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मोदी,शाह, नड्डा की तिकड़ी के जाल में क्या फस गया पूरा इंडी गठबंधन: आशुतोष द्विवेदी

डेस्क न्यूज। जैसे जैसे लोकसभा चुनाव के चरण बढ़ते जा रहें हैं वैसे-वैसे चुनाव भी और रोमांचक होता जा रहा हैं और देश की पार्टियों में भी नित नए बदलाव देखने कों मिल रहें हैं की मंदिर की चौखट चूम रहा हैं तो कोई मस्जिद पर सजता कर्ता नजर आ रहा हैं तो कोई गुरूद्वारे पर सजता कर्ता तो कोई गिरिजाघरो पर दिखाई दे रहा हैं।

लेकिन इस चुनाव में जहां कांग्रेस व अन्य विपक्ष की पार्टियों में उठा पटक मची हुई हैं तो वहीं इस चुनाव में सबसे बड़ी तस्वीर ओवेसी भाइयों की देखने कों मिली हैं जो भाजपा प्रत्याशी से ऐसे घिर गए हैं की हैदराबाद से बाहर निकलना ही भूल गए। यह तो तय दिख रहा था की भाजपा की हैदराबाद माधवी लता भारी पड़ेगी। लेकिन इतनी भारी पड़ जाएंगी कि ओवैसी को मंदिर की चौखट पर जाकर माथा टेकना पड़ेगा। पुजारी द्वारा पहनाया गया पीट पटका गले में डालना पड़ेगा , ऐसा किसी ने नहीं सोचा था।

आपको बता दे की बीजेपी प्रत्याशी माधवी लता संगीत , कला और चिकित्सा जगत में एक बड़ा नाम हैं। मुस्लिम समुदाय में भी उनकी गहरी पैठ है। जाहिर है ओवैसी को वे इतनी जबरदस्त टक्कर दे रही हैं कि ओवैसी को राहुल से संपर्क कर कांग्रेस के मुस्लिम प्रत्याशी को रास्ते से हटाना पड़ेगा। कल तो हद ही हो गई , जब पंद्रह मिनट पुलिस हटा लो वाला विवादित चर्चित बयान देने वाले अपने भाई को साथ लेकर वे जीवन में पहली बार मंदिर जा पहुंचे।

इस चुनाव में बहुत कुछ ऐसा हो रहा है जो आश्चर्य चकित करता है। विगत दिनों कांग्रेस की वरिष्ठ नेत्री और प्रवक्ता राधिका खेड़ा को कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता छोड़नी पड़ी। उनका दोष इतना था कि वे अपने परिवार सहित अयोध्या में राम मंदिर के दर्शन करने पहुंच गईं। लौटी तो छत्तीसगढ़ पार्टी कार्यालय में उनसे मारपीट की गई।

राधिका का आरोप है कि उन्हें कमरे में बंद कर प्रताड़ित किया गया। अयोध्या जाने के लिए उनकी क्लास ली गई। तंग आकर राधिका ने पार्टी छोड़ दी। उनसे पहले गौरव वल्लभ और रोहन गुप्ता जैसे प्रवक्ता त्यागपत्र दे चुके हैं। प्रमोद कृष्णम जैसे प्रवक्ता भी इसी कारण गए। अरविंदर सिंह लवली तो अध्यक्ष पद छोड़कर बीजेपी में ही शामिल हो गए। अयोध्या न जाने का फैसला कितने कांग्रेसियों की विदाई करा गया , सबको पता है।

कमाल के इस चुनाव में ना ना करते प्यार का एक उदाहरण तो हाल ही में देश ने देखा। ना ना करते राहुल अमेठी के बजाय रायबरेली जा पहुंचे। लड़ सकने वाली न खुद लड़ीं और न ही लड़ने को तैयार पतिदेव को लड़ने दिया। बहुत कुछ नया हुआ है और हो रहा है इस चुनाव में। अब देखिए न, राजनैतिक दलों में भगदड़ मची है। संजय निरुपम शिंदे शिवसेना से जा मिले हैं, राज ठाकरे बीजेपी से।

वह तो दांव ओछा पड़ गया वरना कमलनाथ और नकुलनाथ भी बीजेपी की ड्योढ़ी पर पहुंच ही गए थे। बेचारे सचिन पायलट ही गुमनामी के अंधेरे भोग रहे हैं। जो भी हो चुनाव पूरी तरह मोदी के इर्द गिर्द घूम रहा है। लकीरें इतनी बड़ी खींची गई हैं कि मिलकर मैदान में उतरने के बावजूद कुछ लकीरें तो दिखाई भी नहीं पड़ रही। कुछ धुंधली लकीरें जरूर हैं जिन से होते हुए विपक्षी राजनीति की गाड़ी आगे बढ़ रही है । इस सब के बावजूद मौजूदा चुनाव बेहद उलझा हुआ है। इतनी गिरहें बंधी हुई हैं कि खोलने में वक्त लग रहा है। अब देखना हैं की 4 जून कों मोदी का 400 पार वाला नारा सफल होता हैं या विपक्ष का मोदी हटाओ देश बचाओ का नारा।

(आशुतोष द्विवेदी संपादक/ डायरेक्टर शक्ति न्यूज)

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