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भविष्य की आहट/ कट्टरता के हथियार से लहूलुहान होती दुनिया: डा. रवीन्द्र अरजरिया

डेस्क न्यूज। समूची दुनिया को आतंकवाद ने अपनी गिरफ्त में लेता जा रहा है। धर्म के नाम पर अधर्म फैलाने वालों को संरक्षण देने के लिए अनेक राष्ट्र खुलकर सामने आ रहे हैं। जीवन की कीमत पर भी कट्टरता को समर्थन देने वालों की कमी नहीं हैं। इजराइल के सामने कट्टरता को बढावा देने वाले राष्ट्र एकजुट होकर आक्रमण की संयुक्त रणनीति पर काम कर रहे हैं। ऐसे राष्ट्र अपने गुर्गों के माध्यम से अनेक आतंकवादी संगठन तैयार कर चुके हैं। इन संगठनों के पास अकूत सम्पत्ति है, अत्याधुनिक हथियार हैं, अपार गोला बारूद है, मिसाइलें हैं और हैं खतरनाक विस्फोटक के भण्डार। यह सब पलक झपकते एकत्रित नहीं हुआ है बल्कि सोचे-समझे षडयंत्र के तहत लम्बे समय से किये गये प्रयासों का परिणाम है। अनेक राष्ट्रों की सेनाओं व्दारा उपयोग करने वाले स्वचलित हथियारों से आतंकियों की जमातें बेगुनाहों को मौत की नींद सुलाने में लगीं हैं।

हमास ने जिस तरह से इजराइल पर हमला करके वहां के निरीह नागरिकों को बंधक बनाकर उसे पंगु बनाने की कोशिश की थी, उसी तरह से आईएसआईएस जैसे अन्य गिरोह दुनिया के अन्य राष्ट्रों के लिये विसात बिछा चुके हैं। मजहब के नाम पर कट्टरता का पाठ पढाने वालों ने आने वाली नस्लों को बचपन से ही बरगलाना शुरू कर दिया है। हूरों के साथ मौज, जन्नत का जलवा और गुलामों की फौज जैसे ख्वाब दिखाकर जिस्म के बाद की ऐश-ओ-आराम वाली दुनिया में पहुंचने के लिए फिदायनियों की फौज तैयार की जा चुकी है। दुनिया के बद से बद्तर होते हालातों के बीच देश को अराजकता के मुहाने पर पहुंचाने वालों की भी कमी नहीं है। इस हेतु संगठित रूप से तंत्र विकसित किया जा चुका है जो एक संदेश पर एकत्रित होने के लिए सदैव तैयार रहता है।

इस तंत्र में समाज के सभी व्यवसायिक वर्गो से जुडे दबंगों की भागीदारी समय-समय पर देखने को मिलती रहती है। आतंकवादियों से लेकर कानून तोडने वालों तक के पक्ष में कुछ जानेमाने चेहरे हमेशा काले कोट में बचाव करते नजर आते हैं। उनके लिये सत्य की विजय या राष्ट्रहित सर्वोच्च नहीं है बल्कि आर्थिक लाभ, वर्ग विशेष में सम्मान और विदेशी कद्दावरों के साथ गलबहियां महात्वपूर्ण होतीं हैं। ऐसे लोगों के कुनवे में केवल कुछ काले कोटधारी ही नहीं है बल्कि अनेक ओहदेदार, मजहब के ठेकेदार, माफिया गिरोहों के सरगना जैसे लोगों की भरमार है, जो अपनी सामर्थ का उपयोग देश के सामने समस्याओं का अम्बार लगाने में निरंतर कर रहे हैं। अभी हाल ही में राजधानी दिल्ली के जामिया नगर इलाके में कानून की धज्जियां उडाने वाले बेटे को पकडने पर बाप-बेटे ने पुलिस अधिकारी नरपाल सिंह सहित अन्य पुलिसकर्मियों के साथ सरेआम मारपीट करके खुली गुण्डागिरी का उदाहरण प्रस्तुत कर दिया।

