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भविष्य की आहट/ धर्म के महाकुम्भ में सांसारिकता का दावानल: डा. रवीन्द्र अरजरिया

डेस्क न्यूज। महाकुम्भ का शंखनाद होने से पहले ही दिव्य परिसर में साधु, संत, कल्पवासी, साधक और जिज्ञासुओं की भीड जमा होने लगी है। सनातन के वैदिक सूत्र, पुरातन साहित्य और प्रयोगात्मक परिणामों से उपजा परा-विज्ञान आज भी विश्व के समक्ष निरंतर चुनौतियां प्रस्तुत कर रहा है।

ज्योतिषीय गणनाओं से लेकर नक्षत्र शास्त्र तक ने हमेशा ही वर्तमान विज्ञान को दिशा देने का काम किया है। विश्वास, श्रध्दा और समर्पण के साथ निर्धारित विधान को सम्पन्न करने से तरंगीय ऊर्जा का प्रत्यक्ष प्रभाव लक्ष्यभेदन के भौतिक परिणाम के रूप में सामने आता है। अध्यात्म के अनेक सोपानों को महाकुम्भ में न केवल देखा जा सकता है बल्कि उनकी अनुभूतियां भी की जा सकतीं हैं। एकाग्रता की शक्ति, केन्द्रीकरण का प्रभाव और कर्मकाण्ड की सकारात्मकता ने श्रध्दा की त्रिवेणी बनकर प्रयागराज में कलकल नाद करना शुरू कर दिया है। भोले-भाले लोगों की आस्था ही उन्हें कल्याणकारी फल की प्राप्ति कराती है।

इस हेतु कल्पवास से लेकर साधनाओं को मूर्तरूप देने वालों की संख्या भी निरंतर बढती हो रही है। दूसरी ओर अध्यात्म को संकलित जानकारियों के आधार पर तार्किकता की कसौटी पर कसने वाली पाश्चात्य संस्कृति में रची-बसी जमातें भी आयोजन स्थल पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहीं है। इन जमातों के झंडे तले ठहाके लगाने वाले लोगों की नजर केवल और केवल नि:शुल्क सुविधाओं का लाभ उठाने, अपात्र होते हुए भी कथित पात्रता प्रदर्शित करने तथा सुखमय क्षण गुजारने तक ही सीमित है।

उल्लेखनीय है कि अति विशिष्ट व्यक्तियों से लेकर आम आवाम तक के लिए उनके अनुरूप सरकार व्दारा संसाधन जुटाये जा रहे हैं। आवामगन हेतु विभिन्न वाहनों का परिवहन सुनिश्चित किया गया है। अतिरिक्त प्रबंधन के तहत उच्च न्यायालय, अति विशिष्ट व्यक्ति, विदेशी राजदूत, विदेशी नागरिक और अप्रवासीय भारतीयों के साथ-साथ केन्द्र और राज्य के विभागों हेतु सफेद, अखाडों तथा संस्थाओं हेतु केसरिया, कार्यदायी संस्थाओं हेतु पीला, मीडिया हेतु आसमानी, पुलिस एवं सुरक्षा बल हेतु नीला तथा आपातकालीन सेवाओं हेतु लाल रंग के ई-पास जारी किये गये हैं।

इन पासों को प्राप्त करने के लिये पात्रों से कहीं अधिक अपात्र की संख्या मसक्कत कर रही है जो राजनैतिक, आधिकारिक, दलगत दबावों के साथ-साथ चांदी के सिक्कों को भी लक्ष्यपूर्ति हेतु साधन बनी रही है। यही हाल विशिष्ट वर्ग हेतु बनाये गये नि:शुल्क आवासों का है। उत्तरदायी अधिकारियों के स्वजन, परिजन, मित्रजन अपने निजी उपयोग हेतु सुविधायें प्राप्त करने वालों की होड में लगे हैं। दूरभाष पर सिफारिशों का अम्बार लगा है तो लिखित प्रार्थना-पत्रों की भरमार है। निर्धारित दायित्वों की पूर्ति में ऐसी स्थितियां निरंतर बाधा बनकर पात्र लोगों के हितों पर कुठाराघात कर रहीं हैं। सुविधायें पाने के लिए हितग्राहियों को भारी परेशानी का सामना करना पड रहा है।

धर्म के महाकुम्भ में सांसारिकता का दावानल स्पष्ट दिखाई दे रहा है। आधुनिकता में लिपटे कथित धर्मवलम्बियों ने अनेक स्थानों पर सनातन से जुडे कठिन साधना काल को औपचारिक दिखावे में बदलकर रख दिया है। परा विज्ञान के व्दारा घोषित कल्याणकारी दुर्लभ योग का लाभ उठाने हेतु प्रयागराज पहुंचे समर्पित श्रध्दालुओं हेतु किये जा रहे शासकीय प्रयास निश्चित ही सराहनीय है परन्तु उनको विकृत करने की भी जी-तोड कोशिशें हो रहीं हैं। ऐसे में साधक को साधना हेतु एकान्त पल प्राप्त करना असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य होता दिख रहा है। व्यवस्था तंत्र में अनेक उत्तरदायी अधिकारी अपने अधीनस्थों पर दायित्वों का बोझ डालकर जिम्मेवारियों से भागते नजर आ रहे हैं जबकि उन्हें इस विशेष आयोजन हेतु मुस्तैदी के साथ काम करने का आदेश दिया जा चुका था।

लोगों की मानें तो अव्यवस्था करने वाले पदाधिकारियों की अधिकांश शिकायतों को उच्चाधिकारियों व्दारा अदृष्टिगत किया जा रहा है। महाआयोजन का महाशुभारम्भ होने के पहले ही तंत्र पर आरोपों के बादल मडराने लगे हैं। अनेक स्थानों पर कर्तव्यपरायणता के सिध्दान्तों को निजिता के दायित्व के तले दबाने के प्रयास हो रहे है। ऐसे में सनातन का वसुधैव कुटुम्बकम् वाला सिध्दान्त कई स्थानों पर एकल कुटम्बकम् का रूप ले चुका है। विश्व के इस सबसे बडे आयोजन की सफलता हेतु प्रत्येक नागरिक को अपने स्तर पर कार्य करने की आवश्यकता है।

प्रयागराज पहुंचने वाले प्रत्येक श्रध्दालु को अपने धन, पद और प्रभाव को तिलांजलि देना होगी। अहंकार को छोडना होगा। व्यक्तिगत सामर्थ और पात्रता के अनुरूप सुविधाओं का चयन करना होगा। त्याग, सहयोग और समर्पण को अंगीकार करना होगा। सामाजिक समरसता के लिए आगे आना होगा। अनाधिकार चेष्टा को अस्तित्वहीन करना होगा। सीमित संसाधनों में प्रवासकाल पूरा करने के दौरान प्रतिपल सेवा का संकल्प पूरा करने हेतु उत्सुक रहना होगा। तभी 144 साल बाद आने वाला यह सुअवसर निजी जीवन को लक्ष्य के चरम पर पहुंचाने हेतु मार्ग प्रशस्त्र करेगा अन्यथा पर्यटक की मनोभूमि से लगाई जाने वाली डुबकी किसी साधारण स्नान से अधिक परिणाम नहीं देगी। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।

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