CBI के दावे हो गए धुंआ-धुंआ… जिस सुरेंद्र कोली को बताया नरपिशाच, एक याचिका ने खोल दिए सारे राज


नोएडा में 2005-2006 में हुए निठारी हत्याकांड के बारे में तो आप सब को याद होगा. इस कांड के 18 साल बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुख्य आरोपी सुरेंद्र कोली को बरी कर दिया है और अन्य आरोपी मोनिंदर सिंह पंडेर को भी बाइज्जत छोड़ने का आदेश दिया है. हाईकोर्ट ने मंगलवार को इस मामले में फैसला सुनाते हुए ‘लापरवाही तरीके और लापरवाह’ जांच के लिए उत्तर प्रदेश (यूपी) पुलिस और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) सहित जांच एजेंसियों की फटकार लगाई है. कोर्ट ने पाया कि निठारी हत्याकांड में एकमात्र अपराधी के रूप में घरेलू नौकर सुरेंद्र कोली पर ध्यान केंद्रित करके, जांच अधिकारियों ने कुख्यात अपराधों के पीछे अंग तस्करी के व्यापार के असली मकसद होने की महत्वपूर्ण संभावना को नजरअंदाज किया है. न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति एसएएच रिज़वी की खंडपीठ ने 308 पन्नों के फैसले में कहा कि अंग व्यापार की संभावित संलिप्तता की जांच करने में विफलता एजेंसियों द्वारा ‘सार्वजनिक विश्वास के साथ विश्वासघात’ से कम नहीं है. आपको बता दें कि हाईकोर्ट के आदेश के मोनिंदर सिंह पंडेर तो रिहा हो गया है लेकिन सुरेंद्र कोली एक केस में उम्रकैद की सजा काट रहा है तो उसे अभी जेल में रहना होगा.
निठारी कांड में हाईकोर्ट का फैसला ऐतिहासिक है. क्योंकि पहली बार कोर्ट ने 12 केस में फांसी की सजा पाने वाले आरोपी को सभी केसों के एक साथ बरी किया है. संभवत यह पहला मामला है जब देश में किसी कोर्ट ने यह फैसला सुनाया है. आपको बता दें कि सुरेंद्र कोली के खिलाफ जांच एजेंसी ने 19 केस दर्ज किए थे, जिसमें से 3 मामलों में वह शुरुआत में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी गई थी. वहीं 16 मामलों में तीन मामलों में कोर्ट आरोपी कोली को बरी कर चुकी है. रिम्पा हलदार के मामले में हाईकोर्ट कोली की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल चुका है.
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि अदालत में अभियोजन पक्ष बार-बार अपना पक्ष बदलता रहा है. केस की शुरुआत में पंडेर और सुरेंद्र कोली दोनों पर इस निठारी हत्याकांड का पूरा आरोप लगया गया. बाद में अभियोजन पक्ष ने इस मामले में सिर्फ सुरेंद्र कोली को ही आरोपी बनाया और सारा दोष उस पर मढ़ दिया.
इस केस का सबसे बड़ी खामी थी कंकालों की बरामदगी. जांच के दौरान सभी कंकाल नाले से मिले जो निठारी स्थित डी-5 और डी-6 की सीमा पर थे. इस केस में किसी एक कंकाल की बरामदगी मोनिंदर सिंह पढ़ेर के घर से नहीं हुई.
इस केस में एक चौंकाने वाली बात सुरेंद्र कोली द्वारा हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में सामने आई थी. वर्ष 14 मई 2015 को हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में कहा गया था कि केंद्रीय महिला और बाल कल्याण विभाग के विशेषज्ञों ने निठारी कांड पर जांच रिपोर्ट बनाई थी. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि सभी शवों के धड़ गायब थे और इस रिपोर्ट में शक जताया गया कि अंगों की तस्करी की गई हो. रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि छोटे बच्चों के अंग प्रत्यारोपण की बेहद मांगा रहती है.
इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि शवों को जिस तरह से काटा गया था उसमें किसी डॉक्टर या मेडिकल लाइन से जुड़े शख्स के शामिल होने की आशंका जताई गई थी. सीबीआई को पंडेर के डी-5 मकान से कुछ नहीं मिला था लेकिन उनके पड़ोस में डी-6 में रहने वाले डॉक्टर अमित का बयान कभी लिया ही नहीं गया. आपको बता दें कि डॉक्टर अमित को मानव तस्करी के अवैध कारोबार के आरोप में पकड़ा भी जा चुका था.
सुरेंद्र कोली ने याचिका में कहा था कि शवों को पोस्टमार्टम करने वाले नोएडा के सीएमओ डॉ.विनोद कुमार के हवाले से कहा था कि उन्होंने शक जताया था कि नरभक्षण का आरोप शवों से गायब अंगों से ध्यान भटकाने के लिए लगया गया हो.
याचिका में कहा गया था कि समिति ने सीबीआई को सिफारिश की थी कि इस मामले की जांच मानव अंगों की तस्करी के एंगल से होनी चाहिए. इतना ही नहीं नोएडा के अस्पतालों में हुए अंग प्रत्यारोपण के रिकॉर्ड को भी खंगालना चाहिए. इसके साथ हत्याओं में बड़ी गैंग के शामिल होने की जांच के लिए भी कहा गया था लेकिन सीबीआई ने उस पर कुछ नहीं किया.
सीबीआई ने हाईकोर्ट को सुनवाई के दौरान बताया था कि उन्होंने पंडेर के बगल वाले डी-6 बंगले की जांच की थी लेकिन उन्हें कुछ नहीं मिला था. इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि इतना काफी नहीं था.
पोस्टमार्टम करने वाले डॉ.अमित ने शक जताया था कि एक शव को सड़ने में तीन महीने का समय लगता है और पूरी तरह सड़ने में लगभग 3 साल तक का समय लग जाता है. सवाल उठाया गया था कि कुछ बच्चे एक साल पहले गायब हुए थे लेकिन उनके शवों की हड्डियां क्यों मिल रही हैं?
निठारी कांड के पूरे मामले में अभियोजन पक्ष चार मामलों में पूरी तरह से विफल रहा. पहला कंकाल बरामदगी में कानूनी प्रक्रिया नहीं अपनाई गई. दूसरा गिरफ्तारी और बरामदगी और इकबालिया बयान में कई महत्वपूर्ण बिन्दु गायब थे. तीसरा सबसे महत्वपूर्ण की आरोपियों की मेडिकल जांच नहीं करवाई गई. चौथा कि पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार करने के 60 दिनों तक कोई बयान ही दर्ज नहीं किया.
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FIRST PUBLISHED : October 17, 2023, 10:49 IST










