14 सितम्बर हिन्दी दिवस पर विशेष: वैश्विक पटल पर हिन्दी के बढ़ते कदम- डॉ० घनश्याम भारती
हिंदी ने विश्व स्तर पर अपनी पहचान बनाई हमारे देश के कई साहित्यकार विदेश में विदेशियों को हिंदी सीखाने का कल्याणकारी कार्य कर रहे हैं

सागर। श्री गणेश शंकर विद्यार्थी ने कहा था कि संसार की कोई भाषा मनुष्य जाति को उतना ऊंचा उठाने, मनुष्य को यथार्थ में मनुष्य बनाने तथा संसार को सभ्य बनाने में उतनी सफल नहीं हुई जितनी आगे चलकर हिन्दी होगी। एक दिन हिन्दी एशिया ही नहीं, विश्व की पंचायत में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगी। आज विद्यार्थी जी के सपनों को हिन्दी ने साकार कर दिया है।
शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय गढ़ाकोटा, जिला सागर, मध्यप्रदेश में पदस्त विभागाध्यक्ष, हिन्दी-विभाग डॉ० घनश्याम भारती ने अपने विचारों को व्यक्त करते हुए बताया की हिन्दी ने विश्व स्तर पर अपनी पहचान बनाई है। विश्व स्तर पर हिन्दी आज लोकप्रिय भाषा के रूप में स्थापित हो चुकी है। हिन्दी को विश्व स्तर पर ख्याति दिलाने का श्रेय हमारे प्रवासी भारतीय साहित्यकारों को जाता है जोकि संपूर्ण विश्व के देशों में हिन्दी का प्रचार- प्रसार लेखन, संपादन तथा पत्रकारिता के माध्यम से कर रहे हैं। हमारे देश के कई साहित्यकार विदेश में विदेशियों को हिन्दी सिखाने का कल्याणकारी कार्य कर रहे हैं। वास्तव में सही मायने में हिन्दी के साहित्यकार, पत्रकार, हिन्दी अधिकारी तथा हिन्दी के माध्यम से रोजी-रोटी कमाने वाले हिन्दी अध्यापक, प्राध्यापक आदि हिन्दी के प्रचार- प्रसार तथा विकास में तत्पर और अग्रणी हैं।
हिन्दी के प्रचार-प्रसार का एक सशक्त माध्यम हिन्दी सिनेमा भी है। हिन्दी सिनेमा ने न केवल हिन्दी-भाषी क्षेत्रों में अपितु विश्व के प्रांगण में जो प्रतिष्ठा पाई उससे हिन्दी का गौरव बढ़ा है। हिन्दी को जानने, पहचानने की उत्सुकता बड़ी है, हिन्दी के श्रेष्ठ साहित्यकारों की श्रेष्ठ कृतियों ने संपूर्ण विश्व के देशों के लोगों में हिन्दी सीखने की लालसा जागृत की है।
रामचरितमानस, पद्मावत, साकेत, कामायनी जैसे विशाल ग्रंथों को पढ़ने की उत्सुकता ने विदेशों में हिन्दी को बढ़ावा दिया है। टीवी सीरियल रामायण, महाभारत, अलिफलैला, श्रीकृष्णा तथा अन्य धार्मिक धारावाहिकों में मानक हिन्दी का अद्भुत प्रयोग हुआ है, इन सीरियलों के माध्यम से शुद्ध हिन्दी विश्व बाजार में पहुंची तथा इन सीरियलों की लोकप्रियता के कारण कई देशों के दर्शकों ने हिन्दी को अपनाया तथा हिन्दी सीखी। आज अमेरिका जैसे विकसित देश में रामलीला का मंचन हिन्दी संवादों के माध्यम से विदेशी कलाकारों द्वारा किया जा रहा है जोकि भारत के लिए चुनौती है। वर्तमान में हिन्दी संवादों की रामलीला भारत से विलोपित होती नजर आ रही है।
हिन्दी भाषा फिल्मी गीतों के माध्यम से विश्व बाजार में पहुंची है। लता मंगेशकर, आशा भोंसले, सुरेश वाडेकर, मोहम्मद रफी, कुमार सानू, सोनू निगम, कविता कृष्णमूर्ति, शंकर महादेवन, किशोर कुमार, मुकेश कुमार आदि के हिन्दी गीतों ने विदेशों में भी धूम मचाई तथा इन गीतों को सुनने के लिए विदेशियों ने हिन्दी भाषा सीखी। प्रिंट तथा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से भी हिन्दी का काफी प्रचार प्रसार हुआ तथा विश्व स्तर पर हिन्दी मीडिया के चैनलों के माध्यम से विदेशों में पहुंची।
भारत में सबसे अधिक फिल्में हिन्दी भाषा में बनाई जाती हैं जोकि रोचक होने के साथ-साथ शिक्षाप्रद तथा गीत संगीत से ओतप्रोत होती हैं जिनमें हिन्दी का माधुर्य तथा रसात्मकता झलकती है। इन फिल्मों के माध्यम से हिन्दी ने अपना कदम विदेशों में बढ़ाया है तथा विदेशियों को हिन्दी सीखने के लिए मजबूर होना पड़ा। क्योंकि भारत देश में हिन्दी भाषा में जो फिल्में बनाई गईं उनमें जो आनंद, शिक्षा का ज्ञान है वह अन्य किसी भाषा की फिल्मों में परिलक्षित नहीं होता।
