आलेख एवं विचार

भविष्य की आहट/ लाठी की दम पर भैंस हांकने की होड: डा. रवीन्द्र अरजरिया

डेस्क न्यूज। देश- दुनिया में शक्तिशाली लोगों व्दारा मनमानियां करके वर्चस्व की जंग को विनाश के संग्राम में परिवर्तित कर दिया गया है। पर्यावरण को विकृत करने वाले नित नये अध्याय लिखे जा रहे हैं। रेडिएशन टावर की तरंगों से लेकर परमाणु विस्फोटों तक को आधुनिकतम अविष्कारों के नाम पर अभिशाप बनाकर परोसा जा रहा है।

मानवजनित ऊष्मा का उत्सर्जन चारों ओर बढते तापमान का कारण बन रहा है। भूगर्भीय जल की बरबादी चरम सीमा पर पहुंचती जा रही है। रसायनिक कचरे ने नदियों की जलराशि को जहरीला बना दिया है। वायु में खतरनाक जीवाणुओं की संख्या में बेलगाम इकाइयां इजाफा कर रहीं हैं। खनिज दोहन के लिए भूमि को खोखला करने का क्रम तेज होता जा रहा है। ऐसे में जीवन के पांचों तत्वों पर संकट की विभीषिका स्पष्ट दिखाई देने लगी है।

धरती का संतुलन तार-तार हो चुका है। जल की शुध्दता कब की बोतलों में बंद हो चुकी है। वायु की पवित्रता के लिए मशीनों का सहारा लिया जा रहा है। रसायनिक गैसों और विद्युत के प्रयोग से अग्नि का वास्तविक स्वरूप ही समाप्त हो चुका है। प्रदूषण से बचे आकाश में भी अब सेटलाइट के विस्फोट से कचरा फैलने लगा है। जबरजस्त धमाके के साथ रूस की रेसुरस-पी1 सेटलाइट के सौ से ज्यादा टुकडे हो गये। इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर भी संकट के बादल मडराने लगे हैं। इस विषय पर रूस की स्पेस एजेंसी रोस्कोस्मोस ने ठीक वैसे ही खामोशी अख्तियार कर रखी है जैसी कोराना काल में चीन ने चुप्पी साध ली थी।

वर्तमान समय में लगभग 7500 कृत्रिम उपग्रह यानी सेटलाइट पृथ्वी का परिक्रमा कर रहे हैं। प्रतिवर्ष लगभग 117 सेटलाइट्स छोडे जाते हैं। सबसे पहला सेटलाइट सन् 1957 में सोवियत यूनियन ने स्पूतनिक के नाम से लांच किया था। तब से इस दिशा में होड मची हुई है। प्रकृति ने एकमात्र चन्द्रमा उपग्रह ही पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमा करने तथा नक्षत्रीय गणनाओं से भावी संभावनाओं की जानकारी प्राप्त करने हेतु प्रदान किया था परन्तु धरती का भगवान बनने की चाहत में लोगों ने प्रकृति को ही नष्ट करने का बीडा उठा लिया है।

जहां भूगर्भीय जलधाराओं को भारी भरकम मशीनों से निचोडा जा रहा है तो वहीं एसी लगाकर भवनों-वाहनों के बाहर का तापमान बढाने की प्रतियोगिता चल रही है जिसमें आणुविक विस्फोट की एक बडी दखलंदाजी भी शामिल है। रासायनिक कचडे से लेकर मैला युक्त गंदगी तक को सीधा नदियों में फैंकना तो कब का शुरू हो चुका था, अब तो चिमनियों से निकलता धुआं, क्रेशर से उडते पाषाण कण, वाहनों की रफ्तार से उडती धूल, खेतों में जलती पराली जैसी अनगिनत स्थितियों ने प्राणदायिनी वायु को भी रोगदायनी हवा में बदल दिया है। विद्युत भट्टियों से लेकर गैस चैम्बरों तक ने अग्नि के वास्तविक स्वरूप हो ही समाप्त कर दिया है और अब तो आसमान से निगरानी, जासूसी कार्यो के अलावा मोबाइल, नेट, सोशल प्लेटफार्म आदि के लिए आकाश में कृत्रिम उपग्रहों की भीड जमा कर दी है। इसी भीड पर संसार की निर्भरता निरंतर बढती जा रही है। ज्यादातर देशों की अर्थ व्यवस्था, सुरक्षा कवच, प्रशासनिक तंत्र, सम्पर्क संसाधन, यातायात उपकरणों जैसे आधारभूत कारक इसी सेटलाइट पध्दति पर निर्भर हैं।

संभावना है कि अगली जंग इन्हीं सेटलाइट्स को समाप्त करने दुश्मन देश में आन्तरिक युध्द जैसे हालात पैदा करने के लिए ही होगी। हैकर्स की तरह विस्फोटक के नकाब में अपराधियों की आमद हो सकती है। विश्व संविधान, समझौते और नीतियां धराशाही हो चुकीं हैं। असहाय की पुकार तो नक्कारखाने में तूती बनकर रह गई है। शक्ति की लाठी लेकर भविष्य की चिन्ताओं को हाशिये पर छोडकर मौज के लिए मौत को खुला आमंत्रण भेजा जा रहा है। प्रकृति को चुनौती दी जा रही है। परिणामस्वरूप कभी धरती का संतुलन बिगडने से भूस्खलन, भूकम्प और ज्वालामुखी जैसी विकरालता सामने आती है तो कभी बाढ-सूखा-तूफान जैसे प्रकोप फूटते हैं।

