने वाले अवैध भारतीयों को हथकडियों, बेडियों तथा जंजीरों में जकड कर सैन्य विमानों से भेजने, टैरिफ लगाने तथा देश की आन्तरिक नीतियों को प्रभावित करने जैसे कृत्यों से मुख में राम, बगल में छुरी की कहावत चरितार्थ होने लगी है। लम्बे समय से चल रही रूस के साथ प्रतिव्दन्दिता को हाशिये पर छोडकर यूक्रेन पर अप्रत्यक्ष कब्जा करने की नियत से धावा बोलने वाले ट्रंप की कुटिलता अब सार्वजनिक होने लगी है। यूरोप सहित अन्य देशों को भी अमेरिका के नये शासक धमकाने लगे हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ से लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन तक पर शिकंजा कसने की पहल करने वाले अमेरिकी सरदार ने मानवता, विश्व-बंधुत्व और शान्ति को तिलांजलि देने की कार्य शैली अपना ली है। संसार को रक्त रंजित करने की मंशा पलने वाले हथियारों के इस सौदागर को हर हाल में पैसों का अम्बार चाहिए, भले ही उसके लिए अपनों का ही खून क्यों न बहाना पडे।
विलासतापूर्ण जीवन की आकांक्षा पालने वाले इस राष्ट्र ने हमेशा ही दुनिया में युध्द का वातावरण निर्मित किया है। हमास के सामने इजराइल को झुकाकर आतंकवाद के नये अध्याय की शुरुआत की है। बंधक बनाने, ब्लैकमेल करने और जुल्म ढाने वाले आतंकियों को समर्थन देने वाले अमेरिका ने अप्रत्यक्ष में अनेक राष्ट्रों को आन्तरिक कलह में झौंकना शुरू कर दिया है। संसार भर में दहशतगर्दों के पास अमेरिका और चीन के हथियारों की भरमार रहती है। इन हथियारों से वे पहले अपने देश की आन्तरिक सरकारों को इशारों पर नचाते हैं और फिर विदेशों पर हावी होने लगते हैं। इन आसामाजिक गिरोहों को मिसाइलों से लेकर अत्याधुनिक हथियारों तक की आपूर्ति करने में अमेरिका हमेशा ही अग्रणीय रहा है। बंगलादेश में छात्रों को एक नये राजनैतिक दल बनाने से लेकर उसे विकसित करने तक में पर्दे के पीछे से अमेरिकी डालर काम कर रहा है।
भारत के बढते वर्चस्व से घबडाकर अमेरिका ने हमारे सीमावर्ती देशों को अस्थिर करके वहां पर अपने गुर्गे बैठाने शुरू कर दिये हैं ताकि भारत विरोधी वातावरण निर्मित करके नई समस्यायें पैदा की जा सकें। कुटिल चालों के पुरोधाओं के मंसूबों पर पानी फेरते हुए भारत निरंतर प्रगति पथ पर दौडा रहा है। यह भी सही है कि देश के अन्दर बैठे मीर जाफरों की फौज के सहारे दुश्मनों की चालें कभी राजनैतिक गलियारे में शोर मचाने लगतीं हैं तो कभी साम्प्रदायिकता का हल्ला करने लगतीं है। कभी वैमनुष्यता का दावानल जातिगत खाई को ज्वालामुखी में तब्दील करने लगता है तो कभी भाषा, क्षेत्र और सांस्कृतिक कारकों के भूकम्प आने लगते हैं। यह सब अमेरिका जैसे दोगले राष्ट्रों की स्वार्थी नीतियों के परिणाम है जिन्हें लालची दलाल क्रियान्वित करने में गौरव महसूस करते हैं।
राष्ट्रहित, राष्ट्रभक्ति और राष्ट्रवाद के नाम पर वंशवादी लोगों की जमातें विघटनकारी मुद्दों को लेकर सडक से सदन तक गला फाडकर चीखने लगतीं हैं। इनके साथ मुफ्तखोरों की फौज होती है जो सरकारी खजानों से मिलने वाली सुविधाओं पर गुलछर्रे उडा रहे हैं। भारत के साथ मित्रता का दावा और मोदी के साथ गलबहियां करने वाले ट्रंप की कुटिल नीतियों को जवाब देने के लिए उसी की भाषा का प्रयोग आवश्यक हो गया है। अमेरिका के सहयोगी देशों के घुसपैठियों को भी अब देश से हथकडियों, बेडियों और जंजीरों में जकडकर भेजा जाना चाहिए। अमेरिका को दी जाने वाली विशेष सुविधायें बंद की जाना चाहिए। वहां पर काम करने वाली प्रतिभाओं के लिए देश के अन्दर ही वातावरण निर्मित किया जाना चाहिए। अतीत गवाह है कि अमेरिका के माथे पर ब्रिक्स करेन्सी आने की दस्तक से बल पड गये थे।
अमेरिकी डालर के मुकाबले में ब्रिक्स करेन्सी स्थापित करने हेतु शिखर सम्मेलन 2024 में ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका सहित मिश्र, इथियोपिया, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने प्राथमिक स्वीकृति दी थी। आंकडों की बात करें तो ब्रिक्स समूह के साथ दुनिया की 41 प्रतिशत आबादी यानी 3.14 बिलियन लोग, 29.3 प्रतिशत भूमि, सकल घरेलू उत्पादन का 24 प्रतिशत हिस्सा, व्यापार में 16 प्रतिशत की भागीदारी है जो कि एक सशक्त स्थिति को निर्मित करती है। अभी तक दुनिया का 54 प्रतिशत अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार अमेरिका की करेन्सी डालर में होता है जिससे डालर मजबूत है। इस पध्दति से भुगतान हेतु स्विफ्ट बैंक पर दुनिया की निर्भरता बनी हुई है जिसका फायदा अमेरिका हमेशा ही उठाता रहा है।
वर्तमान में स्वार्थ के धरातल पर दुनिया को गुलाम बनाने हेतु ट्रंप की चालें निरंतर अपनी तानाशाही का उदाहरण प्रस्तुत कर रहीं हैं। इजराइल, यूक्रेन, बंगलादेश, भारत सहित अनेक राष्ट्रों में इसके उदाहरण देखने को मिल रहे हैं। ऐसे में समय रहते कुचलना होंगी अमेरिकी चालें अन्यथा दु:खद भविष्य की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकेगा। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।