संत शिरोमणि रविदास जयंती पर उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर व्याख्यान माला का हुआ आयोजन

छतरपुर। श्री कृष्णा विश्वविद्यालय के सभागार में संत रविदास की जयंती पर उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर एक व्याख्यान माला का आयोजन किया गया। माननीय कुलाधिपति डॉ. बृजेन्द्र सिंह गौतम, हिंदी प्राध्यापक डॉ. आशीष कुमार तिवारी, पुस्तकालय विभाग अध्यक्ष डॉ. सविता सिंह, मानव संसाधन प्रमुख डॉ. शिवेन्द्र सिंह परमार एवं हिंदी विभाग की सहायक प्राध्यापक वंदना शुक्ला ने माँ सरस्वती और रैदास की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर कार्यक्रम का प्रारम्भ किया गया।
कुलाधिपति महोदय डॉ. बृजेन्द्र सिंह गौतम ने अपने वक्तव्य में कहा कि भारत की संत परम्परा में संत रविदास उपाख्यान सन्त रैदास का महत्त्वपूर्ण स्थान है। एक चर्मकार परिवार में जन्म लेकर जूता बनाने को ही अपनी आजीविका का साधन बनाने वाले, पाण्डित्य नगरी काशी के निवासी सन्त रैदास की जन स्वीकृति इतनी अधिक रही है कि उन्हें राजघराने की मीरा ने अपना गुरु स्वीकार किया, बादशाह सिकंदर लोदी ने स्वयं दरबार में आमन्त्रित किया, गुरुग्रन्थ साहब में उनकी वाणी संग्रहीत की गयी और उनके अनुयायियों ने उनके नाम से एक पन्थ ही चला दिया, जिसके अनुयायी आज भी विद्यमान हैं और रैदासपंथी कहलाते हैं। रैदास की वाणी भक्ति की सच्ची भावना, समाज के व्यापक हित की कामना तथा मानव प्रेम से ओत-प्रोत होती थी। इसलिए उसका श्रोताओं के मन पर गहरा प्रभाव पड़ता था। उनके भजनों तथा उपदेशों से लोगों को ऐसी शिक्षा मिलती थी जिससे उनकी शंकाओं का सन्तोषजनक समाधान हो जाता था और लोग स्वतः उनके अनुयायी बन जाते थे।
मानव संसाधन प्रमुख डॉ. शिवेंद्र सिंह परमार ने अपने वक्तव्य में कहा कि गुरु रविदास जी मध्यकाल में एक भारतीय संत कवि सतगुरु थे। इन्हें संत शिरोमणि संत गुरु की उपाधि दी गई है। इन्होंने रविदासीया, पंथ की स्थापना की और इनके रचे गए कुछ भजन सिख लोगों के पवित्र ग्रंथ गुरुग्रंथ साहिब में भी शामिल हैं। इन्होंने जात-पात का घोर खंडन किया और आत्मज्ञान का मार्ग दिखाया।
हिंदी विभाग के प्राध्यापक डॉ. आशीष कुमार तिवारी ने बताया कि वस्तुतः कबीर के बाद रैदास की जनस्वीकृति सर्वाधिक रही है। उन्होंने कुरीतियों पर प्रहार किये हैं और मन, कर्म की शुद्धता की अपरिहार्यता का प्रतिपादन किया है। ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ कहकर उन्होंने थोड़े शब्दों से ही आचरण की शुद्धता का मन्त्र दे दिया था, जिसका उल्लेख आज भी लोग करते मिल जाएंगे। उनके काव्य की प्रमुख विशेषता यह भी है कि उनकी समस्त रचनाएँ किसी न किसी राग में निबद्ध हैं, जो उन्हें संगीत का भी मर्मज्ञ सिद्ध करती हैं। गुरु रविदास जी के विचार हमें समानता, प्रेम और सेवा का मार्ग दिखाते हैं। उनके आदर्श हमें सदैव प्रेरित करते रहेंगे।हम सबको , उनके संदेशों को अपने जीवन में अपनाना चाहिए।
इस व्याख्यान माला कार्यक्रम में सभी विभागों के प्राध्यापकगण उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन राजनीति विज्ञान विभाग के सहा. प्राध्यापक डॉ. प्रणति चतुर्वेदी ने किया और आभार विधि विभाग के सहा. प्राध्यापक डॉ. विवेक प्रताप सिंह ने व्यक्त किया।