भविष्य की आहट/ ट्रंप के षडयंत्र का अंग था अलास्का संवाद ?: डा. रवीन्द्र अरजरिया

डेस्क न्यूज। यूक्रेन-रूस युद्ध विराम का मुखौटा ओढकर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दुनिया में अपनी सकारात्मक छवि स्थापित करने की एक बार फिर कोशिश की। अलास्का के एंकोरेज में उन्होंने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ लगभग तीन घंटे तक एकान्त में बातचीत की जिसके आखिरी दौर में दोनों राष्ट्राध्यक्षों के साथ आये दो – दो प्रमुख सलाहकारों को भी वार्ता कक्ष में बुलाया गया।

अमेरिका की ओर से विदेश मंत्री मार्को रुबियो और विशेष दूत स्टीव विटकॉफ तथा रूस की ओर से विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव और विदेश नीति के सलाहकार यूरी उशाकोव ने अपनी भागदारी दर्ज की। वार्ता के उपरान्त संयुक्त रूप से पत्रकारों के सम्मुख वक्तव्य दिया गया। ट्रंप ने कहा कि कोई समझौता तब तक नहीं होता, जब तक असल में समझौता नहीं हो जाता। अभी हम वहां तक नहीं पहुंचे जबकि व्लादिमीर पुतिन ने कहा कि यूक्रेन में चल रहे संघर्ष को खत्म करने में रूस ईमानदारी से रुचि रखता है किन्तु किसी टिकाऊ समझौते के लिए संघर्ष के मूल कारणों को खत्म करना होगा। पश्चिमी देशों और यूक्रेन को चेतावनी देते हुए उन्होंने कहा कि शांति प्रक्रिया में किसी तरह की बाधा या नुकसान न पहुंचाया जाये। ट्रंप साफ़ तौर पर अपने देश की समृद्धि की परवाह करते हैं लेकिन समझते हैं कि रूस के अपने हित हैं। हमारे रिश्ते व्यवसायिक हैं। पुतिन के इस दावे पर ट्रंप ने अपनी सहमति व्यक्त की यानी अगली व्यवसायिक मुलाकात मास्को में हो सकती है।
पत्रकारों के प्रश्नों का उत्तर दिये बिना ही संयुक्त वार्ता समाप्त कर दी गई जिसके संबंध में रूसी राष्ट्रपति के प्रेस सचिव दिमित्री पेस्कोव ने स्पष्ट किया कि व्यापक टिप्पणी करने के कारण सवाल नहीं लेने का निर्णय लिया गया था। संयुक्त रूप से व्यापक बयान दिए गए थे। बातचीत वास्तव में बहुत अच्छी रही। इस तरह की बातचीत से मिलकर शांति का रास्ता तलाशने की दिशा में ठोस कदम बढ़ाए जा सकते हैं। इस घटना क्रम को समूची दुनिया केवल और केवल रूस-यूक्रेन युद्ध विराम के प्रयासों के रूप में ही देख रही है जबकि सूत्रों की मानें तो यह वास्तव में ट्रंप की एक षडयंत्रकारी योजना का महात्वपूर्ण अंग है जिसे शान्ति वार्ता के रूप में प्रचारित किया गया। एक ऐसी वार्ता जिसमें दूसरे पक्ष यानी यूक्रेन की भागीदारी आवश्यक ही नहीं समझी गई। वहां के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की या उनके किसी प्रतिनिधि को शामिल नहीं किया गया। जबकि चर्चा का मुख्य विषय यूक्रेन युद्ध ही घोषित था।
