विशेष लेख: संरक्षण, रोजगार और सह-अस्तित्व का अनोखा मॉडल: पेंच टाइगर रिज़र्व- सैयद आसिम अली

जहाँ बाघ सुरक्षित हैं, क्योंकि गाँव उनके साथ खड़े हैं-पेंच की मिसाल
@डेस्क न्यूज। भारत में वन्यजीव संरक्षण की चर्चा होते ही जिन चुनिंदा राष्ट्रीय उद्यानों और टाइगर रिज़र्व का नाम गर्व से लिया जाता है, उनमें पेंच टाइगर रिज़र्व का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र की सीमा पर फैला यह घना वन क्षेत्र केवल बाघों का सुरक्षित ठिकाना ही नहीं, बल्कि मानव और प्रकृति के सफल सह-अस्तित्व का जीवंत उदाहरण भी बन चुका है। यहाँ संरक्षण की राह केवल सरकारी प्रयासों तक सीमित नहीं, बल्कि स्थानीय समुदायों की साझेदारी से और भी मजबूत हुई है। यहाँ बाघों की सुरक्षा सिर्फ वन विभाग की ज़िम्मेदारी नहीं, बल्कि आसपास बसे गाँवों की साझा प्रतिबद्धता बन चुकी है। यही साझेदारी पेंच को देश के सफलतम टाइगर रिज़र्वों में शामिल करती है।

पहले जहाँ मानव–वन्यजीव संघर्ष आम बात थी, वहीं आज गाँवों के लोग बाघों को अपने जंगल की धरोहर मानते हैं। ग्रामीणों को रोज़गार, वन-आधारित आजीविका और इको-टूरिज्म से जोड़ने से उनका भरोसा बढ़ा है। स्व-सहायता समूह, होम-स्टे, गाइड और हस्तशिल्प जैसे कार्यों ने संरक्षण को आमदनी से जोड़ दिया है।गाँव वाले अवैध शिकार की सूचना स्वयं देते हैं, जंगलों में आग से बचाव में सहयोग करते हैं और वन्यजीवों के लिए जल स्रोतों की देखभाल करते हैं। बदले में प्रशासन भी मुआवज़ा, सुविधाएँ और पुनर्वास की पारदर्शी व्यवस्था सुनिश्चित करता है। पेंच की यह मिसाल बताती है कि जब संरक्षण लोगों से जुड़ता है, तो जंगल सुरक्षित होते हैं और बाघ निडर होकर विचरण करते हैं। यही सच्चा मॉडल है — जिसमें जंगल भी बचते हैं और इंसान भी।
पेंच का भौगोलिक और ऐतिहासिक महत्व-
पेंच टाइगर रिज़र्व का नाम इसी क्षेत्र से होकर बहने वाली पेंच नदी के कारण पड़ा। यह रिज़र्व लगभग 750 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है, जहाँ सागौन, बाँस, तेंदू और मिश्रित वनों की बहुलता है। पहाड़ियों, घाटियों और जल स्रोतों से समृद्ध यह क्षेत्र जैव विविधता की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है।
यही वह जंगल है, जिसे विश्व विख्यात लेखक रुडयार्ड किपलिंग ने अपनी प्रसिद्ध रचना “द जंगल बुक” में अमर किया था। मोगली की कहानी से लेकर यहाँ के बाघ, भालू और हिरण आज भी लोगों की कल्पनाओं में जीवंत हैं।
पर्यावरण संरक्षण का संदेश देती पेंच की अनोखी बाघ प्रतिमा-
प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए मिशन लाइफ के संदेश और तीन आर (3R) सूत्र—रिड्यूस, रियूज़ और रिसाइकल—की भावना को साकार करते हुए पेंच टाइगर रिज़र्व में एक अनोखी और विश्वस्तरीय बाघ प्रतिमा का निर्माण किया गया है। यह प्रतिमा पूरी तरह अनुपयोगी लोहे के स्क्रैप मटेरियल से तैयार की गई है। इसमें पुरानी साइकिलें, पाइप, जंग लगी लोहे की चादरें और अन्य बेकार धातु सामग्री का रचनात्मक उपयोग किया गया है।
इस भव्य कलाकृति को सिवनी जिले के स्थानीय कलाकारों ने अपनी कला और कल्पनाशीलता से आकार दिया है। इस प्रतिमा की संकल्पना प्रधानमंत्री द्वारा ‘मेक इन इंडिया’ के प्रतीक रूप में बनाए गए लोहे के सिंह से प्रेरित है, जो स्वयं स्क्रैप मटेरियल से निर्मित था।
इंटरनेट पर उपलब्ध वर्ल्ड रिकॉर्ड एकेडमी के अनुसार, इससे पहले दुनिया की सबसे बड़ी बाघ प्रतिमा अमेरिका के जॉर्जिया राज्य में थी, जिसकी ऊँचाई 8 फीट और लंबाई 14 फीट थी। इसके विपरीत, पेंच टाइगर रिज़र्व के खवासा पर्यटन द्वार पर स्थापित यह प्रतिमा 17 फीट 6 इंच ऊँची, 40 फीट लंबी और 8 फीट चौड़ी है, जो इसे विश्व की सबसे विशाल स्क्रैप बाघ प्रतिमाओं में शामिल करती है। यह प्रतिमा न केवल पर्यावरण संरक्षण का सशक्त संदेश देती है, बल्कि स्थानीय कला, आत्मनिर्भरता और रीसाइक्लिंग के महत्व को भी प्रभावशाली ढंग से दर्शाती है।