अनुशासनहीन प्रयोगों से जन्मी कोरोना महामारी ने एक बडी आबादी को लाशों में बदल दिया था तो बढते तापमान ने अनगिनत हज यात्रियों की जीवन लीला ही समाप्त कर दी। सत्ता के लोलुपों को जिन्दगियों से कही अधिक प्यारा तो सिंहासन है, तभी तो फिलिस्तीन के नागरिक जान की कीमत पर भी आतंकी हमास के क्रूर लडाकों को निरंतर संरक्षण दे रहे हैं। उनके लिए औलादों से ज्यादा आतिताइयों की सांसें हैं। इजराइल का हमला तो हमास व्दारा की गई मजहबी हत्याओं का प्रतियोत्तर है जबकि हिजबुल्लाह, हूती जैसे कट्टरपंथी संगठनों सहित आम फिलिस्तीनियों व्दारा हमास की ज्यादतियों को जायज ठहराकर संरक्षण देना, मानवता के विरोध में झंडा ऊंचा करने जैसा ही है।

रूस के साथ यूक्रेन का युध्द पूरी तरह से अहंकार के पोषण का परिचायक है। अमेरिका और चीन ने लम्बे समय पहले ही व्यवसायिकता के सामने मानवता को जिंदा जला दिया था। दौनों देशों की आन्तरिक नीतियों में ज्यादा अन्तर नहीं है। धोखा देने से लेकर बरबाद करने वाली परिस्थितियां पैदा करने में माहिर इन देशों के अपने कुछ खास सहयोगी भी हैं जिनमें कनाडा और पाकिस्तान जैसे भूभाग तो प्रथम पंक्ति में ही उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। दुनिया के साथ-साथ देश में भी सुल्तान बनने के लालच में सिध्दान्तों, आदर्शों और नीतियों की सरेआम होली जलाई जा रही है। अन्तर केवल इतना है कि इतिहास की होलिका आज प्रह्लाद बनकर चादर में लिपटी है और प्रह्लाद को होलिका के रूप में प्रचारित किया जा रहा है।

आपातकाल में संविधान की धज्जियां उडाने वालों के साथ जुडे समानहित वाले दलों की सरकारों को जनसेवा, जनदायित्व और जनकर्तव्यों से कोई सरोकार बचा ही नहीं है। वे केवल और केवल सत्ता पर निरंतर काबिज रहने के लिए ही भययुक्त वातावरण निर्मित करने में जुटे हैं। राज्य सरकारों की नाकामियों पर केन्द्र को कोसने का फैशन चल निकला है। पश्चिम बंगाल में खुली गुण्डागिरी हो रही है। वहां के राज्यपाल को स्वयं ही सहायता हेतु गुहार लगाना पड रही है। दिल्ली के मुख्यमंत्री तो अपने कार्यपालिका के अनुभवों के साथ विधायिका के ज्ञान को मिलाकर अब न्यायपालिका को कानूनी दावपेंचों में फंसाने में जुटे हैं जबकि राजधानी में जलभराव से लेकर जलापूर्ति तक की समस्यायें निरंतर विकराल रूप लेती जा रहीं हैं।

वहां की सरकार पानी के लिए विभागीय प्रयास, सीमावर्ती राज्यों के साथ सीधा संवाद और समस्या के स्थाई समाधान की दिशा में कार्य न करके अनशन पर बैठकर सुर्खियां बटोरने में जुटी रहीं। भारी भरकम बजट के बाद भी सीवरलाइन का अवरुध्द होना, बरसात के पहले नालियों की सफाई न होना और आपातकालीन व्यवस्था का चरमरा जाना जैसी स्थितियां तो अपनी मूक भाषा में वास्तविकता बयान कर रहीं हैं। देश की संसद में असदुद्दीन ओवैसी ने जहां फिलिस्तीन जिन्दाबाद का नारा बुलंद करके विदेशी कट्टरपंथियों के प्रति निष्ठा का परचम फहराने का साथ-साथ साम्प्रदायिकता और जातिगत मोहरों को भी सत्ता की विसात पर प्रयोग के तौर पर चलकर राष्ट्र की सहनशक्ति का इम्तहान भी ले लिया।

ऐसे में यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि लाठी की दम पर भैंस हांकने का जो क्रम दूसरे विश्व युध्द के बाद दुनिया में शुरू हुआ था, उसी का अनुसरण देश में स्वाधीनता के बाद से इंग्लैण्ड रिटर्न लोगों ने किया था। वर्तमान में उसके कटीले झाड़ ही मानवता को लहूलुहान कर रहे हैं। अब आवश्यकता है मानवतावादियों को एकजुट होने की ताकि विस्तारपंथियों, विलासपंथियों और कट्टरपंथियों के षडयंत्र को सामूहिक शक्ति से नस्तनाबूत किया जा सके। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।

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