तीन घंटे तक चले संवाद और विदेश मंत्रालयों की भागीदारी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि इसमें केवल युद्ध विराम के मसला पर ही विचार-विमर्श नहीं हुआ बल्कि दुनिया की पूरी ठेकेदारी एक साथ मिलकर करने की गुप्त योजना पर भी चर्चा हुई। तभी तो पुतिन ने अपने वक्तव्य में स्पष्ट रूप से संकेत दिये कि रूस और अमेरिका के संबंध व्यवसायिकता पर ही केन्द्रित हैं। यानी अमेरिका अपने टैरिफ बम से रूस को सीधा नुकसान पहुंचाने का प्रयास कर रहा है जबकि रूस अपने मित्रों के साथ तेल निर्यात सहित अन्य संसाधनों के आदान-प्रदान करके अपनी मजबूती को नये आयाम देने में जुटा है। दौनों राष्ट्राध्यक्षों ने अपने एकान्त संवाद में निश्चय ही संसार के वर्तमान परिदृश्य की समीक्षा की होगी। अपने-अपने हितों को साधते हुए विश्व मंच पर स्वयं की छवि उज्जवल करने की नीतियां बताई होंगी। आपसी सहयोग के बिन्दुओं को तलाशा होगा किन्तु अविश्वास के धरातल पर खडे अमेरिका कि स्वार्थपरिता के कारण ही निर्णायक स्थिति आकार नहीं ले सकी होगी। ऐसे में पत्रकारों के सामने चन्द शब्द बोलकर ट्रंप सहित पुतिन ने भी उस अध्याय को आगे बढा दिया। यथार्थ तो यह है कि विश्व का चौधरी बनने की चाह में ट्रंप ने एक बार फिर अपनी घातक चाल चली ताकि रूस के साथ संतुलन बनाते हुए भारत के विशालतम बाजार पर कब्जा किया जा सके।
भारत की दम पर राष्ट्रपति बनने वाले अहसानफरामोश ट्रंप का स्वार्थी चेहरा अब बेनकाब हो चुका है। समूची दुनिया को अपने सामने झुकाने का मंसूबा पालने वाले अमेरिका की वर्तमान नीतियां उसी के लिए घातक होतीं जा रहीं हैं। अमेरिका का पाकिस्तान की गलबहियां करते ही चीन ने भारत के साथ नजदीकियां बढाना शुरू कर दीं। उल्लेखनीय है कि अलास्का में बैठक के लिए जाते समय अमेरिकी एयर फोर्स वन से फाक्स न्यूज को दिए साक्षात्कार में डोनाल्ड ट्रंप ने भारत को रेखांकित करते हुए कहा था कि असल में उन्होंने एक ऑयल क्लाइंट खो दिया है यानी भारत, जो लगभग 40 प्रतिशत तेल ले रहा था। चीन, जैसा कि आप जानते हैं, काफी मात्रा में ले रहा है। और अगर मैंने सेकेंडरी सेक्शन्स लगाए तो यह उनकी दृष्टि से बेहद विनाशकारी होगा। अगर मुझे करना पड़ा तो मैं करूंगा, शायद मुझे ऐसा न करना पड़े।
वहीं अलास्का में रूस के राष्ट्रपति पुतिन से मुलाकात के बाद राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि उन्हें अभी रूसी तेल खरीदने वाले देशों पर जवाबी टैरिफ लगाने के बारे में नहीं सोचना पड़ेगा, लेकिन उन्हें दो या तीन सप्ताह में सोचना पड़ सकता है। इस तरह के नहीं सोचना पडेगा, सोचना पडेगा, जैसे अस्पष्ट बयानों से ट्रंप का मानसिक दिवालियापन एक बार फिर संसार के सामने आया। समूची दुनिया में इस मुलाकात को भले ही रूस-यूक्रेन युद्ध के शान्तिपूर्ण हल की दिशा में मील का पत्थर माना जा रहा हो परन्तु ट्रंप के षडयंत्र का एक अंग था अलास्का संवाद जिसके प्रति विश्व को अभी से सचेत होने की आवश्यकता है अन्यथा आने वाले समय में अमेरिका के कारण मानवता को तीसरे विश्वयुद्ध की विभीषिका झेलना पड सकती है। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।










