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प्रयागराज महाकुम्भ में पहुंचकर जीवन कों बनाया धन्य

गढ़ाकोटा। आज के आधुनिक इलाहाबाद में स्थित प्रयाग का बतौर तीर्थ हिन्दुओं में एक महत्वपूर्ण स्थान है। परंपरागत तौर पर नदियों का मिलन बेहद पवित्र माना जाता है, लेकिन संगम का मिलन बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। क्योंकि यहां गंगा, यमुना और सरस्वती का अद्भुत मिलन होता है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान विष्णु अमृत से भरा कुंभ (बर्तन) लेकर जा रहे थें कि असुरों से छीना-झपटी में अमृत की चार बूंदें गिर गई थीं। यह बूंदें प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन रुपी तीर्थस्थानों में गिरीं। तीर्थ वह स्थान होता है जहां कोई भक्त इस नश्वर संसार से मोक्ष को प्राप्त होता है। ऐसे में जहां-जहां अमृत की बूंदें गिरी वहां तीन-तीन साल के अंतराल पर बारी-बारी से कुंभ मेले का आयोजन होता है। इन तीर्थों में भी संगम को तीर्थराज के नाम से जाना जाता है। संगम में हर बारह साल पर कुंभ का आयोजन होता है।

संगम-
यह वह स्थान है जहां गंगा का मटमैला पानी यमुना के हरे पानी में मिलता है। यहीं मिलती है अदृश्य मानी जाने वाली सरस्वती नदी। वैसे तो यह अदृश्य नदी है पर माना जाता है कि यह भूगर्भ में बहती है । संगम सिविल लाइन्स से 7 किमी पर पड़ता है। इसे अकबर के किले के परकोटे से भी देखा जा सकता है।

पवित्र संगम पर दूर-दूर तक पानी और गीली मिट्टी के तट फैले हुए हैं। नदी के बीचों-बीच एक छोटे से प्लॅटफॉर्म पर खड़े होकर पुजारी विधि-विधान से पूजा-अर्चना कराते हैं। धर्मपरायण हिंदू के लिए संगम में एक डुबकी जीवन को पवित्र करने वाली मानी जाती है। संगम के लिए किराये पर नाव किले के पास से ली जा सकती है। कुंभ/महाकुंभ पर संगम मानो जीवंत हो उठता है। देश विदेश भर से श्रद्धालु यहां आते हैं और इसकी रौनक बढ़ाते हैं।

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