आलेख एवं विचार

कार्तिक पूर्णिमा महत्व व पूजन विधि: पंडित सौरभ तिवारी

डेस्क न्यूज। सनातन धर्म में पूर्णिमा का बेहद खास महत्व बताया गया है और कार्तिक पूर्णिमा तो सबसे ज्यादा शुभ मानी जाती है क्योंकि इस दिन गंगा स्नान भी होता है, साथ ही गुरु नानक जयंती भी है।

मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा पर शाम के समय भगवान विष्णु का मत्स्यावतार अवतरित हुआ था, इस दिन गंगा स्नान के बाद दीप-दान का फल दस यज्ञों के समान माना जाता है। पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को कार्तिक पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है।

पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपने पूरे आकार में होता है, हिंदू मान्यताओं के अनुसार, पूर्णिमा के दिन दान, स्नान और सूर्यदेव को अर्घ्य देने का बेहद खास महत्व भी बताया गया है, इस दिन सत्यनारायण की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान शिव ने राक्षस त्रिपुरासुर का संहार किया था, इसलिए इस तिथि को त्रिपुरा तिथि के नाम से भी जाना जाता है।

कार्तिक पूर्णिमा पूजा विधि-
पूर्णिमा के दिन प्रातः काल जाग कर व्रत का संकल्प लें और किसी पवित्र नदी, सरोवर या कुंड में स्नान करें, इस दिन चंद्रोदय पर शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसुईया और क्षमा इन छः कृतिकाओं का पूजन अवश्य करना चाहिए, कार्तिक पूर्णिमा की रात में व्रत करके बैल का दान करने से शिव पद प्राप्त होता है। गाय, हाथी, घोड़ा, रथ और घी आदि का दान करने से संपत्ति बढ़ती है, भेड़ का दान करने से ग्रहयोग के कष्टों का नाश होता है। कार्तिक पूर्णिमा से प्रारंभ होकर प्रत्येक पूर्णिमा को रात्रि में व्रत और जागरण करने से सभी मनोरथ सिद्ध होते हैं।

कार्तिक पूर्णिमा का व्रत रखने वाले व्रती को किसी जरूरतमंद को भोजन और हवन अवश्य कराना चाहिए, इस दिन पवित्र नदी मे कार्तिक स्नान का समापन करके राधा-कृष्ण का पूजन और दीपदान करना चाहिए।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button