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कांग्रेस के लिए कहीं मातृशक्ति का अपमान ना बन जाए काल: आशुतोष द्विवेदी

डेस्क न्यूज। इस समय कांग्रेस नेताओं के द्वारा लगातार मातृशक्ति पर जो अशोभनीय टिप्पणी की जा रहीं हैँ वह कहीं कांग्रेस के लिए आने वाले समय में कहीं काल बनकर निगल ना ले। अगर समय रहते कांग्रेस के कर्णधारों ने इस तरह की उनके नेताओं ने मातृशक्ति पर की जा रहीं अशोभनीय टिप्पणी कों बंद नहीं कराया कों कांग्रेस कों आने वाले समय में बुरे दिन देखने पड़ते हैं।

कुछ इसी तरह एमपी की राजनीति में रस और चाशनी की खूब चर्चा है, भाजपा की एक महिला नेत्री के लिए कांग्रेस के बड़े पदधारी कहते हैं, कि उनका रस और चाशनी ख़त्म हो गई है, किसी भी महिला के लिए ऐसी टिप्पणियों के अनेक अर्थ निकलते हैं। कभी टंच माल, तो कभी आइटम के भी ऐसे ही मतलब निकाले गए थे. यह तो सही है, कि हर व्यक्ति के जीवन में कई रस होते हैं. इन रसों का संतुलन ही उसके जीवन का सुवास होता है। जिंदा रहते ही अगर रसों का संतुलन गड़बड़ा जाता है, तो जीवन नीरस हो जाता है।

कांग्रेस के बड़े रसधारी-पदधारी महिला नेत्री के कौन से रस और चाशनी पर टिप्पणी कर रहे हैं। उसका सही मतलब और सही लक्ष्य तो पदधारी ही बता सकते हैं। इतना जरूर सोचना चाहिए, कि हमारे शब्द दूसरे की नहीं बल्कि हमारी खुद की ख़बर देते हैं। ऐसी बातें कांग्रेस की ही खबर दे रही हैं. नीरस कांग्रेस की रसधार ऐसी ही चालों से सूख रही है।

जीवन में 11 रस बताए गए हैं. श्रृंगार रस, हास्य रस, करुण रस, रौद्र रस, वीर रस, भयानक रस, अद्भुत रस, शांत रस, वत्सल रस और भक्ति रस. किसी संगठन में यह सारे रस प्रवाहित होने चाहिए। कांग्रेस में ना हास्य रस बचा है। श्रृंगार रस तो कई बार कई बार अदालतों तक में घसीटा जाता है। करुण रस तो कांग्रेस से गायब ही हो गया है. आत्ममुग्धता कांग्रेस का सबसे बड़ा रोग है। करुण रस के बिना सेवा की राजनीति होती नहीं है। बिना करुण रस के सेवाभावी कांग्रेस का चेहरा वीभत्स रस में बदल गया है।

रौद्र रस और वीर रस केवल देश के वेल्थ क्रिएटर को गाली बकने तक सीमित हो गया है। विभाजन का भयानक रस वोट बैंक की रसधार को कुछ सीमा तक बचाए हुए है। शांत रस और वत्सल रस तो कांग्रेस से कोसों दूर जा चुका है। केवल एक रस भक्ति रस कांग्रेस में भरपूर समाया हुआ है। चाहे पद पाना हो चाहे प्रतिष्ठा पाना हो, बिना आला कमान की भक्ति के यह सब संभव नहीं है। इसलिए कांग्रेस के सारे पदधारी भक्ति रस के ही प्रवर्तक दिखाई पड़ते हैं। महिला नेत्री में कांग्रेस के बड़े पदधारी कौन सा रस देख रहे हैं। उन्हें कौन सा रस समाप्त दिखाई पड़ रहा है यह समझ के बाहर है। महिला नेत्री हैं, तो निश्चित उनमें करुणा और वत्सल रस होगा ही होगा। महिलाओं के खिलाफ़ राजनीतिक टिप्पणियां रोज का विषय हो गई हैं।

ऐसा नहीं है, कि महिलाओं के खिलाफ़ केवल पुरुष राजनेताओं द्वारा ही टिप्पणियां की जाती हैं। महिलाएं भी महिलाओं के खिला़फ वीभत्स टिप्पणियां करती देखी जाती हैं। कांग्रेस की एक बड़ी महिला नेत्री ने बीजेपी की मंडी से लोकसभा प्रत्याशी, फिल्मी हीरोइन कंगना रनौत के खिलाफ़ जो वीभत्स टिप्पणी की थी, उसकी व्यापक आलोचना हुई थी। महिलाओं को अगर मुकाबले में नहीं हराया जा सकता तो उन पर चारित्रिक टिप्पणियां या नारी सुलभ व्यक्तित्व की टिप्पणियां करना बहुत आसान होता है।

यद्यपि कांग्रेस के बड़े पदधारी ने रस समाप्त होने की अपनी टिप्पणी पर सफाई दी है। उनका कहना है, कि उनका उद्देश्य केवल प्रश्न को टालना था। इसके अतिरिक्त कोई भी उद्देश्य नहीं था। उस महिला नेत्री को उन्होंने अपनी बहन जैसा बताया है। आजकल मुंह से निकला एक शब्द अपना प्रभाव या दुष्प्रभाव एक क्षण में स्थापित कर देता है। सूचना इतनी फास्ट फैलती है, कि उस पर सफाई भी कोई असर नहीं डालती है।

