आलेख एवं विचार

भविष्य की आहट/ बाड ही खाने लगी है खेत की फसल: डा. रवीन्द्र अरजरिया

डेस्क न्यूज। लोकसभा चुनावों के बाद परिणामों के कारणों का खुलासा होने लगा है। कहीं अहंकार की इबारत दिखाई जा रही है, तो कहीं लालच का दावानल सामने आ रहा है। कहीं धार्मिकता पर जातिवादी के परचम के संकेत मिल रहे हैं, तो कहीं घुसपैठियों की अवैध नागरिकता के दस्तावेज प्रकाशित हो रहे हैं। दलबदलुओं की आमद, आंतरिक कलह, वर्चस्व की जंग, पद लोलुपों की बाढ, स्वार्थ के कथानक जैसे निजी हितों के छुपे चेहरे सामने आने लगे हैं। यह सत्य है कि एनडीए ने विगत दौनों कार्यकाल में अनगिनत उपलब्धियां हासिल की थीं। देश में एकतरफा वातावरण भी था।

मतदाताओं में जातिवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद, सम्प्रदायवाद मुद्दे गौण हो रहे थे। तभी निजी स्वार्थ और अहंकार के सिंहासन पर बैठे स्वयंभू सुल्तानों ने राष्ट्रीय सोच को तार-तार करने वाले विदशी षडयंत्र को अमली जामा पहनाना शरू कर दिया। एनडीए को कमजोर करने में जहां लगभग पूरा विपक्ष अपने आधारभूत सिध्दान्तों को दफन करके आईएनडीआईए के बैनर तले एकत्रित होकर साइबर की सहायता से मनगढन्त आंकडे परासता रहा, वहीं राष्ट्रवादी संगठन के रूप में प्रचारित राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर अब असहयोगात्मक संदिग्ध गतिविधियां संचालित करने के आरोप भी लगने लगे हैं। सरसंघचालक मोहन भागवत व्दारा मणिपुर के बहाने केन्द्र पर निशाना साधने के बाद जयपुर के कनोता में आयोजित रामरथ अयोध्या यात्रा दर्शन पूजन समारोह में संघ के दूसरे सबसे बडे नेता इंद्रेश कुमार ने स्पष्ट रूप से कहा कि भाजपा अहंकारी हो गई थी, इसीलिये भगवान राम ने उन्हें 241 पर ही रोक दिया। इसी संगठन के मुखपत्र आर्गेनाइजर ने भी भाजपा को आडे हाथों लेते हुए एक विस्त्रित आलेख प्रकाशित किया है।

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयप्रकाश नड्डा ने इण्डियन एक्सप्रेस को दिये एक साक्षात्कार में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को एक वैचारिक मोर्चा या आइडियोलाजिकल फ्रंट बताया था तथा यह भी कहा था कि बीजेपी अपने आप चलती है। इसके साथ ही श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह में नरेन्द्र मोदी का व्यक्तित्व मोहन भागवत पर भारी रहा। पूजा-अर्चना के दौरान मुख्य आचार्य व्दारा प्रधानमंत्री से कर्मकाण्ड कराया गया तथा सहयोगी आचार्य व्दारा संघ प्रमुख से। उस समय संघ प्रमुख की भाव भंगिमा से उनका आन्तरिक असंतोष स्पष्ट रूप से झलक रहा था। संघ के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने पहचान उजागर न करने की शर्त पर बताया कि उसी दिन भगवान के बनवास की पटकथा दिखी जा चुकी थी। सरसंघचालक को अपने सामने एक स्वयंसेवक रह चुके व्यक्ति का ऊंचा होता कद नगवार गुजारा था। बाकी कमी को भाजपा अध्यक्ष के बयान ने पूरी कर दी थी। गोलवलकर ने जनसंघ में कहा था कि यह तभी तक है जब तक इससे संघ के हित सधेंगे। अन्यथा दूसरे ही क्षण इसे निगल लिया जायेगा, यह कथित वक्तव्य इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है।

