गुरुवर द्वारा संचालित जन जागरण के क्रम (आरती और चालीसा पाठ क्रम )समाज में आँधी-तूफान की तरह तीव्र गति से आगे बढ़ते जा रहे हैं, सौभाग्यशाली लोग ही इन जन जागरण के क्रमों में शामिल हो पाएँगे : शिव बहादुर सिंह
डेस्क न्यूज। आज समाज में चारों तरफ जिधर निगाह उठाकर देखिये ,वहीं समस्याओं का अम्बार लगा हुआ है। लोग नाना प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त हैं। लोग अपराधिक गतिविधियों में लिप्त हैं। नशे और माँस का सेवन करके धीरे-धीरे मानसिक विक्षिप्तता के शिकार हो रहे हैं। चरित्रहीनता में सारा जीवन नष्ट करने पर आमादा हैं। आप कितना भी प्रयास कर लीजिये ,लोग मनमानी करने पर तुले हुये हैं। कुछ लोग अपने जीवन में आर्थिक पक्ष से बुरी तरह परेशान हैं फिर भी अपने दिमाग का दुरुपयोग लगातार किये जा रहे हैं। ऐसे लोगों को जब बुरे परिणाम प्राप्त होंगे तभी इन लोगों की आँख खुलेगी।
दरअसल मनुष्य का जन्म किसलिये हुआ है ,उसे स्वयं ही इस बात का भान नही है।कलिकाल (कलयुग )की सबसे बड़ी विशेषता यही है की लोगों को विषय विकार में लिप्त रहने को विवश करेगा पर हमें सदैव चौकन्ना होकर रहना होगा। जिसने भी अपने दिमाग का दुरुपयोग किया , वो कब चारों खाने चित्त होकर गिर पड़ेगा ,उसे स्वयं भी इसका एहसास नही हो पाएगा। कलिकाल की इसी भयावहता को ध्यान में रखते हुये गुरुदेव जी ने समाज को अत्यन्त महत्वपूर्ण क्रम प्रदान किये हैं। इसके दो चरण हैं। पहले चरण में आप अपने घर पर नित्य माँ की साधना कीजिये और अपने जीवन में सुख और शांति प्राप्त कीजिये। दूसरा चरण सामूहिक आरती और चालीसा पाठ का है।
गुरुदेव जी ने इन क्रमों में असीम ऊर्जा का संचार किया है। अगर आप टीम प्रमुख हैं तो आप समाज में जाइये और लोगों को जागरूक कीजिये कि इन क्रमों के माध्यम से हम सभी लोग अपनी समस्याओं का समाधान प्राप्त कर सकते हैं और अगले कई जन्मों के लिये अपने जीवन को सफल बना सकते हैं। जो लोग टीम प्रमुख नही हैं ,उनके लिये शानदार अवसर ये है कि आप जहाँ पर आपके आस-पास आरती और पाठ हो रहा है ,वहाँ शामिल होकर गुरुदेव ,जी द्वारा प्रदत्त ऊर्जा के असीम भंडार से लाभ प्राप्त कर सकते हैं। कुछ लोग घर से बाहर जाने में संकोच करते हैं और नाना प्रकार के बहाने बनाकर अपने आपको लाभ से वंचित रखते हैं। गुरुदेव जी ने अनेकों बार कहा है कि अगर आप एक भी दुर्गा चालीसा पाठ करते हैं तो आपको इस क्रम से लाभ अवश्य प्राप्त होगा। आज हमें अपने आपसे सवाल करना होगा कि अपने जिले में चल रहे क्रमों में कितनी इमानदारी से हम शरीक होते हैं। अगर हमसे कोई भी न्यूनता हो रही है तो हम अपना निरीक्षण करें और उसमें सुधार करें। हमें एक बात समझ नही आती कि हम समस्याओं से जूझ भी रहे हैं ,इसके बावजूद हम अपने दिमाग का दुरुपयोग क्यूँ कर रहे हैं। जिस प्रकार से महाकवि कालिदास जिस डाली पर बैठे थे ,उसी डाली को काट रहे थे ,ठीक उसी प्रकार से अनेकों कालिदास हमारे आपके बीच ही रह रहे हैं और अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने का भरपूर प्रयास कर रहे हैं।
हमें अपने पूरे परिवार को जन जागरण के क्रमों से जोड़कर रखना होगा। हम लोगों को समाज में घर-घर जाकर लोगों को प्रेरित करना होगा। गुरुवर द्वारा निर्देशित क्रमों से बार-बार अवगत कराते रहना होगा। मनुष्य अपने बुरे ग्रहों के प्रभाव के कारण अच्छी बातों को जल्दी भूल जाता है ,अतः हमें उन्हें बार-बार याद दिलाते रहना होगा। देखिये हमारा कर्तव्य बनता है कि हम लोग घरों-घरों में जाकर लोगों को सत्य का ज्ञान करायें। समाज में जहर की तरह फैलाने वाली बुराइयों से लोगों को अवगत करायें। गुरुदेव जी ने हम सभी को धर्म योद्धा बनाया है। हम लोग चाहें तो बड़ी तेजी से समाज में परिवर्तन ला सकते हैं ,पर हम लोग रह-रह कर सुस्त पड़ जाते हैं।हम लोग ये सोच कर घर बैठ जाते हैं कि हमने अपनी घर की साधना कर ली पर ये आत्म कल्याण हुआ। जन कल्याण के लिये भी हमें जाना होगा। घर में बैठ जाने से हमारा कार्य पूर्ण नही होगा।
जो व्यक्ति माँ गुरुवर की नियमित साधना करता होगा ,उसे किसी भी प्रकार का आलस्य छू भी नही पाएगा। एक छोटे से दृष्टांत से इस लेख का समापन करना चाहूंगा कि एक गाँव में एक बार ऐसी समस्या उत्पन्न हुई कि गाँव में एक कूआँ था ,जो सूख चुका था। उसे भरने की योजना बनी और तय हुआ कि सभी लोग अपने-अपने घरों से एक- एक बाल्टी पानी सूखे कूँये में सुबह डालेंगे। सभी लोगों ने ये सोचा कि और लोगों ने डाल दिया होगा हमारे एक बाल्टी से क्या फर्क पड़ जाएगा और किसी ने पानी नही डाला । परिणाम ये रहा कि कूँये में एक भी बाल्टी पानी नही डाला गया। अतः हमें अपने कार्योँ को स्वयं करना होगा। दूसरा व्यक्ति करे या करे ,इससे हमारा स्वयं का कार्य प्रभावित नही होना चाहिये। आत्म कल्याण (माँ गुरुवर की साधना ) और जनकल्याण (माँ की आरती और चालीसा पाठ )अगर हम करते रहें तो जीवन के तमाम मुश्किलों से लड़ने की क्षमता हासिल कर सकते हैं।
जै माता की जै गुरुवर की