आरोपियों के समर्थन में तत्काल मुस्लिम समाज के लोगों की भीड एकत्रित होने लगी थी। बाद में घटना स्थल पर पहुंचे अतिरिक्त बल व्दारा आसिफ और उसके पिता रियाजुद्दीन को बमुस्किल गिरफ्तार किया जा सका। इतना ही नहीं अतीत में तो अनेक राज्यों में कई विभागों ने रविवार के साप्ताहिक अवकाश के स्थान पर शुक्रवार के अवकाश की घोषणा करके अपनी तानाशाही के सामने संविधान तक को बौना बना दिया था। झारखण्ड से लेकर बिहार तक में इस तरह के मनमाने फरमान जारी हुए थे। बिहार के केवल किशनगढ जिले में ही 37 से अधिक स्कूलों में रविवार के स्थान पर शुक्रवार को साप्ताहिक अवकाश घोषित कर दिया था।

कटिहार जिले के 138 स्कूलों को भी शुक्रवार को बंद तथा रविवार को खुला रखा गया था। झारखण्ड के जामताडा में 70 प्रतिशत मुस्लिम आबादी होने के कारण वहां जबरन रविवार के स्थान पर शुक्रवार का अवकाश मनाया जाना लगा था। वहां ऐसे स्कूलों की संख्या 100 का आंकडा पार कर चुकी थी। इसी तर्ज पर भारतीय स्टेट बैंक की कुछ शाखाओं ने भी साप्ताहिक अवकाश हेतु शुक्रवार निर्धारित करने की सूचना बकायदा अपने सूचना पट पर भी चस्पा कर दी थी। ऐसी मनमानियां देश के अनेक भागों में निरंतर चल रहीं हैं। अनेक व्यापारिक संस्थानों में तो गैर मुस्लिम लोगों के लिए नौकरियां तक बंद हैं।

ऐसा तब हो रहा है जब देश में गणतांत्रिक व्यवस्था लागू है। नौकरशाहों की एक जमात को आम लोगों की मेहनत की कमाई से मोटी-मोटी पगार दी जा रही है, लग्जरी सुविधायें दी जा रहीं है और दिये जा रहे हैं अतिरिक्त भत्ते। सब कुछ पाने के बाद भी उनकी नाक के नीचे ही अनियमितताओं का खुला नाच हो रहा है। मीरकासिम जैसे लोग अपने गैरकानूनी आर्थिक मुहाने बढाते जा रहे हैं। सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण, दहशत फैलाने हेतु खुलेआम गुण्डागिरी, सरेबाजार नाबालिगों का अपहरण, बलात्कार और फिर जघन्न हत्याओं जैसी अनगिनत घटनायें सरकारी दस्तावेजों तक पहुंचने से पहले ही दम तोड रहीं हैं। जेहाद के तीन दर्जन चेहरे अभी तक बेनकाब हो चुके हैं। देश-दुनिया को तबाह करने का सामान एकत्रित कर चुके कट्टरपंथी राष्ट्र अब इस्लामिक नाटो जैसा संगठन बनाने की तैयारी में जुट गये हैं। उनके दिखाने वाले खूबसूरत दांतों के पीछे छुपे खतरनाक खाने वाले दांत अब तेजी से बाहर आने लगे हैं।

इस संगठन के लिए तुर्की, सऊदी अरब, मिस्र, पाकिस्तान, संयुक्त अरब अमीरात, जार्डन, बहरीन, बंगलादेश, अफगानस्तान, मलेशिया, इंडोनेशिया, ईरान, ईराक, ओमान, कतर, कुवैत, मोरक्को, अल्जीरिया, ट्यूनीशिया, अजरबैजान, कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान तथा ब्रुनेई पूरी तरह से मन बना चुके हैं। दुनिया के यह 25 देश आपसी सहयोग, सुरक्षात्मक संसाधनों के हस्तांतरण, अत्याधुनिक हथियारों पर नवीन शोध, परमाणु शस्त्रों हेतु सामग्री की आपूर्ति, तकनीक के आदान-प्रदान, इस्लाम के विस्तार जैसे मुद्दे लेकर चल रहे है। उनके संयुक्त प्रयासों का परिणाम निकट भविष्य में विराट रूप लेकर सामने आ सकता है। ऐसे में सभी मजहबों के सकारात्मक सोच वालों को एक जुट होकर आगे आना होगा तभी कट्टरता के हथियार से दुनिया को लहूलुहान करने वालों को रोका जा सकेगा अन्यथा दुनिया को देखना पड सकता है जिस्म का लहू में डूबकर लाशों में तब्दील होता खौफनाक मंजर। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।

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