आध्यात्मिक

अपने बच्चों क़ो कलयुग क़ी भयावहता से बचाने के लिए संस्कारी जीवन धर्म के मार्ग के माध्यम से प्रदान किया जा सकता है: शिव बहादुर सिंह

डेस्क न्यूज। गुरुदेव जी ने अनेकों बार कहा है क़ी बच्चों क़ो शिक्षा औऱ स्वास्थ्य के साथ साथ धर्म का ज्ञान देना भी बहुत जरूरी है। समाज के प्रत्येक परिवार में ये समस्या महामारी का रूप ले रही है। हर घर इस बड़ी बीमारी से पीड़ित है क़ी उनके बच्चे उनकी बात नही मानते हैं औऱ अपनी मनमानी करते हैं औऱ किसी बात के लिए मना करोगे तो वाद विवाद करते हैं।जिनके पास एक ही बच्चा है वो बात-बात पर घर से भाग जाने क़ी धमकी भी देता है। छोटे-छोटे बच्चे बत्तमीजी करने लगे हैं। कई अभिवावक इसके लिए मारते पीटते भी हैं पर मार-पीट किसी भी समस्या का स्थाई समाधान नही होता। बच्चों में नशा करने क़ी प्रवृत्ति में इजाफा हो रहा है।

अश्लील फिल्में देखने में रुचि बढ़ रही है। मां बाप क़ो यही चिंता दिन रात सताए जा रही है क़ी इसका भविष्य किस ओर जा रहा है। आजकी फिल्में भी तमाम तरह क़ी अश्लीलता परोस रही हैं। जिनको बच्चे अपना महानायक मानते हैं उनके वास्तविक जीवन के बारे में जब बच्चों क़ो पता लग जायेगा तो ऐसे अभिनेताओं से सदा-सदा के लिए घृणा उत्पन्न हो जायेगा।कोई भी ऐसा घिनौना कार्य शेष नही बचा है जो ये ना करते हों। इनके चक्कर में अधिकाँश युवा वर्ग भटकाव का जीवन व्यतीत कर रहे हैं। बच्चे जब छोटे होते हैं तो हम लोग इन बातों क़ो गम्भीरता से नही लेते पर बाद में पछतावा होता है। कई बच्चे तो बचपन में ही आपराधिक गतिविधियों क़ो अंजाम देने लगते हैं। आज के बच्चों औऱ पहले के बच्चों में जमीन आसमान का फर्क है। हमने बच्चों क़ो संस्कार नही दिया,हां भौतिक संसाधनों क़ी भरमार कर दी। पहले जब माँ के गर्भ में बच्चा आता था तो माँ के खानपान औऱ रहन सहन का विशेष खयाल रखा जाता था। गर्भवती स्त्रियों क़ो प्रतिदिन ईश्वर का भजन सुनने के लिए बोला जाता था। आज भी माँ गुरुवर के भजन औऱ गुरुवर जी के चिंतनों क़ो प्रतिदिन सुनना चाहिए।

माँ के गर्भ से ही सँस्कार दिया जाना आवश्यक है। जन्म होने के बाद भी उन्हे धार्मिक कार्यक्रमों में ले जाना चाहिए। बच्चों में ग्रहण (स्वीकार) करने क़ी क्षमता बड़ों से ज्यादा होती है। आपके घर में प्रतिदिन माँ का दुर्गा चालीसा पाठ, माँ गुरुवर क़ी आरती, माँ ॐ के मंत्र का जाप आदि होता रहेगा तो बच्चे के अन्दर सँस्कार क़ी जड़ें मजबूत होती जाएँगी।

ऐसा बच्चा कभी भी गलत कार्यों के प्रति आकर्षित नही होगा। उसे सत्य-असत्य का ज्ञान रहेगा। जिन बच्चों क़ो शुरू से ही महाआरती औऱ शिविर आदि में जाने का सौभाग्य मिल जाता है,वो बच्चे समाज में अपने कार्यों से अपने माता पिता का नाम रोशन जरूर करते हैं। बाह्य साधनों क़ो उपलब्ध कराने से बच्चा आगे नही बढ़ेगा। धर्म का ज्ञान प्रत्येक बच्चों के लिए नितान्त आवश्यक है। कई बिगड़ैल बच्चों क़ो देखकर लोग टिप्पणी करते हैं क़ी इनके माँ बाप ने इन्हें कैसा सँस्कार दिया है।गुरुदेव श्री शक्ति पुत्र जी महाराज जी ने कहा है क़ी बच्चों क़ो संस्कारवान बनाएं।

शुरू-शरू में बच्चों के साथ थोड़ी मेहनत अगर हम कर लेंगे तो बाद का जीवन सुखमय हो सकता है। शिक्षा औऱ स्वास्थ्य भी जरूरी है। अनाप शनाप भोजन जैसे माँसाहारी भोजन क़ी आदत मत डालिए। आहार का ध्यान बचपन से ही रखना चाहिए। आहार से ही विचार बनते हैं। पूर्व काल में 25वर्षों तक बच्चों क़ो गुरुकुल में भेज दिया जाता था,अब वो व्यवस्था नही रही तो हम अपने घर में ही बच्चों का उचित खयाल रखें औऱ धर्म के मार्ग से अवगत कराते रहें।आरती पाठ के क्रमों में भी बच्चों क़ो साथ लेकर जाइए।

ऐसे आयोजनों में ऊर्जा क़ी प्राप्ति होती है।ऐसे संस्कारी बच्चे जब घर से बाहर रहेंगे तो अभिवावकों क़ो उनकी चिंता कत्तई नही रहेगी क्यूँकि उन्हे भले बुरे का ज्ञान होगा। कई बच्चे कहते हैं क़ी हमारा मन पूजा पाठ में नही लगता, ऐसे बच्चों के लिए गुरुदेव जी ने कहा है क़ी उन्हें शक्तिजल का नियमित पान कराएं औऱ एक दुर्गा चालीसा का पाठ नित्य कराएं। धीरे-धीरे पूजा पाठ में भी मन लगने लगेगा औऱ कैरियर भी अच्छा रहेगा।साधना करने से तनाव आदि क़ी समस्या से छुटकारा मिलेगा। नशे औऱ माँस से निश्चित दूरी बनानी होगी। चरित्र वान जीवन जीने क़ी प्रेरणा भी मिलेगी।

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