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भविष्य की आहट/ विस्फोटक होते हालातों के स्पष्ट संकेत: डा. रवीन्द्र अरजरिया

डेस्क न्यूज। दुनिया में भारत के बढते कद को नीचे लाने के लिए सीमापार से होने वाले षडयंत्र निरंतर तेज होते जा रहे हैं। बंगलादेश, श्रीलंका जैसे राष्ट्रों को घुटनों पर लाने वाली ताकतों की आंखों में अब देश और देश का नेतृत्व खटकने लगा है। रूस के बाद यूक्रेन की यात्रा से लेकर मालदीप जैसों के परिवर्तित व्यवहार तक ने भारतीय कूटनीति का लोहा मनवा दिया है ऐसे में देश के आन्तरिक हालातों को गृहकलह तक पहुंचाने के लिए हथियारों के सौदागरों व्दारा अपने पिट्ठिओं के माध्यम से मीरजाफरों की फौजों को सक्रिय कर दिया गया है।

न्यायालयों के फैसलों के विरोध में खास जातियों के मुखौटे ओढकर केन्द्र को घेरने के हिंसक प्रयासों की बानगी पिछले दिनों सडकों पर खुलेआम देखने को मिली। भारतबंद के उस आह्वाहन के दौरान ही महन्त रामगिरि जी महाराज के वक्तव्य को पैगम्बर विरोधी बताकर मुसलमानों को भडकाया गया। राष्ट्रद्रोहियों ने दौनों मोर्चों पर एक साथ घातक प्रहार करके सुरक्षा व्यवस्था को अग्नि परीक्षा देने के लिए बाध्य कर दिया था। आन्दोलन के नाम पर अपराध करने वालों को अनेक राजनैतिक दलों के कद्दावर नेताओं ने खुलकर समर्थन दिया। ऐसा ही समर्थन जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय परिसर में टुकडे-टुकडे गैंग के बुलंद नारों को दिया गया था। राष्ट्रहित में हटाई गई धारा 370 के विरोध हेतु जम्मू-कश्मीर चुनावों में अनेक राजनैतिक दल एकजुट हो रहे हैं।

इन्हीं पार्टियों के काले कोटधारी नेताओं की जमात न्यायालय की चौखट पर भितरघातियों के साथ खडी हो जाती है। राष्ट्रीय पार्टियों की कारगुजारियों के मध्य ही हिंसक प्रयास भी शुरू हो गये हैं। उदाहरण के तौर पर देखें तो मध्यप्रदेश का छतरपुर जिला अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण उत्तरप्रदेश के एक बडे भू भाग को भी सीधा प्रभावित करता है। विगत दिनों वहां के आकाशवाणी तिराहे सहित जवाहर रोड पर भारतबंद के दौरान खुलकर तोडफोड की गई, दुकानों को नुकसान पहुंचाया गया, लोग घायल हुए। यह सारी घटनायें हो ही रही थी कि महाराष्ट्र में दिये वक्तव्य के विरोध मुस्लिमों की भीड ने सिटी कोतवाली पर हमला कर दिया। जमकर पथराव हुआ, झूमा झटकी हुई, नारों की शक्ल में उत्तेजना फैलाई गई।

साफसुथरे बाजार में स्थिति कोतवाली पर पत्थरों, ईंटों, टुकडों आदि की अचानक बरसात होने लगी। निश्चय ही यह सामग्री आगन्तुक भीड पहले से ही लेकर चली थी और पूर्व लिखित स्क्रिप्ट को ही अमली जामा पहनाया जा रहा था। इस हिंसा में शहर कोतवाल सहित तीन पुलिसकर्मी गम्भीर रूप से घायल हो गये। यह तो केवल छतरपुर के शान्त इलाके की बानगी है जबकि समूचे बुंदेलखण्ड में रोहिग्याओं, बंगलादेशियों और घुसपैठियों की व्यापक पैमाने पर आमद की चर्चायें लम्बे समय से हो रहीं हैं परन्तु पानी सिर से ऊपर पहुंचने के पहले इन सब की चिन्ता न करने का अघोषित प्रशिक्षण शायद उत्तरदायी अधिकारियों को पूर्व में दिया जा चुका है तभी वे आंखों के सामने हो रहे गैरकानूनी कृत्यों को निरंतर अनदेखा करते रहे हैं।