जानकारों की मानें तो भारतीय जनता पार्टी की जडों में मट्ठा डालने का प्रयास शुरू हो चुका है। अब देखना यह है कि नेहरू-गांधी परिवार के रिमोड पर चलने वाली कांग्रेस की तरह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अब जनसंघ, भाजपा के बाद किस नये स्वरूप में अपने उपकरण को प्रस्तुत करती है। हिन्दी भाषी क्षेत्रों में भारतीय जनता पार्टी की पराजय के लिए साखा, संपर्क, बौध्दिक और सत्र की चौपाई को ही उत्तरदायी माना जा रहा है। प्रत्याशियों के चयन में निष्पक्षता का अभाव, योगी के अप्रत्यक्ष जातिवादी कृत्य, अनेक पूर्व सांसदों के स्वार्थपूर्ति के तूफानी प्रयास, पार्टी के कई चयनित जनप्रतिनिधियों व्दारा जनता की निरंतर उपेक्षा, अधिकांश सरकारी अधिकारियों व्दारा सरकार की नकारात्मक छवि का प्रदर्शन, व्यवस्था से जुडे सकारात्मक परिवर्तनों को समस्या के रूप में प्रस्तुति जैसे दर्जनों कारण भी सत्ताधारी दल की अनगिनत उपलब्धियों पर भारी पडे। सरकार की वास्तविक सोच और विकास के प्रयासों की मनमानी परिभाषायें की जाती रहीं।

विश्व में तीसरे नम्बर की अर्थ व्यवस्था बनने की कगार पर पहुंच चुके शीर्षोन्मुखी देश को पतन के गर्त में पहुंचाने में जहां विदेशी ताकतें निरंतर षडयंत्र कर रहीं है वहीं देश के अनेक मीरजाफर निजी स्वार्थपूर्ति के लिए जमीर बेचने वालों की लाइन में भीड लगाये खडे हैं। देश में साम्प्रदायिक वैमनुष्यता का वातावरण तैयार करने में दलगत राजनीति के अलावा धर्म गुरुओं की भी महती भूमिका रही है। धारण करने योग्य आचरण के साथ जुडाव की धार्मिक परिभाषा को विकृत करके परिस्थितिजन्य जीवन जीने की कला के रूप में सीमित कर दिया गया है। अवैध कब्जों को स्वतंत्र कराने की पहल का विरोध करने वाले अपने अतीत के जुल्मों को जायज ठहराने में जुटे हैं। संरक्षण देने वाले ही जब हत्या करने पर आमादा हो जायें तो फिर परमशक्ति के अलावा कोई सहारा सूझता नहीं है। भारत भूमि पर हमेशा से ही गुरुकुलों से ही राजधर्म की शिक्षा, दीक्षा और संरक्षण मिलता था परन्तु यह आज विद्या के मंदिरों (जेएनयू आदि) से लेकर धर्म के ठेकेदारों (मौलवी, पंडित आदि) तक पहुंच गया है। मुल्ला और अल्लाह का इस्लाम अलग-अलग हो गया है। ठीक इसी तरह संघ और सनातन का हिन्दू भी दो धारे में बट गया है।

सनातन का शाश्वत स्वरूप और अल्लाह का पैगाम, आज दौनों ही ढूंढे नहीं मिल रहे हैं। दीन-दुनिया के मायने बदलते जा रहे हैं। जिस्म की खबर रखने वाले रूह की तरफ से बेखबर हैं। ऐसे में लोगों का ईमान एक बार फिर डोलने लगा है। बाड ही खाने लगी है खेत की फसल। गुड खाने वाले देने लगे हैं गुड न खाने की सीख। ऐसे में संघ के व्दारा प्रस्तुत किये जाने वाला वर्तमान स्वरूप भाजपा सहित एनडीए के विपक्ष में मौजूद पार्टियों के कृत्यों से काफी कुछ मिलता है। विरोध के स्वर मुखरित करते रहने से अस्तित्व की जंग में मौजूदगी बनी रहे। अहंकार पुष्ट होता है और स्वयंभू सुल्तान होने का मुगाल्ता भी पलता रहता है। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।

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