आलेख एवं विचार

भविष्य की आहट/ पटकथाओं की विवेचना से उजागर होता षडयंत्र: डा. रवीन्द्र अरजरिया

डेस्क न्यूज। दुनिया के बदलते परिदृश्य में भारत की विश्वस्तरीय साख बेहद ऊंचाइयों पर पहुंच रही है। वहीं देश के अन्दर भितरघात करने में जुटी मीर जाफरों की फौज ने अपने विदेशी आकाओं के साथ मिलकर आन्तरिक युध्द हेतु वातावरण तैयार करना शुरू कर दिया है।

एक ओर जम्मू-कश्मीर की नेशनल कान्फ्रेंस की सरकार का धारा 370 राग और दूसरी ओर नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल आफ नागालैण्ड – इसाक मुइवा यानी एनएससीएन-आईएम व्दारा दी गई हिंसक सशस्त्र हमलों की धमकी। तिस पर जातिवादी जहर को जनगणना के नाम पर फैलाने के मंसूबे, कोढ में खाज की कहावत को चरितार्थ कर रही है। वर्तमान में इन तीन पटकथाओं की विवेचना से उजागर होता षडयंत्र तेजी से अपने परिणामात्मक पटाक्षेप की ओर बढता प्रतीत हो रहा है।

नकारात्मक सोच के साथ विध्वंसात्मक राष्ट्रघाती कोशिशों का विस्तार करने वाले लोगों की जमातें, विकासात्मक प्रयासों पर कुठाराघात करने में जुटीं हैं। इंडिया गठबंधन के घटक दल नेशनल कान्फ्रेंस की जम्मू-कश्मीर सरकार ने विधानसभा में धारा 370 समाप्त करने का प्रस्ताव पारित करके संविधानिक व्यवस्था को धता बताने की कोशिश की है। उल्लेखनीय है कि अनुच्छेद 370 तथा 35ए को विगत 5 अगस्त 1019 को भारत की सबसे बडे लोकतांत्रिक सदन लोकसभा और राज्यसभा ने निरस्त कर दिया था।

देश की सर्वोच्च न्यायालय ने भी उसकी समाप्ति पर संवैधानिक मुहर लगा दी थी। ऐसे में राष्ट्रीय एकता और अखण्डता को बल देने वाले संविधान को ही तार-तार करने की घटना ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा में सत्ताधारी पार्टी और उसके गठबंधनात्मक दलों की सोच को ही उजागर किया है। इस असंवैधानिक प्रस्ताव ने अपनी वैधता न होते हुए भी जनमानस में व्देष, अलगाव और वैमनुष्यता के विषवृक्ष को सींचने का काम किया है।

संविधान की पुस्तक हाथ में लेकर वाहवाही बटोरने वालों ने पर्दे के पीछे से इस कृत्य में भागीदारी दर्ज करके अपनी नियत साफ कर दी है। दूसरी ओर देखा जाये तो विगत 3 अगस्त 2015 को एनएससीएन-आईएम ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति में सरकार के साथ एक रूपरेखा समझौते पर हस्ताक्षर किये थे परन्तु हाल ही में एनएससीएन-आईएम के महासचिव टी मुइवा ने एक बयान जारी करके समूचे देश को ही फिर से हिंसक सशस्त्र हमलों की धमकी ही नहीं दी बल्कि तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप की भी वकालत की है। इस मुद्दे को हवा देने की गरज से कांग्रेस ने वक्तव्य जारी करते हुए कहा कि झांसा देना और शासन करना, मोदी की पहचान है।

कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने सोशल मीडिया के एक्स प्लेटफार्म पर एक पोस्ट में कहा कि 3 अगस्त 2015 को नान-बायोलाजिकल प्रधानमंत्री ने दावा किया था कि यह कदम बाजी पलटने वाला साबित होगा जो पूर्वोत्तर को बदल देगा। नौ साल बाद भी हम समझौते के विवरण के बारे में अंधेरे में हैं। अतीत की रोशनी में देखा जाये तो हिंसक उग्रवादी समूहों को देश के अन्दर और बाहर से निरंतर सहयोग, सहायता और संरक्षण दिया जाता रहा है। उल्लेखनीय है कि एनएससीएन सहित अन्य उग्रवादी संगठनों व्दारा अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर तथा असम के नागा बाहुल्य इलाकों को मिलाकर अलग संविधान और अलग झंडे की मांग की जाती रही है जो 3 अगस्त 2015 के समझौते के बाद शान्त हो गई थी।