सर्दी में संबल की पहल,पेंच का “कंबल डोनेशन अभियान”-
पेंच टाइगर रिज़र्व ने इस वर्ष एक सराहनीय जनकल्याणकारी पहल की शुरुआत की है, जिसका नाम है “कंबल डोनेशन अभियान”। यह अभियान विशेष रूप से पेंच टाइगर रिज़र्व के बफर क्षेत्र में रहने वाले ग्रामीण परिवारों के लिए चलाया जा रहा है, जो सर्दी के मौसम में अत्यधिक ठंड और सीमित संसाधनों की चुनौतियों से जूझते हैं।
इस अभियान का मुख्य उद्देश्य जरूरतमंद ग्रामीणों, बुजुर्गों, बच्चों और श्रमिक परिवारों को सर्दियों में ठंड से सुरक्षा प्रदान करना है। वन विभाग, स्थानीय प्रशासन, स्वयंसेवी संस्थाओं और समाजसेवियों के संयुक्त सहयोग से यह अभियान पूरे क्षेत्र में प्रभावी ढंग से संचालित किया जा रहा है। कलेक्शन सेंटरों के माध्यम से कंबल एकत्र किए जा रहे हैं और फिर उन्हें व्यवस्थित रूप से जरूरतमंद लोगों तक पहुँचाया जा रहा है।
यह पहल सिर्फ राहत वितरण तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मानव और प्रकृति के बीच सहयोग और संवेदनशीलता का भी प्रतीक है। पेंच टाइगर रिज़र्व, जो वन्यजीव संरक्षण के लिए प्रसिद्ध है, अब सामाजिक जिम्मेदारी के क्षेत्र में भी एक प्रेरणादायक उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है। ‘कंबल डोनेशन अभियान’ न सिर्फ ठंड से राहत देगा, बल्कि लोगों के दिलों में करुणा और सहयोग की भावना को भी सशक्त बनाएगा।
पेंच के जंगलों में जैव-विविधता का नया प्रमाण—ब्लैक पैंथर
पेंच टाइगर रिज़र्व में ब्लैक पैंथर (काला तेंदुआ) का दिखाई देना पूरे भारत में एक अत्यंत दुर्लभ और ऐतिहासिक घटना माना जाता है। सामान्यतः तेंदुआ अपने पीले रंग और काले धब्बों के लिए जाना जाता है, लेकिन कुछ तेंदुओं के शरीर में प्राकृतिक रूप से रंग से जुड़ा एक खास आनुवंशिक बदलाव हो जाता है, जिसे वैज्ञानिक भाषा में “मेलानिज़्म (Melanism)” कहा जाता है। इस स्थिति में तेंदुए की त्वचा में काले रंग का वर्णक (मेलानिन) सामान्य से कहीं अधिक मात्रा में बनता है। इसी कारण उसका शरीर सामान्य पीले रंग और धब्बों की जगह पूरी तरह काला दिखाई देने लगता है। हालाँकि पास से देखने पर उसके शरीर पर हल्के धब्बे फिर भी दिख जाते हैं।
जब तेंदुआ इस काले रंग की अवस्था में होता है, तब उसे सामान्य भाषा में “ब्लैक पैंथर” कहा जाता है। यह कोई अलग प्रजाति नहीं होती, बल्कि रंग में आया एक प्राकृतिक बदलाव मात्र होता है, जो उसे और भी दुर्लभ व आकर्षक बना देता है। इसी अवस्था में वह “ब्लैक पैंथर” कहलाता है।
भारत में ब्लैक पैंथर के दर्शन बेहद सीमित क्षेत्रों, विशेषकर पश्चिमी घाट और कुछ घने जंगलों तक ही सिमटे रहे हैं। ऐसे में मध्यप्रदेश के पेंच टाइगर रिज़र्व जैसे क्षेत्र में इसका दिखाई देना न केवल आश्चर्यजनक है, बल्कि यह यहां के समृद्ध जैव-विविधता और सफल वन संरक्षण की भी पुष्टि करता है। पेंच का घना जंगल, पर्याप्त शिकार, शांत वातावरण और सुरक्षित आवास इस दुर्लभ प्राणी के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ प्रदान करते हैं।
ब्लैक पैंथर का कैमरा ट्रैप में कैद होना वन्यजीव विशेषज्ञों और शोधकर्ताओं के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह खोज भविष्य में पेंच क्षेत्र के पारिस्थितिक संतुलन और जैविक विविधता पर नए शोध के द्वार खोलती है। साथ ही यह घटना आम लोगों में वन्यजीव संरक्षण के प्रति जागरूकता भी बढ़ाती है और पेंच टाइगर रिज़र्व की पहचान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और मजबूत बनाती है।आज पेंच टाइगर रिज़र्व में संरक्षण कार्य आधुनिक तकनीकों के सहारे किया जा रहा है। ड्रोन कैमरे, ट्रैप कैमरे, रेडियो कॉलर और जियो-टैगिंग के माध्यम से वन्यजीवों की गतिविधियों पर नजर रखी जाती है।
