गीता जयंती पर सनातन धर्म सेवा समिति ने किया व्याख्यान माला का आयोजन, गीता अथाह ज्ञान का सागर है, कर्म, भक्ति व ज्ञानयोग से मोक्ष संभव: रमाशंकर मिश्रा ‘मनीषी’
मृत्यु के समय नहीं, जीवित अवस्था में गीता पढ़ें व जीवन में उतारें- महंत भगवानदास 'श्रृंगारी', राष्ट्र व मानव कल्याण हेतु गीता का अध्ययन करे हर सनातनी- गुरु प्रसाद अवस्थी, गीता व रामचरित एक दूसरे की पूरक - मधुसूदन पित्रे
छतरपुर। गीता जयंती के अवसर पर सनातन धर्म सेवा समिति द्वारा स्थानीय वीरांगना अवंतीबाई महाविद्यालय में व्याख्यान माला का आयोजन किया गया जिसमें आगंतुक विद्वानों ने श्रीमद्भागवत गीता के उपदेश व सार को समझाते हुए वर्तमान परिवेश में गीता के महत्व को प्रतिपादित किया।
सनातन धर्म सेवा समिति के अध्यक्ष पं. सौरभ तिवारी ने बताया कि ब्रह्मपुराण के अनुसार मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष एकादशी (मोक्षदा एकादशी) को गीता जयंती का पर्व मनाया जाता है इसी दिन कुरुक्षेत्र की रणभूमि में योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था । आधुनिक परिवेश में लोग गीता के महत्व को समझते हुए गीता के विचारों से परिचित होते हुए उसे अपने जीवन में उतारें इस उद्देश्य को लेकर समिति द्वारा व्याख्यान माला का आयोजन किया गया।
उक्त व्याख्यान माला में मुख्यवक्ता के रूप में गीता मनीषी रमाशंकर मिश्रा, मुख्य अतिथि के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग सह-संघचालक गुरुप्रसाद अवस्थी रहे, कार्यक्रम की अध्यक्षता जानराय टौरिया के महंत भगवानदास श्रृंगारी ने की वहीं विशिष्ट अतिथि के रूप में वरिष्ठ समाजसेवी मधुसूदन पित्रे, वीरांगना अवंतीबाई महाविद्यालय के विधि प्राचार्य डॉ. अतुल तिवारी व महंत कौशलेंद्र दास मंचासीन रहे।
कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलन, मां सरस्वती पूजन व श्रीमद्भागवत गीता पूजन के साथ हुआ तत्पश्चात समिति के अध्यक्ष पं. सौरभ तिवारी ने गीता जयंती समारोह की प्रस्तावना व स्वागत भाषण दिया ।
मुख्यवक्ता रमाशंकर मिश्रा मनीषी ने कहा कि गीता अथाह ज्ञान का सागर है जिसमें जितने गोते लगाएंगे उतना जीवन का सार दिखाई देगा । ये ग्रंथ नहीं जीवन दर्शन है जो कि प्रत्येक प्राणी को मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कराता है इसलिए इसे मोक्षदा एकादशी के रूप में मनाया जाता है उन्होंने गीता के अनेक श्लोकों का सार सभी के समक्ष रखा।
मुख्य अतिथि गुरु प्रसाद अवस्थी ने अपने उद्बोधन में समझाया कि सनातन धर्म में गीता का विशेष महत्व है गीता में ही राष्ट्र व मानव के कल्याण का रहस्य छिपा है । अपनी सनातनी परंपरा व संस्कृति को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी हम सभी की है इसलिए सभी को धर्मग्रंथों का अध्ययन करना चाहिए।
महंत भगवानदास श्रृंगारी ने कहा कि जब व्यक्ति का अंतिम समय आता है तब गीता पाठ होता है जबकि स्वास्थावस्था में गीता पढ़ते हुए अच्छे कर्म करना चाहिए ताकि ज्ञान, भक्ति व मोक्ष की प्राप्ति हो ।
विशिष्ट अतिथि मधुसूदन पित्रे ने गीता व रामचरित मानस का तुलनात्मक अध्ययन की चर्चा करते हुए दोनों को एक-दूसरे का पूरक बताया। उन्होंने रामचरित मानस के प्रसंगों के बारे में बताते हुए भक्ति मार्ग के हितोपदेशों दिए। कार्यक्रम के अंत में सभी अतिथियों का शाल-श्रीफल से सम्मान किया गया । कार्यक्रम का संचालन कु. कविता राज ने किया व आभार प्रदर्शन समिति के अनूप दीक्षित ने किया।
उक्त व्याख्यानमाला में वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र अग्रवाल, शंकर सोनी,पंकज पाठक,आनंद शर्मा, प्रवीण गुप्त, जयकुमार गुप्ता, दिलीप सेन, पुष्पेन्द्र चौरसिया, नीतेश तिवारी, गिरजा पाटकर, राकेश शर्मा, राकेश रूसिया,संदीप गुप्ता,सुदीप पाण्डेय, केतन अवस्थी, दिनेश रिछारिया, रवि नीखरा, विपेंद्र अहिरवार, बृजेश तिवारी शिवी, नीलम पांडे, मीना दुबे, बलजीत कौर, हेमलता विश्वकर्मा, खुशी करवरिया, पुष्पेन्द्र वर्मा, प्राशीष नारायण चतुर्वेदी, रोहित शर्मा, जयकांत पाठक, कृष्णकांत चौरसिया, कृष्ण प्रताप सिंह, राजेंद्र शर्मा, डा. धीरेंद्र शर्मा, शिवम मिश्रा, अंशू अग्रवाल, संदीप सोनी सहित काॅलेज स्टाफ, छात्र-छात्राएं व अन्य लोग उपस्थित रहे ।