कांग्रेस के जिन बड़े पदधारी रसधारी नेता के बारे में चर्चा हो रही है, उनके बयान लगातार चर्चा में रहते हैं. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की पराजय के बाद जब उन्हें नेतृत्व सौंपा गया था, तब ऐसा सोचा जा रहा था, कि शायद कांग्रेस में कोई सकारात्मक सोच पैदा होगी। कार्य व्यवस्थाओं में बदलाव होगा। नेताओं और कार्यकर्ताओं की पूछ-परख होगी. सामान्य शिष्टाचार और व्यवहार सम्मान जनक होगा।

यह सारे मंसूबे अब तक तो टूटते ही दिखाई पड़ रहे हैं। कांग्रेस में बगावत का दौर बड़े पदधारी के कार्यकाल में जिस गति से हुआ, वह कमलनाथ सरकार के पतन की बगावत को भी फीका कर रहा है। कांग्रेस के नेता और विधायकों के पार्टी छोड़ने पर इन्हीं पदधारी महोदय की टिप्पणी कि प्लॉट समतल हो रहा है। नया भवन बनाने के लिए प्लॉट समतल करना जरूरी है। अब तो ऐसा लगने लगा है, कि प्लॉट समतल करते-करते पार्टी ही समतल होती जा रही है।

लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस के यह बड़े पदधारी अपने गृह जिले के कांग्रेस प्रत्याशी को ही मैदान में बचाकर नहीं रख पाए। ऐसा कहा जा रहा है, कि उस प्रत्याशी को टिकट दिलाने में पदधारी महोदय की सर्वाधिक भूमिका थी। टिकट वितरण में पार्टी और विधायक दल के सबसे बड़े पदधारी की ही भूमिका होती है।

कांग्रेस की लाचारी वैसे तो पूरे देश में बढ़ती जा रही हैं। लेकिन मध्य प्रदेश में तो विधानसभा चुनाव के बाद ऐसे हालात बन रहे हैं, कि कोई किसी की नहीं सुन रहा है। जिनके पास भी पद हैं, वह सब अपने को सबसे बड़ा कमांडर स्थापित कर रहे हैं। किसी दूसरे को जोड़कर पार्टी को मजबूत करने की विचारधारा तो जैसे लुप्त हो गई है. केवल बयानों में ही पार्टी जीत रही है. ज़मीनी हकीकत तो सबको पता है।

अब तो यह चर्चा चल पड़ी है, कि विधानसभा चुनाव में पराजय के बाद कांग्रेस संगठन और विधायक दल में जो नया बदलाव किया गया था, क्या वह प्रयोग फेल हो गया है? लोकसभा चुनाव के बाद क्या नए सिरे सेपार्टी को दुरुस्त करने कीजरूरत है? कांग्रेस संगठन की कार्य पद्धति में कहीं ना कहीं इतनी गंभीर खामी है, कि भविष्य में बिना किसी राजनीतिक उम्मीद के भी कांग्रेस के स्थापित नेता और विधायक कांग्रेस छोड़कर दूसरी पार्टियों में शामिल हो रहे हैं।

कांग्रेस में तो ऐसा सोच काम करता दिखाई पड़ रहा है, कि जितने ज्यादा लोग पार्टी से बाहर चले जाएंगे, उतनी ज्यादा पार्टी के पदधारियों के भविष्य की संभावनाएं उज्जवल होंगी। मतलब आगे-पीछे की लाइन में लगे लोगों को हटाकर खुद फर्स्ट आने की कांग्रेस की रणनीति पार्टी में भयानक रौद्र और वीभत्स रस का उदाहरण है।

जीवन के सारे रसों के संतुलन के बिना कोई राजनीतिक संगठन फलता-फूलता नहीं है।भयानक और वीभत्स रस की कांग्रेस में भरमार दिखाई पड़ती है। हर कदम भयानक दिखता है। हर आचरण वीभत्स से दिखता है। अपने और संगठन के रसों पर नजर नहीं है। और दूसरों पर रसधारा की नजर डालने की बदसलूकी रुक नहीं रही है। कांग्रेस की महिला हितों की चैंपियन नेत्रियों का मौन धारण करना भी चौंकाता है।

कांग्रेस जब तक जीवन के रसधार से दूर रहेगी तब तक सत्ता के द्वार तक नहीं पहुंच सकेगी। दूसरों में रस ढूंढने की बजाय संगठन की नीरसता समाप्त करना ज़रूरी है. पदधारियों के व्यवहार में शिष्टता लानी होगी।आदमी को आदमी समझना होगा। केवल वोट की मशीन समझकर सियासत का दौर अब समाप्त हो रहा है। जो भी दल इसको नहीं समझेगा उसको समाप्त होने में भी समय नहीं लगेगा।

(लेखक एवं विचारक- आशुतोष द्विवेदी संपादक/ डायरेक्टर शक्ति न्यूज)

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