मध्यप्रदेशदमोहसागर संभाग

फर्जीवाड़ा: लखपति को बनाया नवीन तालाब निर्माण में मजदूर

मध्यप्रदेश। दमोह जिले में अधिकारियों ने इतने बड़े स्तर पर इस तालाब निर्माण में हेराफेरी कर डाली कि वे यह भी भूल गए उनकी यह हेराफेरी कभी भी पकड़ी जाएगी। पूरे मामले की जानकारी ली तो पता चला की जिन लोगों को वन विभाग ने कागजों पर मजदूर बना दिया है, हकीकत में वह कभी उस जगह पर गये ही नहीं और न उनको तालाब निर्माण की जगह का पता है। सबसे बड़ी बात उनको ये भी पता नहीं कि वह मजदूर कैसे बन गये, जबकि स्थानीय ग्रामीण रोजगार की तलाश में पलायन कर रहे हैं।

इनको कैसे बनाया गया मजदूर-
तिपनी के नवीन तालाब निर्माण में जिन लोगों को मजदूर दर्शाया गया है, वह हकीकत में मालगुजार और बड़े जमींदार हैं। जब मामले की छानबीन की गई तो यहां काम पर लगे मजदूरों में कोई 20 से 30 एकड़ जमीन का मालिक निकला, तो कोई जेसीबी, हार्वेस्टर का मालिक है तो कोई मोबाइल की दुकान का संचालन कर रहा है।

इतना ही नहीं किसी के पास टायर, ट्यूब की दुकान है तो कुछ किसान साथ ही अन्य जो मजदूर हैं वह अपने गांव में रहते हैं जो कभी तिपनी में काम करने भी नहीं गये। उसके बाद भी उनको कागजों में मजदूर बनाया गया है। कुछ ऐसे भी मजदूर है जो कुछ महीनों से दूसरी जगह निवास कर रहे हैं और नियमित वह कार्य कर रहे हैं उनके नाम पर भी तिपनी के नवीन तालाब निर्माण में मजदूरी करना बताया गया है।

क्या कहते हैं कागज में मौजूद मजदूर
नवीन तालाब निर्माण में सहजपुर निवासी सानू तिवारी को मजदूर बनाया गया है जबकि सानू तिवारी को इसकी जानकारी ही नहीं है। उनसे तिपनी के आरएफ 187 में निर्माण होने वाले तालाब में कार्य करने को लेकर बात की तो उन्होंने बताया कि उनको आज पता चला है कि वह मजदूर बने हैं, लेकिन हकीकत में न मैं कभी तिपनी गया न मैने कभी मजदूरी की है। इसी तरह पांजी गांव के कई महिला, पुरुष युवकों को मजदूर बनाया गया है। जब उनसे बात की तो उन्होंने बताया वह कभी मजदूरी पर नहीं गये हैं। उनके घर में खुद कई लोग कार्य करते हैं, क्योंकि जेसीबी, हाइवा, हार्वेस्टर सहित कई ट्रैक्टर उनके घर पर हैं वह कैसे मजदूर बन गये इसकी उनको कोई जानकारी नहीं है।

वनकर्मी कैसे करतें हैं यह सारा खेल-
मनरेगा से वन विभाग के कर्मचारी जिले से निर्माण कार्य तो मंजूर करा लेते हैं, मगर उनके पास मजदूर नहीं होते। इसलिये जिन लोगों को ग्राम पंचायत से किसी योजना का लाभ मिलता है तो उस योजना के बाद उस परिवार का जॉबकार्ड बन जाता है और उसका फायदा वनकर्मी उठा लेते हैं। कार्य मशीनों से कराने के बाद उनके जॉबकार्ड लेकर उनकी डिमांड डालकर उनको कागजों में मजदूर बना लेते हैं और बाद में सांठगांठ करके उसके खातों से राशि निकाल लेते हैं। कहीं-कहीं तो मजदूरों को पता भी नही चलता और आई हुई राशि निकल जाती है। इसमें उसका पूरा सहयोग क्योंस्क बैंक संचालक करते हैं और यही खेल वनकर्मियों ने तिपनी गांव में खेला है।

रेंजर करतें हैं अपनी आईडी से वेरीफाई-
मनरेगा योजना से यदि कोई निर्माण कार्य ग्राम पंचायत में होता है और उस पर लापरवाही होती है तो उसके भुगतान पर जनपद सीईओ रोक लगा सकते हैं। क्योंकि भुगतान करता सीईओ है, लेकिन वन विभाग की अलग आईडी होने के कारण उसके भुगतान उपवनमंडल अधिकारी की अनुसंसा मिलने के बाद रेंजर की आईडी से वेरीफाई किये जाते हैं। इसलिये पंचायतों की अपेक्षा वन विभाग कागजों पर लगे मजदूरों के मस्टर डाल लेते हैं क्योंकि इनका मूल्यांकन रेंजर द्वारा किया जाता है। तेंदूखेड़ा जनपद सीईओ मनीष बागरी ने मजदूरों की जगह जेसीबी से निर्माण होने वाले नवीन तालाब की शिकायत के बाद वन विभाग से रिकार्ड मांगने पत्र भेजा है, लेकिन वनकर्मियों ने रिकार्ड नहीं भेजा है इसकी पुष्टि जनपद सीईओ मनीष बागरी द्वारा की गई है।

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