भविष्य की आहट/ समस्याओं के समाधान हेतु तीनों स्तम्भों को करना होगा आत्मनिरीक्षण: डा. रवीन्द्र अरजरिया

डेस्क न्यूज। मूसलाधार बरसात ने देश के व्यवस्था तंत्र की पोल खोलकर रख दी है। नागरिक सुविधाओं की दिशा में किये जाने वाले उल्लेखनीय प्रयासों के दावे हवा हवाई साबित हुये हैं।

शहर – शहर, गांव – गांव समस्याओं का अम्बार लगा है। जल निकासी, यातायात प्रबंधन, आपात स्थितियों का मूल्यांकन, भवन निर्माण की स्वीकृति, अवैध निर्माण पर रोक, अतिक्रमण विरोधी अभियान, नाली – नालों सहित सीवर लाइनों का रखरखाव आदि पर निरंतर भारी धनराशि खर्च होने के बाद भी जन समस्यायें दिन दूनी, रात चौगुनी गति से बढती ही जा रहीं हैं। लगभग प्रत्येक वित्तीय वर्ष में एक बडा बजट जन सुविधाओं के नाम पर आवंटित किया जाता है। नगरपालिकाओं, नगर निगमों, नगर पंचायतों, ग्राम पंचायतों सहित अन्य नागरिक सुविधाओं से जुडे विभागों में तैनात कार्यपालिका के अधिकारियों की देखरेख में कार्य कराये जाते हैं। अधिकांश कार्यों पर हमेशा ही भ्रष्टाचार, गुणवत्ताविहीन कार्य, घोटालों आदि के आरोप लगते रहे हैं। ज्यादातर आरोपों को दरकिनार करने की आधिकारिक आदत पर जब जनता का दबाव भारी पडने लगता है तब मजबूरन जांच बैठा दी जाती है किन्तु जांच आख्या को बंद फाइल में दफन कर दिया जाता है।
प्रारम्भिक तौर पर समीक्षा करने पर स्पष्ट होता है कि अतिक्रमणकारी गिरोहों, भ्रष्टाचारी कुनवों और दलालों की तिकडी ने देश को अनियमिततायों के भंवर जाल में पूरी तरह फंसा रखा है। महानगरों से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों तक इनका साम्राज्य फैला हुआ है। नालियों – नालों के किनारे, ओवर ब्रिज के नीचे, रेलवे लाइन के पास, गौचर की भूमि, राष्ट्रीय राजमार्ग की पटरियों, फुटपाथ, सार्वजनिक स्थानों सहित सभी सरकारी जमीनों पर पहले कबाडे का सामान डालकर अस्थाई अड्डा बनाया जाता है फिर उसको टाट फट्टियों से घेरा जाता है। कुछ समय बाद उन टाट के फट्टों पर बांस की बाड लगा दी जाती है और कालान्तर में वहां स्थाई निर्माण कर लिया जाता है। इस स्थानों पर बिजली के जलते हुए बल्व, फर्राटे भरते कूलर, किनारे पर रखे फ्रिज, दीवाल पर टंगे बडे से गूगल टीवी आदि देखे जा सकते हैं। अवैध स्थानों का यह विलासता भरा वातावरण विद्युत विभाग द्वारा निर्विघ्न रूप से दी जाने वाली ऊर्जा के मनमाने उपयोग से विस्त्रित होता जाता है।
इस तरह किस्तों में होने वाले इस निर्माण कार्य को वहां से गुजरने वाले कार्यपालिका के उच्चाधिकारियों से लेकर विभागीय उत्तरदायी अधिकारियों तक रोज अपनी जागती आंखों देखते रहते हैं परन्तु उन्हें कभी भी मोटी पगार के एवज में मिलने वाले दायित्वबोध का अहसास नहीं होता। पुलिस, पटवारी, नगर निकाय के अधिकारियों सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारियों की दिनचर्या तो केवल चैम्बर कल्चर, केबिन सिस्टम और कार्यालयीन पद्धति से प्रारम्भ होकर वहीं समाप्त हो जाती है। धरातली स्थितियों की अधिकांश आख्याओं की औपचारिकतायें तो बंद कमरों में ही पूरी कर ली जातीं हैं। यही स्थिति निर्माण कार्यों के मूल्यांकन के संबंध में भी लागू होती हैं।
निरंतर बढ रहे अतिक्रमण के लिए प्रारम्भिक तौर पर यदि नगर निकाय, यातायात पुलिस और विद्युत विभाग ही अपने कर्तव्यों के प्रति सजग हो जायें तो रोजमर्रा के जाम, जल भराव, दुर्घटनाओं आदि से निजात मिल सकती है। नियमित रूप से नगर निकाय के द्वारा नियुक्त अमले को नियमित रूप से दुकानों के बाहर पटरियों पर फैसे सामानों की जप्ती सहित अर्थदण्ड करना पडेगा, यातायात पुलिस को परिवहन नियमों से लेकर निर्धारित स्थानों पर पार्किंग का उलंघन करने वालों पर कार्यवाही करना होगी और सचेत रहना होगा विद्युत विभाग को अवैध स्थानों पर चल रहे बिजली कनेक्शनों के प्रति। प्रारम्भिक तौर पर केवल तीन विभागों के स्वस्थ होते ही रोजमर्रा की अधिकांश समस्याओं का ग्राफ नीचे आने लगेगा परन्तु इस हेतु कर्तव्यबोध के तंत्र पर लगा जंग साफ करना असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है।
करदाताओं की खून-पसीन की कमाई से सरकारी खजाने में पहुचने वाला पैसा ही उत्तरदायी अमले को भारी भरकम पगार के रूप में मिलता है किन्तु उसके बदले में अधिकांश स्थानों पर लापरवाहियां, कामचोरियां और मनमाने आचरण देखने को मिलते हैं। सरकारी तंत्र के मठाधीशों में एक बडा वर्ग तो पगार को पेंशन और कार्य के बदले दाम लेने के सिद्धान्त पर विश्वास रखता है। उनकी मनमानियों पर संवैधानिक अनुशासन का चाबुक चलते ही कर्मचारी संगठन, अधिकारी फोरम और उनको संरक्षण देने वाले राजनैतिक दलों द्वारा सडकों पर प्रदर्शन से लेकर हडताल, जाम, तोडफोड जैसी स्थितियां निर्मित होते देर नहीं लगती।
वोट बैंक की राजनीति में अकण्ठ डूबी विधायिका, लाभ कमाने में जुटी कार्यपालिका और लगभग सभी कार्यों में हस्तक्षेप का अधिकार रखने वाली न्यायपालिका को आत्म निरीक्षण करना होगा तभी जन समस्याओं का वास्तविक समाधान हो सकेगा अन्यथा देश में सक्रिय बल का सिद्धान्त आमजन को समस्याओं की सौगात देते हुए शोषण के साथ नित नये कीर्तिमान बनाता ही रहेगा। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।










