श्री कृष्णा विश्वविद्यालय में भगवान बिरसा मुण्डा जी की 150 वीं जयंती पर पुष्पांजलि कार्यक्रम का आयोजन किया गया

छतरपुर। उच्चशिक्षा विभाग, मध्यप्रदेश शासन के निर्देशानुसार भगवान बिरसा मुण्डा जी की 150 वीं जयंती पर वाणगंगा मैदान शहडोल में आयोजित होने वाले मुख्य कार्यक्रम के सीधे प्रसारण एवं पुष्पांजलि कार्यक्रम में श्री कृष्णा विश्वविद्यालय परिवार ने आभासी माध्यम से उपस्थित होकर बिहार प्रांत के जमोई जिले में जनजाततीय गौरव दिवस कार्यक्रम से लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के उद्बोधन को एवं वाणगंगा मैदान शहडोल मध्यप्रदेश से प्रदेश के राज्यपाल माननीय मंगूभाई पटेल एवं मुख्य मंत्री डॉ. मोहन यादव जी के उद्बोधन को विश्वविद्यालय के सभागार में उपस्थित होकर सुना।
तत्पश्चात सभागार में भगवान बिरसा मुंडा की 150 जयंती के अवसर पर पुष्पांजलि कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसकी मुख्य अतिथि श्रीमती ज्योति सुरेन्द्र चौरसिया, अध्यक्ष नगर पालिका परिषद छतरपुर एवं विशिष्ट अतिथि विकेन्द्र बाजपेयी उपाध्यक्ष नगर पालिका परिषद छतरपुर उपस्थित रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलसचिव श्री विजय सिंह ने की। मंचासीन अतिथियों ने सर्वप्रथम माँ सरस्वती की प्रतिमा के सम्मुख द्वीप प्रज्व्लित किया एवं जननायक भगवान बिरसा मुण्डा की प्रतिमा पर मार्ल्यापण कर कार्यक्रम का प्रारंभ किया। कुलसचिव विजय सिंह ने आगन्तुक अतिथियों का पुष्प गुच्छ एवं तुलसी का पौधा भेंट कर स्वागत किया।
कार्यक्रम की मुख्य अतिथि श्रीमती ज्योति सुरेन्द्र चौरसिया जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि भगवान बिरसा मुंडा ने जनजातीय संस्कृति, स्वाभिमान और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए लंबा संघर्ष किया और जनजातीय गौरव का प्रतीक बन गये। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने उनके अभूतपूर्व योगदान को स्मरण करने के लिए भगवान बिरसा मुंडा की जयंती 15 नवंबर को प्रति वर्ष “जनजातीय गौरव दिवस” के रूप में मनाने की परंपरा आरंभ की। भारत की जनतजातियां उसकी गौरव शाली सांस्कृतिक विरासत और परम्पराओं की संरक्षक है। ऐसी ही जनजाति के महानायक बिरसा मुंडा जी रहे हैं, जिन्होनें अपनी संस्कृति और स्वतंत्रता की रक्षा के लिये अंग्रेजों से संघर्ष किया।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि विकेन्द्र बाजपेयी जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि भगवान बिरसा मुंडा जयंती जनजातीय जातीय गौरव दिवस ऐसे वीर नायक के जन्मदिवस पर मनाया जाता है। जो स्वतंत्रता के महानायक बने और आज भगवान के रूप में पूजनीय है। यह दिवस केवल जनजातीय के लिये ही नहीं वरन संपूर्ण भारत के लिये ऐतिहासिक दिवस है । जब वर्ष 1893-94 में अंग्रेजों ने वनभूमि को आरक्षित वन क्षेत्र घोषित किया जिसके कारण जनजातियों का वनक्षेत्र पर अधिकार समाप्त हो गया। तत्कालीन समय में बिरसा मुंडा ने अपनी संस्कृति और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए संघर्ष किया।
कुलसचिव विजय सिंह ने अपने वक्तव्य में कहा कि बिरसा मुंडा ने जनजातीय अधिकारों की मांग की और अपनी स्वतंत्रता के लिये नारा देते हुये कहा:- “”अबुआ दिशोम-अबुआ राज ” अर्थात अपनी माटी अपना राज । यह हमारी जन्मभूमि हमारी अपनी माटी है यहाँ किसी और का नहीं वरन हमारा अपना ही शासन चलेगा अंग्रेजों का नहीं यह कहते हुये क्रांति का बिगुल बजा दिया । बिरसा के इस उद्घोष पर एक साथ सभी जनजातीय समुदाय एक होकर बिरसा मुंडा के साथ हो गये ।
उन्होंने वन अंचल को अपना अधिकार मानते हुये लगान माफी के लिये मोर्चाबंदी कर अंग्रेजी शासन व्यवस्था का विरोध किया। यह आदिवासियों का सामूहिक विद्रोह था। जिसने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिये। बाद मे 9जनवरी 1900 में अंग्रेजों ने शक्ति के बल पर इस विद्रोह को कुचलते हुये सभी विद्रोहियों को पकड़ कर जेल मे डाल दिया जिसमे सभी को सजा हुई 9जून को जेल में ही बिरसा मुंडा को जहर देकर मार दिया गया । यह बिरसा मुंडा की अपनी माटी की स्वतंत्रता के लिये लड़ने की कहानी है उनके गौरव शाली इतिहास के कारण ही आदिवासी उन्हें अपना भगवान मानते है, ऐसे वीर की शहादत को शत शत नमन।
कार्यक्रम के अंत में वरिष्ठ प्राघ्यापक सलाहकार डॉ. बी.एस. राजपूत ने सभी आगन्तुक अतिथियों का आभार व्यक्त किया और कहा कि बिरसा मुंडा ने अपनी कम उम्र में ही क्रांति की अलख जगाई और आदिवासी समाज के शोषण और भेद-भाव के खिलाफ उल्गुलन आंदोलन की अगुवाई कर देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति देकर जननायक रूप में अमर हो गये। कार्यक्रम का संचालन डॉ. प्रणति चतुर्वेदी ने किया। इस कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के समस्त प्राध्यापकगण, कर्मचारीगण एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे।