सावन भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना गया है: आचार्य मृदुल बिहारी शास्त्री

छतरपुर। जिले के बमीठा स्थित राम जानकी मंदिर मे हर वर्ष की भांति सावन के महीने मे भागवत पुराण का आयोजन किया जा रहा है जो की कई वर्षो से सभी क्षेत्रवासियो के सहयोग से किया जाता है यह कार्यक्रम 03 से 11 अगस्त तक चलेगा रोज सुबह बड़ी संख्या मे श्रद्धांलुओं का ताँता शिव निर्माण के लिए लगा रहता है और दुपहर तक शिव अभिषेक श्रद्धालु करते है वही शाम 04 बजे से संगीतमाय भागवत प्रारम्भ होती है जिसमे हजारों की संख्या मे श्रद्धालु लोग भागवत का आनंद लेते है जो 07 बजे समाप्त होती है यह कार्यक्रम 11 अगस्त तक निरंतर चलेगा।
यह होता है सावन का महत्व-
सावन साल का पांचवां महीना है. सावन को श्रावण माह भी कहा जाता है जो कि भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना गया है. धार्मिक मत है कि इस महीने में भोलेनाथ की पूजा करने से सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं और साथ ही उत्तम फलों की प्राप्ति होती है
सावन मास को सर्वोत्तम मास कहा जाता है। यह 5 पौराणिक तथ्य बताते हैं कि क्यों सावन है सबसे खास-
मरकंडू ऋषि के पुत्र मारकण्डेय ने लंबी आयु के लिए सावन माह में ही घोर तप कर शिव की कृपा प्राप्त की थी, जिससे मिली मंत्र शक्तियों के सामने मृत्यु के देवता यमराज भी नतमस्तक हो गए थे।
भगवान शिव को सावन का महीना प्रिय होने का अन्य कारण यह भी है कि भगवान शिव सावन के महीने में पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत अर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था। माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष सावन माह में भगवान शिव अपनी ससुराल आते हैं। भू-लोक वासियों के लिए शिव कृपा पाने का यह उत्तम समय होता है।
पौराणिक कथाओं में वर्णन आता है कि इसी सावन मास में समुद्र मंथन किया गया था। समुद्र मथने के बाद जो हलाहल विष निकला, उसे भगवान शंकर ने कंठ में समाहित कर सृष्टि की रक्षा की; लेकिन विषपान से महादेव का कंठ नीलवर्ण हो गया। इसी से उनका नाम ‘नीलकंठ महादेव’ पड़ा। विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया। इसलिए शिवलिंग पर जल चढ़ाने का ख़ास महत्व है। यही वजह है कि श्रावण मास में भोले को जल चढ़ाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
शिवपुराण’ में उल्लेख है कि भगवान शिव स्वयं ही जल हैं। इसलिए जल से उनकी अभिषेक के रूप में अराधना का उत्तमोत्तम फल है, जिसमें कोई संशय नहीं है।
शास्त्रों में वर्णित है कि सावन महीने में भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं। इसलिए ये समय भक्तों, साधु-संतों सभी के लिए अमूल्य होता है। यह चार महीनों में होने वाला एक वैदिक यज्ञ है, जो एक प्रकार का पौराणिक व्रत है, जिसे ‘चौमासा’ भी कहा जाता है; तत्पश्चात सृष्टि के संचालन का उत्तरदायित्व भगवान शिव ग्रहण करते हैं। इसलिए सावन के प्रधान देवता भगवान शिव बन जाते हैं।
(रिपोर्टर- अशोक नामदेव बमीठा-खजुराहो)