वनकर्मियों को आधुनिक प्रशिक्षण दिया गया है और विशेष टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स की तैनाती से अवैध शिकार पर काफी हद तक रोक लगी है।
संरक्षण में समुदायों की भागीदारी-
पेंच टाइगर रिज़र्व की सबसे बड़ी सफलता का आधार रहा है — स्थानीय समुदायों की सहभागिता। पहले आसपास के गाँवों के लोग ईंधन, लकड़ी, चारा और अन्य ज़रूरतों के लिए जंगल पर अत्यधिक निर्भर थे, जिससे जंगल पर दबाव बढ़ता गया।
वन विभाग ने इस चुनौती को एक अवसर में बदला और “समुदाय आधारित संरक्षण” की रणनीति अपनाई। ग्रामीणों को वन सुरक्षा समितियों, ईको-डेवलपमेंट कमेटियों और वन्यजीव मित्र योजनाओं से जोड़ा गया। आज वही ग्रामीण जंगल की गश्त, अग्नि सुरक्षा और अवैध शिकार विरोधी अभियानों में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।
बाघ संरक्षण का मजबूत गढ़-
एक समय ऐसा भी था जब अवैध शिकार, जंगलों की कटाई और मानवीय दखल के कारण पेंच में बाघों की संख्या चिंताजनक रूप से घटने लगी थी। लेकिन पिछले दो दशकों में सख्त सुरक्षा, वैज्ञानिक प्रबंधन और स्थानीय लोगों की भागीदारी से यहाँ बाघों की आबादी में निरंतर वृद्धि दर्ज की गई है। आज पेंच न केवल बाघों के लिए सुरक्षित आवास है, बल्कि तेंदुआ, स्लॉथ भालू, चीतल, सांभर, नीलगाय, जंगली कुत्ता और सैकड़ों पक्षी प्रजातियों का भी आश्रय स्थल है।
आजीविका और संरक्षण का संतुलन-
संरक्षण तभी स्थायी बनता है जब स्थानीय लोगों की आर्थिक स्थिति भी सुरक्षित हो। इसी सोच के साथ पेंच क्षेत्र में वैकल्पिक आजीविका के अनेक अवसर विकसित किए गए।ईको-टूरिज़्म के माध्यम से सैकड़ों युवाओं को गाइड, ड्राइवर, रिसॉर्ट कर्मचारी और प्राकृतिक व्याख्याता के रूप में रोजगार मिला।
महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों से जोड़कर हस्तशिल्प, बाँस शिल्प, जैविक खाद, पत्तल-दोना निर्माण और स्थानीय खाद्य उत्पादों का प्रशिक्षण दिया गया। इससे महिला सशक्तिकरण को भी मजबूती मिली और परिवारों की आय में वृद्धि हुई।परिणामस्वरूप जंगल पर निर्भरता कम हुई और लोग संरक्षण को अपने भविष्य से जोड़ने लगे।
विस्थापन और पुनर्वास : एक संवेदनशील अध्याय-
संरक्षण की आवश्यकता के चलते कुछ गाँवों को कोर एरिया से बाहर भी बसाया गया। यह प्रक्रिया हमेशा विवादास्पद होती है, लेकिन पेंच में इसे संवेदनशीलता और मानवीय दृष्टिकोण के साथ पूरा किया गया।
विस्थापित परिवारों को पक्के मकान, खेती योग्य भूमि, बिजली, पानी, स्कूल, सड़क और स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध कराई गईं। इससे उनका जीवन स्तर सुधरा और जंगल को उसका प्राकृतिक रूप लौटाने में मदद मिली। यही कारण है कि अन्य क्षेत्रों की तुलना में यहाँ विस्थापन को लेकर विरोध कम देखने को मिला।
मानव और प्रकृति का सह-अस्तित्व-
पेंच टाइगर रिज़र्व यह सिद्ध करता है कि संरक्षण केवल कानून से नहीं, बल्कि विश्वास, सहभागिता और संवेदनशीलता से संभव है। जब स्थानीय समुदाय खुद को जंगल का भाग मानने लगते हैं, तब वे उसके सबसे मजबूत रक्षक बन जाते हैं।
पेंच टाइगर रिज़र्व आज देश के लिए एक प्रेरणादायक मॉडल बन चुका है, जहाँ संरक्षण और विकास साथ-साथ चल रहे हैं। यह क्षेत्र दिखाता है कि यदि स्थानीय समाज को साथ लिया जाए, तो जंगल भी सुरक्षित रह सकते हैं और लोगों की आजीविका भी। बाघों की दहाड़, हरे-भरे जंगल और आत्मनिर्भर गाँव- यही पेंच की असली पहचान है। आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित प्रकृति छोड़ना ही इस संरक्षण यात्रा का सबसे बड़ा उद्देश्य है।