अशान्ति को लेकर सुर्खियों में आये छतरपुर में ही बिजावर नाके वाली पुलिस कालोनी के सामने, वीआईपी के आवागमन वाला सर्किट हाउस रोड, व्यस्ततम जवाहर रोड आदि पर लम्बे समय से अतिक्रमणकारी सरकारी जमीनों पर ने केवल काबिज हैं बल्कि उन्हें बिजली, पानी आदि की सेवायें भी निरंतर दी जा रहीं हैं। छोटे-बडे शहरों की कौन कहे उत्तराखण्ड राज्य में तो प्रदेश की 11 हजार हेक्टेयर वन भूमि पर अवैध कब्जे हो चुके हैं। वास्तविक समाजसेवियों व्दारा जब इस ओर सरकार का ध्यानाकर्षित कराया गया तब कुम्भकरणी नींद टूटी और भारी मसक्कत के बाद महज 11.5 हेक्टेयर भूमि मुक्त कराई गयी।

धरातली सत्यता तो यह है कि वहां के 39 वन प्रभागों में 104.54 वर्ग किलोमीटर जंगल में अतिक्रमणकारियों की संदिग्ध गतिविधियां अभी भी संचालित हो रहीं हैं। सीमापार के घुसपैठियों को देश के भितरघातियों व्दारा न केवल विधायिका में घुसे अपने सिपाहलारों के माध्यम से संरक्षण प्रदान करवाया जाता है बल्कि कार्यपालिका में विभिन्न पदों पर काबिज अपने दलालों के व्दारा दस्तावेजी सबूतों के साथ देश का नागरिक बना दिया जाता है और फिर शुरू हो जाता है सरकारी सुविधाओं को लेकर राष्ट्रविरोधी अभियान। बंद का आह्वाहन और महाराष्ट्र में महंत के वक्तव्य का विरोध, एक साथ होते ही जातिगत जनगणना का मंसूबा पलाने वालों की लाटरी निकल गई।

विभाजनकारी जनगणना को मुद्दा बनाने वाले वास्तव में जन्म के आधार पर खाई खोदने को आतुर हैं। दूसरी ओर जाति का नाम लेने पर आपराधिक धाराओं के तहत दण्ड का प्राविधान है। एक ओर किसी को धमकी देने पर मुकदमा कायम हो जाता है किन्तु कर्नाटक में दिग्गज नेता के व्दारा बंगलादेश की तरह राज्यपाल का हस्र करने की चेतावनी पर सर्वत्र मौन है। देश के असामाजिक तत्वों को बंगलादेशी गृहयुध्द के सदृश्य वातावरण निर्मित करने के लिए उकसाने वाले खद्दरधारियों पर सरकारी डंडा अपने आवरण से बाहर नहीं निकल रहा है। संसद में शपथ ग्रहण के दौरान फिलिस्तीन का नारा बुलंद करने वाले खुलेआम साम्प्रदायिक दंगों के लिए वातावरण निर्मित कर रहे हैं, परन्तु संविधान खामोश है। खण्डित जनादेश का परिणाम परिलक्षित हो रहा है।

बलात्कार की घटनायें, अपराधों की बढता ग्राफ, संसद से बिना पारित हुए लौटते राष्ट्रहित के बिल और तार-तार होती वहां की मर्यादायें, मनमाना आचरण करने वालों का लहराता परचम, मेहनतकशों के खून की कमाई पर ऐश करते हरामखोर और राष्ट्रघातियों के पक्ष में संविधान की धाराओं को तोडमडोर कर प्रस्तुत करने वाली जमात जैसे अनगिनत कारक है जो देश के विस्फोटक होते हालातों के स्पष्ट संकेत दे रहे हैं परन्तु उत्तरदायी लोगों की आंखों पर स्वार्थ की पट्टी बंधी हुई है तभी तो वे बूंद-बूंद करके जमा किये जा रहे तेजाब को देखने की साहस नहीं कर रहे है। ऐसे में स्वयं की सुरक्षा के लिए आम आवाम को स्वयं तैयार रहने की जरूरत है अन्यथा षडयंत्रकारियों की फौज, भीड की शक्ल में कभी भी उन्हें नस्तनाबूद कर देगी। इस बार बस इतनी ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।

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