सूत्रों के अनुसार एनएससीएन- आईएम के महासचिव टी मुइवा के हालिया बयान को उसके चीन स्थित दो सहयोगियों ने तैयार किया है जिनके नाम फुंथिंग शिमरे तथा पामशिन मुइवा है। कहा जाता है कि 90 वर्षीय टी. मुइवा फिलहाल अस्वस्थ हैं और वे दीमापुर के हेब्रोन कैंप में इलाज करवा रहे हैं। बयान में चीन स्थित सहयोगियों ने इस नगा राजनैतिक मुद्दे पर गतिरोध समाप्त करने के लिए तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप की मांग की है।

सन् 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद से ही भारत को अस्थिर करने का डर दिखाने हेतु कुछ मीरजाफरों की पहचान करके पर्दे के पीछे से उग्रवादी, आतंकवादी तथा अलगाववादी संगठन खडे कर दिये थे। यह क्रम यूं तो गुलाम देश की धरती पर ही तैयार किया गया था जिसका पहला स्वरूप विभाजन के दौरान सामने आया। बंगाल में सम्प्रदाय के नाम पर खुलेआम कत्लेआम, पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान में गैरमुस्लिम लोगों की लाशों का अम्बार उस काल का वीभत्स चेहरा था। उसके बाद कभी कश्मीर में आतंकवाद फैला तो कभी पंजाब में खालिस्तान ने सिर उठाया।

कभी नक्सलवाद से मध्यप्रदेश का पूर्वी छोर अशान्त हुआ तो कभी दक्षिण में तमिल समस्या के नाम पर हिंसा फैलाई गई। पूर्वोत्तर राज्यों में अलग से उग्रवादी संगठन पैदा किये गये। आन्तरिक समस्याओं के बाहुल्य को दिखाकर देश की जनता को भयग्रस्त करने का सुनियोजित षडयंत्र चलता रहा। विकास और प्रगति जैसे शब्दों को नौकरशाहों से साथ मिलकर कागजों की शोभा बनाने तक ही सीमित रखा गया। धरातल पर पक्षपात, दूरगामी षडयंत्र और खास तबके की जनसंख्या वृध्दि जैसे कृत्य किये जाते रहे, तो नेपथ्य में विदेशी ताकतों की चरणबंदगी में कीर्तिमानी झंडे गाडने की होड लगी रही। वर्तमान में नगालैण्ड का 27 साल पुराना जिन्न को फिर बोतल से बाहर निकालने का प्रयास होने लगा है जिसमें चीन और चीनी सहयोग से मालामाल हो रहे देश के राजनैतिक दलों ने निर्धारित भूमिका का निर्वहन करना शुरू कर दिया।

सन् 1997 में हुए नागा संघर्ष विराम को समाप्त करके फिर से धमकी में बदल कर अपनों से अपना का खून कराने की रहसल होने लगी है। इस रहसल में शामिल मीरजाफरों की पीठ पर लाल सलाम, सिर पर हरा दुपट्टा और गले में तीन रंग का पंजा होने की खबरें चौराहों से चौपालों तक चटखारे लेकर कही-सुनी जा रहीं है। तिस पर जातिगत जनगणना की वकालत करने वाले अब देश के नागरिकों को वर्चस्व की जंग में झौंकने की तैयारी में जुट गये हैं। सोशल मीडिया पर फर्जी एकाउण्ट बनाकर जातिगत स्वाभिमान को कुरेदने वाले पोस्ट डालकर स्वयं ही दूसरे एकाउण्ट से उस पर टिप्पणी की अनेक घटनायें उजागर हो चुकीं हैं। ऐसा परिदृश्य पैदाकर के विकास हेतु समर्पित लोगों को भी संकीर्ण वैमनुष्यता की कालिख में लपेटे की तैयारी चल रही है। खुलेआम अपराध करने वालों को बचाने हेतु उनके आकाओं व्दारा मानसिक विक्षिप्तीकरण, दिमागी कमजोरी या फिर उत्तेजनात्मक प्रतिक्रिया जैसे कवच पहले ही तैयार कर लिए जाते हैं।

इन्हीं कवचों की इबारत को खास नौकरशाहों की मदद से सरकारी दस्तावेजों में दर्ज करवाकर अपराधियों को सलाखों से बाहर निकालने का जतन निरंतर चल रहा है। ऐसे में देश के वास्तविक बुध्दिजीवियों को अपनी खामोशी ही नहीं तोडना होगी बल्कि षडयंत्रकारियों को कथित बुध्दिजीवियों वाले लबादे से बाहर निकालना भी होगा। तभी देश विरोधी षडयंत्र और षडयंत्रकारियों की पहचान हो सकेगी और राष्ट्र को विश्वमंचीय आकाश पर उडान भरने हेतु पंख मिल सकेंगे। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।

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