मानव जीवन के तमाम ऐसे रहस्य हैँ ,जिन्हें समझे बिना जीवन को सुचारू रूप से संचालित करना बड़ा दुरूह कार्य हो जाएगा: शिव बहादुर सिंह

डेस्क न्यूज। आज जिधर भी निगाह उठाकर देखिये ,हर गली मुहल्ले में आपको कोई ना कोई कथा वाचक या उपदेशक जरूर मिल जाएगा। आप जरा उनके जीवन में झाँककर देखिये तो आपको उनकी सच्चाई का पता चल जाएगा।
लोगों को ज्ञान देते फिरेंगे ,स्वयं के जीवन में विकारों क़ी लम्बी फेरहिस्त होगी। आपकी बातों का लोगों पर तब तक कोई प्रभाव नही पड़ेगा ,जब तक आपका जीवन पारदर्शी नही होगा। कई लोग मूर्ति पूजा का विरोध करते हैँ। ईश्वर के साकार स्वरूप को नकारते हैँ। गुरुदेव ज़ी ने स्पष्ट रूप से कहा है कि मूर्ति पूजा अवश्य होनी चाहिये। मूर्ति पूजा जायज है। मूर्ति पूजा आदिकाल से प्रचलित पूजा पद्धति में शामिल है। इसे हम झुठला नही सकते हैँ। लोगों को समाज में भ्रम फैलाकर अपनी दुकान चलानी है। इससे चाहे किसी का नुकसान हो रहा हो ,उन्हें किसी से कोई लेना देना नही है। मानव जीवन के गूढ़ रहस्यों को समझने के लिये हमें मानव जीवन के मूल उद्देश्य को समझना होगा। मानव जीवन का मूल उद्देश्य यही है कि आप अपने आत्मा के जागरण की प्रक्रिया में सदैव संलग्न रहें। आत्मा को जागृत किये बिना ,जीवन का संचालन कठिन हो जाएगा।
गुरुदेव ज़ी द्वारा निर्देशित माँ दुर्गा ज़ी की साधना -आराधना के क्रमों द्वारा ही हम सभी की आत्मा का जागरण सम्भव हो पाएगा। आत्मा को परमात्मा से एकाकार करने के लिये गुरुदेव ज़ी द्वारा निर्देशित क्रमों को हम सभी को आत्मसात करना होगा। अधिकाँश लोग भौतिकवाद में इतना अधिक लिप्त हैँ कि उन्हें इन रहस्यों की कोई जानकारी नही है। उन्हें सिर्फ भोग वासना से ही मतलब है। दिन रात माँस खाने की नशे की और वासनात्मक जीवन जीने की ललक बनी रहती है। ये बात तो तय है की मनुष्य काम ,क्रोध ,लोभ और मोह से प्रभावित हुये बिना नही रह सकता है पर माँ गुरुवर की प्रतिदिन साधना क्रमों द्वारा इनके प्रभाव को नियंत्रित किया जा सकता है।गुरुदेव ज़ी ने बड़े ही सरल शब्दों में मानव जीवन के गूढ़ रहस्यों को समझाया है।
जब तक हम अपनी आत्मा को चैतन्य नही करेंगे तब तक जीवन में खुशहाली नही आ सकती है। जीवन पर्यन्त हमारे जीवन को हमारी आत्मा ही संचालित करती है। आत्मा पर अगर आवरण है तो हमें पूरे जीवन कष्टों का सामना करना पड़ेगा। माँ दुर्गा ज़ी की नियमित साधना द्वारा आत्मा के इस आवरण को हटाया जा सकता है। यहाँ सबसे बड़ा प्रश्न ये उठता है कि क्या हम लोग इस जागरण की क्रिया के लिये खुद को पात्र बनाना चाहते हैँ या बड़ी बड़ी बातों से ही काम चलाना चाहते हैँ। हमें गम्भीर होकर इन साधनात्मक क्रमों की शुरुआत करना होगा और दूसरों को भी प्रेरित करते रहना होगा। मानव जीवन को सार्थक बनाने के लिये गुरुदेव श्री शक्ति पुत्र ज़ी महाराज ज़ी की विचारधारा पालन करना ही होगा।