आध्यात्मिक

कलिकाल (कलयुग )अपने चरम पर हैं, मानवीय मूल्यों में तीव्र गति से गिरावट हो रही है, चारों तरफ अनीति और अन्याय का बोल-बाला व्याप्त हो चुका है: शिव बहादुर सिंह

डेस्क न्यूज। कुछ दशक पहले ये प्रचलन था कि कभी कोई किसी की मदद कर देता था तो लोग उस व्यक्ति का जीवन पर्यन्त तक एहसान मन्द होते थे और अपने मन में मदद करने वाले के प्रति आदर भाव रखते थे ,पर बड़े दुर्भाग्य की बात है कि वर्तमान समय में अगर भूल कर भी आपने किसी की सहायता कर दी तो मदद लेने वाला व्यक्ति आपका दुश्मन बन जाएगा।इसी सब को देखते हुये बहुत सारे लोग किसी की सहायता करने के लिये साफ़ इनकार कर देते हैं। ऐसा कदापि मत कीजिये कि मदद करने वाला व्यक्ति आपके व्यवहार से दुःखी हो जाय।

आपको यकीन ना हो तो आप अपने आसपास हो रही घटनाओं पर एक नजर डालकर स्वयं निरीक्षण कर लीजिये। बड़ी साफ़ सी बात है कि जो लोग किसी बढ़ते हुये व्यक्ति की बराबरी नही कर पाते हैं ,या उसके आगे बढ़ नही पाते हैं ,वो लोग आगे बढ़ने वाले व्यक्ति से ईर्ष्या करने लग जाते हैं और तरह-तरह के हथकंडों का इस्तेमाल करके परेशान करने का असफल प्रयास करते रहते हैं। देखिये मनुष्य ना किसी को रोक सकता है या ना आगे बढ़ा सकता है। इन सब पर सिर्फ और सिर्फ माँ गुरुवर ज़ी का एकाधिकार है।जो बात हमारे अधिकार क्षेत्र से बाहर है ,उसके लिये हम बेकार में अपनी कीमती ऊर्जा को क्यूँ नष्ट करें। उदाहरण स्वरूप हम अपने घर का निर्माण करवा रहे हैं और उसी के पास में हमारे विरोधी का मकान भी बन रहा हो।

हम अपने मकान में ध्यान ना देकर बार बार विरोधी के मकान को क्षति पहुँचाने का कुप्रयास करेंगे तो नुकसान विरोधी का नही होगा ,हमारा स्वयं का नुकसान होगा क्यूँकि हमने अपने मिले हुये समय का सदुपयोग ना करके उसका दुरुपयोग किया। वही समय और ऊर्जा हमने अपने भवन निर्माण में लगाया होता तो आज एक भव्य और विशाल इमारत बनकर खड़ी हो जाती। ठीक इसी प्रकार हमारे आपके जीवन में भी हो रहा है। हमें किसी दूसरे की लकीर को छोटी करने की बजाय अपनी लकीर को बड़ी करने का सफल प्रयास करते रहना चाहिये। बड़ी हँसी आती है कि आप जो रचनात्मक कार्य करके कुछ पूण्य अर्जित कर सकते हैं ,वो ना करके अपने बेशक़ीमती समय को दूसरों को नीचा दिखाने ,छल-प्रपंच रचने में ,षडयंत्र करने में खर्च कर रहे हैं ,इससे हमारा स्वयं का नुकसान ही हो रहा है। प्रकृति से हम कुछ नही सीखना चाहते हैं। जब प्रकृति हमसे भेद भाव नही करती है तो हम दूसरों से भेद भाव क्यूँ करें।

मानव जीवन दुर्लभ है। देवता भी मानव जीवन को पाने के लिये लालायित रहते हैं क्यूँकि ईश्वर की कृपा और साक्षात्कार मानव जीवन में ही सम्भव है। इतना बहुमूल्य जीवन प्राप्त करके भी हम अनर्गल कार्योँ में लिप्त हैं। हमें अपने जीवन को सार्थक बनाने के लिये गुरुदेव ज़ी के द्वारा निर्देशित क्रमों का पालन करना ही होगा। उपरोक्त तमाम बुराइयों का निर्मूलन तभी हो सकता है ,जब हम लोग गुरुदेव द्वारा बताए हुये दिशा निर्देशों का पालन सच्ची निष्ठा और ईमानदारी से करने लगें। जब हम लोग अपने एक-एक पल का सदुपयोग गुरुदेव ज़ी द्वारा बताए हुये क्रमों का पालन करने लग जायेंगे तो हमारा पूरा जीवन शांतिपूर्ण तरीके से व्यतीत होने लगेगा।

जो लोग नियमित माँ गुरुवर की साधना करते हैं ,उन लोगों से मित्रता कीजिये। अपने बच्चों को संस्कारवान बनाने का भरपूर प्रयास कीजिये। गुरुदेव ज़ी की विचारधारा को अपने जीवन में आत्मसात कर लीजिये ,थोड़े समय के बाद ही आपको परिवर्तन दिखलाई देने लग जाएगा।गुरुदेव ज़ी ने स्पष्ट शब्दों में कहा है की आप आत्मावानो का जीवन जीकर देखिये ,आप आनन्द से ओत प्रोत हो उठेंगे।

जै माता की जै गुरुवर की

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