आलेख एवं विचार

भविष्य की आहट/ शहादत रोकने हेतु छोडना होगी राजनैतिक प्रतिस्पर्धा: डा. रवीन्द्र अरजरिया

डेस्क न्यूज। देश की वर्तमान हालातों ने भविष्य की संभावनाओं और समस्याओं को रेखांकित करना शुरू कर दिया है। केन्द्र की कमजोर सरकार और दमदार विपक्ष के कारण कठोर निर्णयों के लिए बेहद समस्याग्रस्त वातावरण निर्मित हो चुका है। सकारात्मक प्रस्तावों पर भी नकारात्मकता प्रस्तुत करने के लिए संकल्पित विपक्ष का मनमाना आचरण जहां बंगाल में देश की विदेश नीति को तार-तार हो रही है वहीं सीमापार से आने वाले आतंकियों को संरक्षण देने का वायदा करने वाली ममता की तानाशाही अन्य राज्यों के लिए भी उदाहरण बनता जा रहा है।

आम आदमी पार्टी का दिल्ली सरकार को जेल के अन्दर से चलाने की स्थित से लेकर तृणमूल कांग्रेस की बंगाल सरकार व्दारा राज्यपाल के साथ विवाद पैदा करने तक को कांग्रेस के काले कोटधारी नेताओं व्दारा कानूनी दावपेंचों में फंसाने का पहल वास्तव में आंतरिक हालातों को विस्फोटक स्थित तक पहुंचाने की पहल ही है। ऐसे में केन्द्र में कमजोर सरकार और विपक्ष के राष्ट्रघाती कृत्यों को अवसर समझकर चीन से साथ मिलकर पाकिस्तान ने देश में आतंकी गतिविधियों को अंजाम देकर आंतरिक युध्द कराने की लक्ष्य निर्धारित कर लिया है। नई सरकार के गठन के बाद पाक सीमा से घुसपैठ तेज हो गई।

माछिल सेक्टर स्थित कामकारी में फार्वर्ड पोस्ट सहित विभिन्न सीमावर्ती इलाकों से पाक सेना व्दारा निरंतर गोलाबारी की जाने लगी। इस बार्डर एक्शन टीम में शामिल पाकिस्तानी सेना के विशेष कमांडो सहित वहां के पूर्व सैनिकों ने आतंकवादियों के वेश में कश्मीर की धरती में घुसपैठ करना शुरू कर दी है। उन्हें देश के लोकसभा और राज्यसभा के सदनों में हुये निन्दनीय दृश्यों को देखकर हमारी धरती पर मीरजाफर जैसों की सलाह पर ली और सेना के राष्ट्रभक्त सैनानियों के खून से घाटी को रंगना शुरू दिया।

उन्हें विश्वास है कि बंगला देश के आतंकियों को पनाह देने वाली ममता, राष्ट्र के शौर्य का प्रमाण मांगने वाले राहुल, खालिस्तान के मुद्दे पर नरम रुख अपनाने वाले केजरीवाल जैसे लोगों के साथ-साथ भारत की कानून व्यवस्था को मनमाफिक मोडने में माहिर कलुषित काले कोटधारी उनके मंसूबों को पूरा करने में हमेशा की तरह साथ खडे रहेंगे। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय मे देश के टुकडे-टुकडे करने की झंडा बुलन्द करने वालों को भी राजनीति के अखाडे के पहलवानों ने ही बचाया था। देश में जितनी भी राष्ट्र विरोधी स्थितियां पैदा हुईं, सभी में राजनैतिक दिग्गजों के नाम प्रमुखता से सामने आये। घटनाओं के समय रेखांकित किये गये मुद्दे समय के साथ ठंडे बस्ते में चले गये। राष्ट्र को राष्ट्रवाद से हटाकर जातिवाद के वर्गीकरण में विभक्त कर दिया।

कभी कानून की धाराओं, अधिनियमों के खण्डों और अनुशासन के सिध्दान्तों को साम्प्रदायिक रंग देकर न्याय की बंद आंखों में धूल झौंकने का काम किया जा रहा तो कभी आन्तरिक युध्द जैसी स्थितियां पैदा करने करने हेतु जेहाद की नई परिभाषायें गढीं गईं। छतों पर पत्थरों का ढेर, बमों की निर्माण, अवैध हथियारों का संग्रह, षडयंत्रकारियों को सहयोग, सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण जैसे कार्य करने वाले सफेदपोश के चेहरों पर चढे नकाब तक हाथ पहुंचते ही राजनैतिक खेमों से लेकर कथित समाजसेवियों, कथित बुध्दिजीवियों, कथित राष्ट्रभक्तों की जमातें अपने खास सिपाहसालारों के साथ सडकों पर हंगामा करने के लिए भीड की शक्ल में जमा होकर सम्पत्तियों को नष्ट करने लगते हैं।

लाइन आफ एक्चुअल कन्ट्रोल पर आक्रामक होता पाकिस्तान अपने दोस्त चीन के सहयोग से अब अत्याधुनिक हथियारों, उपकरणों के साथ अपने एसएसजी कमांडोज़, सेना के जवानों, पूर्व सैनिक, खास कट्टरपंथियों को छापामार युध्द में प्रशिक्षित करके घाटी में उतार रहा है। देश के गद्दारों से साथ उसका बेहतर तालमेल है। ऐसे कथित अनेक गद्दारों के नाम वर्तमान में देश की विभिन्न संवैधानिक संस्थाओं जिम्मेवार स्थानों पर अंकित होना प्रचारित है। राष्ट्र की सुरक्षा, विकास और सम्पन्नता हेतु लिये जाने वाले निर्णयों के लिए भी अब अनेक जटिलतायें पैदा हो गई हैं। चर्चा है कि इन जटिलताओं के जन्मदाता विगत कार्यकाल में कमजोर होते के बाबजूद भी दुनिया भर में भारत की बुराई के ब्राण्डएम्बेस्टर बनकर चर्चित रह चुके हैं। अनेक बार बेनकाब हो चुके चेहरों ने कभी माथे पर चंदन लगाया तो कभी सिर पर टोपी लगाई।

कभी पगडी बांधी तो कभी नंगे पैर चलने का अभिनय किया। नाम और कर्म से दोरंगी प्रकृति को अंगीकार करने वालों की जमात जब तक देश में सक्रिय रहेगी तब तक भितरघातियों से साथ मिलकर बाह्य आक्रान्ता निरंतर आक्रमण करते रहेंगे और राष्ट्र भक्तों से लहू से लाल होता रहेगा मां भारती का आंचल। आज के हालतों को देखते हुए यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि शहादत रोकने हेतु छोडना होगी राजनैतिक प्रतिस्पर्धा अन्यथा दलगत स्वार्थ की बलिवेदी स्वाधीनता की सांसे थमते देर नहीं लगेंगी। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।

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