फिल्म उद्योग ने हिन्दी भाषा को विश्व स्तर पर पहुंचाने में सराहनीय प्रयास किया है। हिन्दी के गीत, गजल तथा नाटकों ने हिन्दी को विश्व की भाषाओं में गरिमामय स्थान दिलाया है। वर्तमान में विदेशों में हिन्दी के गीत, गजलें बड़े चाव से सुने जाते हैं। आज हिन्दी अंग्रेजी से पीछे नहीं है, हां! इतना अवश्य है कि हिन्दी में अंग्रेजी घुल-मिल गयी है। विदेशों में प्रवासी भारतीय हिन्दी का खूब प्रचार प्रसार कर रहे हैं। इन प्रवासियों के कारण ही हिन्दी विदेशों में जीवित है। हिन्दी के कार्यक्रम, सभाएं, कार्यशालाएं, संगोष्ठियां भी विश्व के कई देशों में आयोजित हो रही हैं।
देश के कई प्रांतों में हिन्दी पढ़ी, लिखी एवं बोली जाती है। भारत से अधिकांश हिन्दी के विद्वानों को विदेशों में हिन्दी के प्रचार प्रसार हेतु भेजा जाता है। आज दुनिया के कई देशों के विश्वविद्यालयों में हिन्दी भाषा पढ़ायी जाती है, इससे दुनिया के देशों के लोगों को भाषा के माध्यम से एक- दूसरे की संस्कृति को जानने समझने का अवसर मिलता है तथा एक दूसरे के विचारों को भाषा के माध्यम से जाना जाता है।
विश्व की हरेक भाषा को सीखना हमारा नैतिक दायित्व है साथ ही हिन्दी को अन्य भाषाओं से अधिक महत्व देना भी हमारा कर्तव्य है। हिन्दी विश्व की सबसे अधिक बोली व समझी जाने वाली भाषा है, उसका व्याकरण, उसकी लिपि, उसका उच्चारण, उसका सीखना-सिखाना सब कुछ इतना सरल है कि वह विश्व भाषा कहलाने की प्राकृतिक अधिकारिणी है। देश के नेताओं तथा बुद्धिजीवियों को कुछ प्रेरणा मिले और हिन्दी को वे देश और दुनिया में उसका उचित स्थान दिलाने का प्रयत्न करें तो भारत को विश्व शक्ति बनने से कोई नहीं रोक सकता।
देश की केंद्र सरकार का कर्तव्य है कि हमारी राजभाषा कही जाने वाली हिन्दी को सरकारी कामकाज में पूरी तरह से उपयोग करने संबंधी आदेश प्रसारित करने चाहिए तथा देश के विश्वविद्यालयों को भी हिन्दी में विद्यार्थियों हेतु रोचक तथा शिक्षाप्रद पाठ्यक्रमों का निर्माण करवाना चाहिए ताकि हिन्दी के प्रयोग को बढ़ावा मिले। आज हमारे युवा हिन्दी के प्रयोग में पीछे हैं क्योंकि उन्हें पुराने समय जैसे प्रसंग आज की पाठ्यपुस्तकों में नजर नहीं आ रहे हैं।
आवश्यकता है अंग्रेजी की तरह हिन्दी भाषा के प्रचार प्रसार की क्योंकि हिन्दी हमारी राजभाषा है, संपर्क भाषा के साथ मातृभाषा, साहित्यिक भाषा तथा राष्ट्रभाषा है।
अपनी भाषा के व्यापक प्रयोग के बिना आज तक दुनिया का कोई भी राष्ट्र महाशक्ति नहीं बना है। अंग्रेजी ने भारत का जितना फायदा किया है उससे कई गुना नुकसान भी किया है। आज अंग्रेजी हिन्दी की प्रतिद्वंद्वी भाषा है, अंग्रेजी सीखने समझने की प्रति स्पर्धा ने हिन्दी को निस्संदेह पीछे किया है फिर भी विश्व की सरलतम भाषाओं में से है।
भाषागत गुण तथा वैज्ञानिकता की दृष्टि से भी हिन्दी का स्थान विश्व की प्रथम श्रेणी की भाषाओं में है। हिन्दी की ध्वनियां मधुर तथा संगीतात्मक भी हैं, हिन्दी में वे सब तत्व मिलते हैं जो उसे विश्व भाषा अवश्य बनाते हैं। हम सभी देशवासियों, साहित्य प्रेमियों तथा विदेशों में हिन्दी की सेवा कर रहे प्रवासी भारतीय साहित्यकारों का नैतिक दायित्व है कि विश्व स्तर पर हिन्दी का प्रचार प्रसार करने में अपना योगदान दें ताकि हिन्दी अन्य भाषाओं से पीछे न होने पाए। विश्व स्तर पर हिन्दी के कदम दिन प्रतिदिन बढ़ते रहें; ऐसी मेरी कामना है।
(गढ़ाकोटा रिपोर्टर- पुरुषोत्तम लाल पटेल)