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असत्य की राह में सफल होने से श्रेष्ठ है सत्य की राह में असफल हो जाना: शिव बहादुर सिंह

डेस्क न्यूज। अपने ईमान का सौदा करके अगर हमने कोई सुख प्राप्त कर भी लिया तो उस सुख का कोई वजूद नही होता। आज अधिकाँश लोग गलत तरीके से अपने जीवन क़ो सँचालित कर रहे हैं। कोई सत्ता के मद में चूर हैं, कोई पद के नशे में मद मस्त है औऱ कोई अहंकार के वशीभूत होकर अपनी मनमानी कर रहा है।

कई लोग इन लोगों क़ो देखकर संशय में पड़ जाते हैं औऱ बयान देने लगते हैं की इनका तो कुछ बिगड़ ही नही रहा है औऱ ईश्वर के बनाए हुए विधान पर ही सवाल खड़ा करने लगते हैं। यहाँ हम लोग बहुत बड़ी भूल करते हैं। ईश्वर के विधान पर उँगली उठाने की किसी की क्षमता ही नही हैं। ये बड़ा ही गूढ़ रहस्य है। साधारण भाषा में हमें इसको ऐसे समझना होगा की कोई भी गलत कार्य करने वाला व्यक्ति अगर वर्तमान समय में भौतिक साधनों का उपभोग कर रहा है या आजकल की भाषा में कहा जाय की मौज की जिन्दगी जी रहा हैं तो ये उसके प्रारब्ध (पिछले जन्मों) के कर्मों का फल है अर्थात आपने पिछले जन्मों में अच्छा कार्य किया है तो उसका पुण्य आपको अवश्य प्राप्त होगा। अतः जब तक पुण्य उदय रहेगा तब तक सही रहेगा। पुण्य खत्म होते ही उसको उसके द्वारा किए हुए बुरे कर्मों का फल भोगना ही होगा।

गुरुदेव श्री शक्ति पुत्र महाराज जी ने स्पष्ट शब्दों में उदबोधित किया है की मनुष्य के प्रत्येक कर्मों का फल सुनिश्चित है-चाहे अच्छे कर्म हों या बुरे कर्म हों। इस ब्रह्माण्ड में विधि के विधान क़ो भली-भाँति समझने वाले एक ही ऋषि हैं-वो हैं सद्गुरुदेव श्री शक्ति पुत्र महाराज जी।इस धरती पर मनुष्य के आन्तरिक स्वभाव व प्रवृत्ति क़ो कोई भी परिवर्तित करने वाले अगर हैं तो एक मात्र गुरुदेव जी ही हैं। आप किसी भी व्यक्ति से अगर बीस वर्ष बाद भी मिलेंगे तो आप कहेंगे की इसके स्वभाव में ज्यादा परिवर्तन नही हो पाया है ।कारण -आज कोई भी व्यक्ति मनुष्य की आन्तरिक संरचना (प्रवृत्ति) क़ो बदल ही नही पाया, परन्तु गुरुदेव जी ने माँ की साधनाओं द्वारा असँख्य लोगों के जीवन में व्यापक परिवर्तन ला दिया है। बड़े से बड़ा शराबी, बड़े से बड़ा क्रोधी, बड़े से बड़ा अपराधी गुरुदेव जी द्वारा प्रदत्त मार्ग का पालन करके एक साधक की तरह अनुशासित जीवन जी रहा है।

माँ गुरुवर की साधना आदमी क़ो आदमी बना देती है।साधना के साथ में अपने आचार-व्यवहार में परिवर्तन भी करना पड़ेगा, अर्थात हमें अपना जीवन पारदर्शी बनाना होगा। छल-प्रपंच से रहित जीवन जीना होगा तभी साधनाओं का भी लाभ मिल पाएगा। अनेक लोग अभी मृत्यु के भय से डरे हुए हैं जैसे ही ये महामारी गयी फिर से वही जीवन (पाखण्ड वाला) जीना शुरू कर दिया। हमारे स्वभाव में परिवर्तन तभी होगा जब हम माँ गुरुवर की नियमित साधना करेंगे।

अभी हमारा मन अशान्त क्यूं रहता हैं, जल्दी से हम क्रोधित क्यूँ हो जाते हैं, हर पल दूसरों क़ो नीचा दिखाने की प्रवृत्ति क्यूं रहती है क्यूंकि हम साधनाओं से कोसों दूर हैं। जिस दिन एक साधक की प्रवृत्ति बलवती हो जाएगी हमसे मिलने वाला व्यक्ति या बात करने वाला प्रत्येक व्यक्ति आनन्दित हुए बिना नही रह पाएग।मनुष्य का स्वभाव ये है कि जैसे ही उसके जीवन में कुछ अच्छा होगा वो पिछ्ली बातों को भूलकर फिर से मौज मस्ती वाली जिन्दगी जीने लगता है और साधना आराधना को भूलने लगता है। ऐसी गलती कदापि ना करें। परिस्थितियां कैसी भी हों आप समभाव से माँ गुरुवर क़ी साधना करते रहिये। आप अपने जीवन में ये गाँठ बाँध लीजिये क़ी आप स्वयं को तो परिवर्तित कीजिये ,उसी के साथ-साथ दूसरों को भी गुरुवर क़ी विचारधारा से अवगत कराते रहिये। आज संसार में अधिकाँश लोग भटकाव का जीवन जी रहे हैं। ऐसे लोगों के जीवन में बहुत बड़े बदलाव क़ी जरूरत है। आप स्वार्थ को त्यागकर परमार्थ में लग जाइये। जीवन को खुशहाल बनाने का सबसे बड़ा माध्यम यही है।

जै माता की जै गुरुवर की

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